Baccho Ki Kahani: नमस्कार दोस्तों आज हम छोटे बच्चों की मजेदार कहानियां के बारे में जानेंगे। कहानियों के माध्यम से हम बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकते है। यह एक बहुत ही अच्छा तरीका है बच्चों को अच्छी-अच्छी बातें सिखाने का। इस आर्टिकल में आपको बहुत ही अच्छी कहानियाँ पढ़ने को मिलेगी। अगर आपको वह पसंद आए तो इसे शेयर जरूर कीजियेगा। तो आए जानते है इन मजेदार कहानियों के बारे में।
1. कौवे और उल्लू के बैर की कथा (Bacho Ki Kahani)
एक जंगल में पक्षियों का समूह रहता था। जिसका राजा वैनतेय (गरुड़) था। वैनतेय अपना अधिकांश समय वासुदेव की भक्ति में व्यतीत करता था। अतः अपनी प्रजा की ओर ध्यान नहीं दे पाता था। उसकी प्रजा अपने प्रति उसका विरक्ति भाव देख अप्रसन्न थी।
एक दिन समस्त पक्षियों ने सभा की, जिसमें चातक, कोयल, बगुला, हंस, तोता, उल्लू, कबूतर आदि पक्षी एकत्रित हुए और इस विषय पर चर्चा करने लगे। चातक, पक्षी बोला, “हमारा राजा वैनतेय वासुदेव की भक्ति में अपनी प्रजा को ही भूल गया है। उसे हमारी कोई चिंता ही नहीं है। ऐसे में उचित होगा कि हम किसी अन्य को अपना राजा चुन लें।”
सभी ने एकमत से उल्लू को अपना राजा चुन लिया और उसके अभिषेक की तैयारी में जुट गए। उसका राजमुकुट और राजसिंहासन तैयार किया जाने लगा। गंगा का पवित्र जल मंगाया गया और अनुष्ठान प्रारंभ हो गया। तभी कहीं से एक कौवा उड़ता हुआ उस स्थान पर आया, जहाँ उलूकराज के अभिषेक की तैयारी चल रही थी।
सारी व्यवस्था देख वह सोचने लगा कि यह सब किसलिए? किस समारोह के लिए ये सारी व्यवस्था की जा रही है? उसने कोयल से पूछा, “मित्र! यहाँ किस उत्सव की तैयारी चल रही है?”
कोयल ने उसे उल्लू के अभिषेक के बारे में जानकारी दी। यह सुन कौवा हँसने लगा। उसे हँसता देख समस्त पक्षी उसके आस-पास एकत्रित हो गए। उन्होंने उसके हँसने का कारण पूछा।
कौवे के कहा, “राजा के लिए तुम्हारा चुनाव गलत है।”
सभी जानते थे कि कौवा एक चतुर और कूटराजनीतिज्ञ पक्षी है। इसलिए उन्होंने उससे मंत्रणा करना उचित समझा। कौवा कहने लगा, “क्या तुम लोगों के पास राजा के चुनाव के लिए प्रत्याशियों की कमी है? तुम लोगों को क्या सूझी कि सौंदर्य के द्योतक मोर, हंस, सारस, चक्रवाक, शुक जैसे पक्षियों के रहते टेढ़ी नाक वाले उल्लू को राजा अपना राजा चुन लिया?”
वह कहता गया, “उल्लू रौद्र स्वाभाव का आलसी, कायर, व्यसनी और कटुभाषी पक्षी है। ऊपर से दिवान्ध है। वह तुम्हारा क्या हित करेगा? उससे तो तुम्हारा वर्तमान राजा वैनतेय भला है। उल्लू की अपेक्षा वह तुम्हारे लिए अधिक कल्याणकारी है। उसके रहते उल्लू को राजा बनाने का क्या तुक? राजा तो एक ही होता है।
एक से अधिक राजा का होना प्रतिद्वन्द्वता को जन्म देता है, जो विनाश की ओर ले जाता है। उल्लू जैसे अयोग्य को राजा बनाकर तुम पक्षीजगत का सर्वनाश कर दोगे?” सभी पक्षी कौवे की बात से प्रभावित हो गये। उल्लू के अभिषेक का विचार त्याग कर वे सब वहाँ से चले गए।
जब उल्लू अपने अभिषेक के लिए पहुँचा। तो वहाँ मात्र उसका मित्र कृकालिका और कौवा थे। अन्य किसी पक्षी को न देख उल्लू अचरज में पड़ गया। उसने अपने मित्र कृकालिका से पूछा, “क्या हुआ? सारी पक्षी कहाँ हैं?”
कृकालिका ने उल्लू को बताया, “मित्र! इस कौवे के कारण सबने तुम्हारे अभिषेक का विचार त्याग दिया है।”
उल्लू को कौवे पर बहुत क्रोध आया। वह उसे पूछने लगा, “तुमने ऐसा क्यों किया दुष्ट कौवे? मेरे राजा बन जाने से तेरा क्या चला जाता? तुमने अकारण मुझसे बैर मोल लिया है। अब से तू सदा मेरा और मेरे वंश का बैरी रहेगा।”
कौवा कुछ कह न पाया। चुपचाप बैठा रहा। उल्लू कुड़कुड़ाता हुआ वहाँ से चला गया। कौवा सोचने लगा कि व्यर्थ में ज्ञान देकर मुझे क्या हुआ? इन पक्षियों के मामले में हस्तक्षेप कर मैंने अकारण ही उल्लू से बैर ले लिया है। इस तरह मैंने अपनी स्वयं की हानि कर ली है। यह सोचता हुआ कौवा वहाँ से चला गया। तब से कौवों और उल्लू में स्वाभाविक बैर चला आ रहा है।
Moral – दूसरों के मामले में हस्तक्षेप अकारण ही आपको समस्या में डाल सकता है।
2. बाज़ और चूज़ों की कहानी (Chhote Bacchon Ki Kahaniyan)
एक गाँव में एक किसान रहता था। एक बार उसे कहीं से बाज़ का एक अंडा मिला। उसने वह अंडा मुर्गी के अंडे के साथ रख दिया। मुर्गी उस अंडे को अन्य अंडों के साथ सेने लगी। कुछ दिनों में मुर्गी के अंडे में से चूज़े निकल आये और बाज़ के अंडे में से बाज़ का बच्चा। बाज़ का बच्चा चूज़ों के साथ पलने लगा।
वह चूज़ों के साथ खाता-पीता, खेलता, इधर-उधर फुदकता बड़ा होने लगा। चूज़ों के साथ रहते हुए उसे कभी अहसास ही नहीं हुआ कि वह चूज़ा नहीं बल्कि बाज़ है। वह खुद को चूजा ही समझता था और हर काम उन्हीं की तरह करता था। जब उड़ने की बारी आई, तो अन्य चूज़ों की देखा-देखी वह भी थोड़ी ही ऊँचाई तक उड़ा और फिर वापस जमीन पर आ गया।
उसका भी ऊँचा उड़ने का मन करता, लेकिन जब वह सबको थोड़ी ही ऊँचाई तक उड़ता देखता, तो वह भी उतनी ही ऊँचाई तक उड़ता। ज्यादा ऊँचा उड़ने की वह कोशिश ही नहीं करता था। एक दिन उसने ऊँचे आकाश में एक बाज़ को उड़ते हुए देखा। इतनी ऊँचाई पर उसने किसी पक्षी को पहली बार उड़ते हुए देखा था। उसने चूजों से पूछा, “वो कौन है भाई, जो इतनी ऊँचाई पर उड़ रहा है?”
चूज़े बोले, “वो पक्षियों का राजा बाज़ है। वह आकाश में सबसे ज्यादा ऊँचाई पर उड़ता है। कोई दूसरा पक्षी उसकी बराबरी नहीं कर सकता।” फिर बाज़ ने पूछा “यदि मैं भी उसके जैसा उड़ना चाहूं तो?”
फिर चूज़े बोले “कैसी बात करते हो? मत भूलों तुम एक चूज़े हो। चाहे कितनी ही कोशिश कर लो, बाज़ जितना नहीं उड़ पाओगे।इसलिए व्यर्थ में ऊँचा उड़ने के बारे में मत सोचो। जितना उड़ सकते हो, उतने में ही ख़ुश रहो।” बाज़ ने यह बात मान ली और कभी ऊँचा उड़ने की कोशिश ही नहीं की। बाज़ होने बावजूद वह पूरी ज़िन्दगी मुर्गी के समान जीता रहा।
Moral – सोच और दृष्टिकोण का हमारे जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। ख़ुद को कम न समझें, अपनी क्षमता को सीमित न करें, बाज़ बनें और जीवन में ऊँची उड़ान भरें।
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3. चीनी बांस के पेड़ की प्रेरणादायक कहानी (Prernadayak Kahani)
एक गरीब किसान को उसके एक मित्र ने कुछ बीज दिये और उसे बताया कि ये बीज बांस के पेड़ की उस प्रजाति के हैं, जो चीन में पाए जाते है। इन पेड़ों की ऊँचाई 90 फीट तक होती है। किसान ने वे बीज अपने मित्र से ले लिए और उन्हें अपने खेत में बो दिये। उसे आशा थी कि जिस दिन वे बांस के ऊंचे पेड़ बन जायेंगे, उन बांसों को बेचकर उसे अच्छी आमदनी होगी और उसका परिवार एक अच्छा जीवन जी पायेगा।
वह उन बीजों को पानी देता, दिनभर उनकी देखभाल करता और रात में भगवान से प्रार्थना करता कि उसके सपने पूरे हो जाये और उसे इन बीजों से 100 प्रतिशत परिणाम मिले। वह रोज अपने खेत में जाकर देखता कि बीज अंकुरित हुए हैं या नहीं। लेकिन उसे उनमें कोई भी परिवर्तन दिखाई नहीं पड़ता। इसी तरह एक वर्ष बीत गया। लेकिन उन बीजों से अंकुर नहीं फूटे।
अन्य बीज सामान्यतः एक सप्ताह में अंकुरित हो जाते थे और कुछ महीनों में ही फसल आ जाती थी। उस फसल के द्वारा ही किसान के परिवार का भरण-पोषण होता था। किसान सोचा करता कि इस तरह आज तो उसका गुजारा चल सकता है, लेकिन उसके सपने पूरे नहीं हो सकते और न ही उसका भविष्य संवर सकता। बांस के पेड़ों की बदौलत वह अपने सुनहरे भविष्य के सपने देखने लगा।
लेकिन समय बीतने के बाद भी वे बीज अंकुरित नहीं हुए और किसान को अपने सपने और आशायें टूटती हुई नज़र आने लगी। उसके मन में शंका उत्पन्न होने लगी कि कहीं वे बीज सड़ तो नहीं गए हैं। एक वर्ष और बीता। लेकिन बीज अंकुरित नहीं हुए। दूसरे किसान और गांव वाले उसका मजाक उड़ाने लगे कि वह उन बेकार के बीजों पर अपना समय और परिश्रम व्यर्थ गंवा रहा है। सबके ताने सुनकर किसान विचलित होने लगा।
उसने मन में यह भय समाने लगा कि कहीं सचमुच ही वह अपना समय और परिश्रम ऐसे कार्य में तो नहीं लगा रहा, जिससे उसे कोई प्रतिफल नहीं मिलने वाला है। एक साल और बीत गया। लेकिन बीजों के अंकुरित होने के कोई चिन्ह दिखाई नहीं पड़े। लोगों ने किसान का मजाक उड़ाना जारी रखा। लेकिन किसान ने आंशिक भय के बाद भी अपने मन में छोटी सी आस बांध कर रखी थी।
इसलिए उसने लोगों की बातों को दरकिनार कर उन बीजों की देखभाल करना जारी रखा। ऋतुयें बीतती गई और किसान एक चमत्कार की उम्मीद में बीजों को रोज़ पानी देता रहा और उनकी देखभाल करता रहा। लेकिन चार साल बीत जाने के बाद भी एक भी बीज अंकुरित नहीं हुए। जिससे किसान की उम्मीदें थोड़ी और कम हो गई।लेकिन फिर भी वह उन बीजों को पानी देता रहा।
यद्यपि समय के साथ किसान की आशा कम होती चली जा रही थी। लेकिन भगवान पर उसका विश्वास अटल था। उसका विश्वास था कि भगवान उसके परिश्रम का फल उसे अवश्य देंगें। ५ वर्ष बीत जाने के बाद अचानक एक सुबह गाँव के लोगों को उस किसान के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई पड़ी। वे सभी अपने घरों से बाहर निकल आये।उन्होंने देखा कि वह किसान अपने खेत के सामने खड़ा होकर खुशी से चिल्ला रहा है।
पास जाकर देखने पर सभी गाँव वालों की आँखें फटी की फटी रह गई। किसान के खेत में बांस के बीज अंकुरित हो गए थे। किसान की खुशी की कोई सीमा नहीं थी। पांच साल बाद उसकी मेहनत सफल हुई थी। वह खेत गाँववालों के आकर्षण का केंद्र बन गया। बांस के पेड़ तेजी से बढ़ रहे थे। 5 फ़ीट…10 फ़ीट…20 फ़ीट…50 फ़ीट…70 फ़ीट…80 फ़ीट…और 90 फ़ीट। 5 सालों से खाली पड़ा किसान का खेत मात्र 5 सप्ताह में 90 फ़ीट बांस के पेड़ों से भर गया।
इस चमत्कार को देखकर सभी दंग थे। उधर किसान खुशी से फूला नहीं समा रहा था। वे बांस के पेड़ न केवल उसके परिवार का बल्कि उसकी कई पीढ़ियों का भरण-पोषण करने वाले थे। वह रह-रहकर भगवान का धन्यवाद कर रहा था। उसे यह भी समझ आ गया था कि जो सीख उसे मिली है, वह अमूल्य है। उसने सपनों का बीज बोने और उसे यथार्थ में परिणित करने के लिए रोज़ उसका पोषण और देखभाल करने की सीख मिल गई थी।
उसने लोगों की नकारात्मक बातों पर ध्यान न देने का पाठ भी पढ़ लिया था। उसने अपने भय और शंकाओं से परे हटकर अनवरत परिश्रम करने का महत्व समझ लिया था। साथ ही भगवान पर उसका विश्वास और अटल हो गया था। किसान ने पूरे गाँव के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत कर दिया। जिसके बाद गाँव के अन्य किसान भी अपने खेतों में बांस का पेड़ उगाने लगे और धैर्य से हर दिन उसकी देखभाल करने लगे।
Moral – अपने सपनों पर विश्वास रखें, ख़ुद पर विश्वास रखें, धैर्य से परिश्रम करते रहे। एक दिन आपको सफ़लता अवश्य प्राप्त होगी।
4. सेविका और भेड़िया की कहानी (बच्चों की रात की कहानियां)
दोपहर का समय था। घर पर सेविका छोटे बच्चे को खाना खिलाकर सुलाने की कोशिश कर रही थी। लेकिन बच्चा सो नहीं रहा था, बल्कि रोये जा रहा था। तंग आकर सेविका बच्चे को डराने के लिए बोली, “रोना बंद करो, नहीं तो मैं तुम्हें भेड़िये के सामने डाल दूंगी।” उसी समय एक भेड़िया उस घर के पास से गुजर रहा था। सेविका की बात सुनकर वह बड़ा ख़ुश हुआ।
सोचने लगा, “वाह क्या बात है!! आज का दिन तो शानदार है। बिना मेहनत के ही भोजन मिलने वाला है। यहीं बैठ जाता हूँ। जब सेविका बच्चे को मेरे सामने डालेगी, तो आराम खाऊंगा।” वह खिड़की के पास दुबककर बैठ गया और लार टपकाते हुए इंतज़ार करने लगा। उधर बच्चा सेविका की भेड़िये के सामने डाल देने वाली बात सुनकर डर गया और चुप हो गया।
भेड़िये इंतज़ार करता हुआ सोचने लगा कि ये बच्चा रो क्यों नहीं रहा है। जल्दी से ये रोये और जल्दी से सेविका इसे मेरे सामने डाल दे। लेकिन बहुत देर हो जाने पर भी बच्चे की रोने की आवाज़ नहीं आई। भेड़िया बेचैन हो उठा और खिड़की से घर के अंदर झांकने लगा।
भेड़िये को अंदर झांकते हुए सेविका ने देख लिया। उसने झटपट खिड़की बंद की और सहायता के लिए शोर मचाने लगी, “बचाओ बचाओ भेड़िया भेड़िया।” सेविका को शोर मचाता देख भेड़िया डरकर भाग गया।
Moral – शत्रु द्वारा दी गई आशा पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
5. खटमल और बेचारी जूं (Baccho Ki Kahani)
एक राजा के शयनकक्ष में मंद्विसर्पिणी नामक जूं ने अपना डेरा डाला हुआ था। वह राजा की शैय्या की सफ़ेद चादरों के बीच छुपकर रहा करती थी। राजा जब रात को सो जाता, तो वह चुपके से बाहर निकलती और राजा का रक्त पीकर वापस चादरों के बीच छुप जाती। राजा को अपनी शैय्या पर जूं के होने का आभास नहीं था। इस तरह जूं के दिन आराम से कट रहे थे।
एक दिन कहीं से अग्निमुख नामक खटमल उस शयनकक्ष में घुस आया। उस पर दृष्टि पड़ते ही जूं ने उसे भगाने का प्रयास किया। वह उसके कारण किसी विपत्ति में नहीं पड़ना चाहती थी। लेकिन खटमल कहाँ आसानी से मानने वाला था। वह मधुर वाणी में जूं से बोला, “मंद्विसर्पिणी बहन! कोई अपने शत्रु का भी इस तरह अपमान नहीं करता, जिस तरह तुम मेरा कर रही हो। मैं तो तुम्हारा मेहमान हूँ। पहली बार तुम्हारे डेरे में आया हूँ।
एक रात तो मुझे यहाँ रहने दो। तुम तो रोज़ यहाँ के राजा के मीठे रक्त का पान करती हो। आज मुझे भी उसका थोड़ा स्वाद ले लेने दो।” जूं खटमल की चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गई। उसने उसे वहाँ रात भर रहने की अनुमति दे दी। लेकिन साथ ही उसे आगाह करते हुए बोली, “अग्निमुख! तुम यहाँ रह तो रहे हो। लेकिन अपने चंचल स्वभाव पर तुम्हें नियंत्रण रखना होगा।
राजा की जब गहरी नींद पड़ जाये, तब मेरे रक्तपान करने के उपरांत ही तुम राजा का रक्त पीना और ध्यान रखना कि रक्तपान करते समय राजा को कोई पीड़ा ना हो। अन्यथा हम दोनों मारे जायेंगे।” खटमल ने जूं को वचन दिया कि जब तक वह राजा का रक्तपान नहीं करती, वो भी नहीं करेगा और किसी भी तरह से राजा को कष्ट नहीं पहुँचायेगा। उन दोनों का वार्तालाप समाप्त ही हुआ था कि राजा शयनकक्ष में आ गया और दीपक बुझाकर चादर तानकर सो गया।
इधर जूं राजा की नींद और गहरी होने की प्रतीक्षा कर रही थी। उधर खटमल की जीभ लोभ से तर हुई जा रही थी।राजा के मीठे रक्त के लोभ में वह अपना वचन भंग कर बैठा और जूं के पहले जाकर राजा पर अपने पैने दांत गड़ा दिए। अचानक हुई पीड़ा से राजा तड़पकर उठ बैठा। उसने संतरियों को बुलाया और कहा, “इस शैय्या में अवश्य जूं या खटमल है। तत्काल दीपक जलाकर उन्हें खोजो और मार दो।”
संतरियों ने दीपक जलाकर चादर की तहें खंगालनी प्रारंभ की। जूं हमेशा की तरह चादर की तहों में छुपी बैठी थी।खटमल राजा को काटकर पलंग के पायों के जोड़ में जा छुपा था। संतरियों की दृष्टि जूं पर पड़ गई। उन्होंने उसे पकड़कर मसल दिया। इस तरह खटमल की बातों पर विश्वास कर जूं मारी गई।
Moral – अज्ञात या विरोधी स्वाभाव के व्यक्ति की चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर उन पर विश्वास करना हानिकर है। उनसे सदैव सावधान रहना चाहिए।
6. सियार और ढोल (छोटे बच्चों की कहानी)
एक समय की बात है। जंगल के किनारे दो राजाओं में मध्य घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में एक राजा विजयी हुआ, एक पराजित। विजयी राजा के सिपाही और साथ गए भांड व चारण रात भर ढोल पीटकर उत्सव मनाते रहे और वीरगीत गाते रहे। सुबह-सुबह तेज आंधी आयी और उस आंधी में सिपाहियों का एक ढोल लुड़ककर दूर चला गया और एक पेड़ से जाकर टिक गया।
आंधी थमने के उपरांत राजा और उसके सिपाही अपने राज्य की ओर प्रस्थान कर गये। ढोल वहीं जंगल में पड़ा रह गया। ढोल जिस पेड़ से टिका पड़ा हुआ था, उसकी सूखी टहनियाँ तेज हवा चलने पर ढोल से टकराती और ढोल बज उठता। उसकी “ढमाढम” की आवाज पूरे जंगल में गूंज उठती।
एक भूखा सियार शिकार की तलाश में उस स्थान से गुजरा, जहाँ ढोल पड़ा हुआ था। ठीक उसी समय तेज हवा चली और पेड़ की सूखी टहनियाँ हिलते हुए ढोल से टकराई। ढोल “ढमाढम” करता बज उठा। ढोल की आवाज़ सुनकर सियार डर गया। उसने पहले कभी इस तरह की आवाज़ नहीं सुनी थी। वह सोचने लगा कि ये कैसा विचित्र स्वर वाला जीव है।
वह वहाँ से भागने ही वाला था कि उसके दिमाग में एक विचार सोचा, “किसी बात की गहराई में जाए बिना डर कर भागना उचित नहीं। मुझे इस विचित्र जीव के निकट जाकर पता करना चाहये कि वास्तव में ये कितना बलशाली है।” वह धीरे-धीरे ढोल के निकट पहुँचा। वहाँ उसने देखा कि पेड़ की टहनियाँ ढोल पर चोट कर रही हैं और उसमें से आवाज़ आ रही है।
सियार ने अपनी बुद्धि दौड़ाई और इस नतीज़े पर पहुँचा कि ये तो एक निरीह प्राणी है। पेड़ की शाखाओं की मार से कराह रहा है। वह स्वयं भी ढोल पर चोट करने लगा और ढोल बज उठा। ढोल का स्पर्श करने के उपरांत सियार ने सोचा कि इन जीव का शरीर विशाल और मांसल है। अवश्य इसमें खूब चर्बी, मांस और रक्त होगा। इसे खाकर तो मैं कई दिनों तक अपनी भूख मिटा सकता हूँ।
उसने ढोल के मोटे चमड़े के बाहरी आवरण पर अपने दांत गड़ा दिए। वह चमड़ा कठोर था। उसे काटने के प्रयास में सियार के सामने के दो दांत टूट गए। लेकिन अपनी ज़ोरों की भूख शांत करने के लिए वह डटा रहा और किसी प्रकार ढोल में छेदकर उसमें घुस गया। ढोल अंदर से खाली था। उसमें मांस-रक्त-मज्जा ना पाकर सियार बड़ा निराश हुआ। उसकी मेहनत व्यर्थ गई।
Moral – जैसे ढोल बाहर से विशाल और अंदर से खोखला था। वैसे ही अपने मुँह से स्वयं की बढ़-चढ़कर बड़ाई करने और शेखी बघारने वाले वास्तव में ढोल की तरह की खोखले होते हैं। इसलिए किसी के बाहरी आवरण और दिखावे से उसके प्रभाव में नहीं आना चाहिए। वास्तविकता का ज्ञान किसी चीज़ को भली-भांति जानने के बाद ही होता है।
7. चार ब्राह्मण की कहानी (Chote Baccho Ki Kahani in Hindi)
एक नगर में चार युवा ब्राह्मण रहते थे। धन उपार्जित करने के उद्देश्य से उन्होंने दूसरे नगर जाने का विचार किया और अवंती चले आये। वहाँ क्षिप्रा नदी में स्नान कर उन्होंने मंदिर में भगवान शिव की आराधना की। मंदिर में उनकी भेंट आराधक भैरवानंद से हुई। भैरवानंद ने उन चारों को अपने आश्रम में आमंत्रित किया और वे उसके साथ आश्रम चले आये।
पूरा दिन उन्होंने आश्रम में व्यतीत किया। वहाँ उन्हें ज्ञात हुआ कि भैरवानंद को अनेक सिद्धियाँ प्राप्त है। वे उससे अनुनय करने लगे, “मान्यवर, आपको अनेक सिद्धियाँ प्राप्त हैं। कृपा कर हमारा कल्याण करें। हमें धन उपार्जन का मार्ग बताएं।” उनका अनुनय सुन भैरवानंद को दया आ गई और उसने चारों को सूत से बनी एक-एक बत्ती देकर कहा, “तुम चारों इन बत्तियों को अपने हाथ में लेकर हिमालय की ओर प्रस्थान करो।
वहाँ की तराई में स्थित वन में तब तक चलते जाओ, जब तक बत्ती किसी स्थान पर गिर न पड़े। जहाँ बत्ती गिरे, उस स्थान की खुदाई करो। तुम्हें गड़ा धन प्राप्त होगा।” अगली सुबह बत्तियाँ लेकर चारों ब्राह्मणों ने हिमालय पर्वत की ओर प्रस्थान किया। कई दिनों की यात्रा पश्चात् वे हिमालय की तराई में पहुँचे।
वहाँ घने जंगल से गुजरते हुए एक ब्राह्मण की बत्ती गिर गई। उसने जब उस स्थान की खुदाई की, तो उसे ताम्बे की खान प्राप्त हुई। उसने दूसरे ब्राह्मणों से कहा, “आओ, जितना ताम्बा इकठ्ठा कर सकते हो, कर लो और वापस चलो।” लेकिन सबने मना कर दिया और बोले, “मूर्ख, हमने बहुत सारा ताम्बा इकट्ठा कर भी लिया, तब भी हमारी दरिद्रता समाप्त नहीं होगी। इसलिए हमें आगे बढ़ना चाहिए।”
पहला ब्राह्मण ताम्बा पाकर संतुष्ट था। इसलिए वह ताम्बा लेकर घर लौट गया। शेष तीन आगे बढ़ गए। कुछ दिन चलते रहने के बाद एक स्थान पर दूसरे ब्राह्मण के हाथ की बत्ती गिर गई। उसने उस स्थान की भूमि को खोदना प्रारंभ किया। वहाँ उसे चाँदी की खान प्राप्त हुई।
वह दूसरे ब्राह्मणों से बोला, “आओ, जितनी चांदी उठा सकते हो, उठा लो और घर वापस चलो।” लेकिन उन्होंने मना कर दिया और बोले, “मूर्ख. बहुत सारी चाँदी इकट्ठी कर लेने पर भी हमारी दरिद्रता समाप्त नहीं होगी। आगे हमें अवश्य सोने की खान प्राप्त होगी। इसलिए आगे चलो।”
लेकिन दूसरा ब्राहमण चाँदी पाकर संतुष्ट था। उसे चाँदी इकट्ठी की और घर लौट गया। शेष दो ब्राहमण आगे बढ़ गए। कुछ दिन चलते रहने के बाद तीसरे ब्राह्मण की बत्ती गिर गई। उस स्थान को खोदा गया, तो वहाँ सोने की खान निकली। वह अपने साथी से बोला, “आओ तुम भी जितना सोना चाहते हो, ले लो और घर वापस चलो। इससे आगे जाने की क्या आवश्यकता है?”
चौथे ब्राह्मण ने कहाँ “मूर्ख, तुममें बुद्धि है या नहीं। आगे अवश्य हमें हीरों की खान मिलेगी। हमें आगे बढ़ना चाहिए।” लेकिन तीसरा ब्राह्मण सोना पाकर संतुष्ट था। वह सोना लेकर घर लौट गया। चौथा ब्राहमण अपनी यात्रा अकेले ही जारी रखते हुए आगे बढ़ता रहा। गर्मी और भूख-प्यास से उसका बुरा हाल था। अब उसे रास्ता भी समझ नहीं आ रहा था। वह इधर-उधर भटकने लगा।
भटकते-भटकते वह एक स्थान पर पहुँचा, वहाँ उसने एक व्यक्ति को देखा। उसका शरीर खून से लथपथ था और उसके सिर पर एक चक्र घूम रहा था। ब्राहमण उसे देख अचरज में पड़ गया। वह उस व्यक्ति के पास गया और पूछने लगा, “आप कौन है और आपके सिर पर ये चक्र क्यों घूम रहा है?”
उसी क्षण व्यक्ति के सिर पर घूम रहा चक्र ब्राह्मण के सिर पर घूमने लगा। ब्राहमण चीख उठा, “यह क्या हुआ?” वह व्यक्ति बोला, “इन्हीं परिस्थितियों में यह चक्र मेरे सिर पर घूमने लगा था।” ब्राहमण को उस चक्र से बहुत कष्ट हो रहा था। उसने उस व्यक्ति से पूछा, “मुझे इससे कब मुक्ति मिलेगी?”
व्यक्ति ने उत्तर दिया, “जब कोई यह जादू की बत्ती लेकर आएगा और तुमसे बात करने लगेगा। तब तुम्हारे सिर से चक्र उतरकर उस व्यक्ति के सिर पर घूमने लगेगा।” इतना कहकर वह व्यक्ति चला गया और ब्राह्मण सिर पर घूमते चक्र के साथ वहाँ अकेला रह गया।
कई दिन बीत गए और ब्राह्मण घर नहीं लौटा, तो उसके सुवर्णसिद्धि नामक मित्र को उसकी चिंता हुई। वह उसके पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए उस स्थान पर पहुँच गया। वहाँ उसने देखा कि उसका ब्राह्मण मित्र खून से लथपथ है और उसके सिर पर एक चक्र घूम रहा है। यह देख वह चकित रह गया। उसने पूछा, “मित्र यह तुम्हें क्या हुआ है?”
चक्रधारी ब्राह्मण बोला, “भाग्य मेरे साथ नहीं है मित्र. यह उसी का परिणाम है।” फिर उसने अपने मित्र को घूमते चक्र की सारी कहानी सुना दी। जब उसने कहानी समाप्त की, तब मित्र बोला, “मित्र, तुम बहुत विद्वान हो। लेकिन तुममें विवेक-बुद्धि की कमी है। अब तक तुम्हें समझ नहीं आया कि यह चक्र तुम्हारे लोभ का परिणाम है। यदि तुम अधिक लोभ न कर वापस लौट आते, तो सुख का जीवन व्यतीत कर रहे होते।”
Moral – लोभ में बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।
8. सोने की गिन्नियों का बंटवारा (Baccho Ki Kahani in Hindi)
एक दिन की बात है। दो मित्र सोहन और मोहन अपने गाँव के मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर बातें कर रहे थे। इतने में एक तीसरा व्यक्ति जतिन उनके पास आया और उनकी बातों में शामिल हो गया। तीनों दिन भर दुनिया-जहाँ की बातें करते रहे। कब दिन ढला? कब शाम हुई? बातों-बातों में उन्हें पता ही नहीं चला। शाम को तीनों को भूख लग आई। सोहन और मोहन के पास क्रमशः 3 और 5 रोटियाँ थीं, लेकिन जतिन के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं था।
सोहन और मोहन ने तय किया कि वे अपने पास की रोटियों को आपस में बांटकर खा लेंगें। जतिन उनकी बात सुनकर प्रसन्न हो गया। लेकिन समस्या यह खड़ी हो गई है कि कुल 8 रोटियों को तीनों में बराबर-बराबर कैसे बांटा जाए? सोहन इस समस्या का समाधान निकालते हुए बोला, “हमारे पर कुल 8 रोटियाँ हैं। हम इन सभी रोटियों के 3-3 टुकड़े करते हैं। इस तरह हमारे पास कुल 24 टुकड़े हो जायेंगे। उनमें से 8-8 टुकड़े हम तीनों खा लेंगें।”
मोहन और जतिन को यह बात जंच गई और तीनों ने वैसा ही किया। रोटियाँ खाने के बाद वे तीनों उसी मंदिर की सीढ़ियों पर सो गए, क्योंकि रात काफ़ी हो चुकी थी। रात में तीनों गहरी नींद में सोये और सीधे अगली सुबह ही उठे। सुबह जतिन ने सोहन और मोहन से विदा ली और बोला, “मित्रों! कल तुम दोनों ने अपनी रोटियों में से तोड़कर मुझे जो टुकड़े दिए, उसकी वजह से मेरी भूख मिट पाई। इसके लिए मैं तुम दोनों का बहुत आभारी हूँ।
यह आभार तो मैं कभी चुका नहीं पाउँगा। लेकिन फिर भी उपहार स्वरुप मैं तुम दोनों को सोने की ये ८ गिन्नियाँ देना चाहता हूँ।” यह कहकर उसने सोने की 8 गिन्नियाँ उन्हें दे दी और विदा लेकर चला गया। सोने की गिन्नियाँ पाकर सोहन और मोहन बहुत खुश हुए। उन्हें हाथ में लेकर सोहन मोहन से बोला, “आओ मित्र, ये 8 गिन्नियाँ आधी-आधी बाँट लें। तुम 4 गिन्नी लो और 4 गिन्नी मैं लेता हूँ।”
लेकिन मोहन ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। वह बोला, “ऐसे कैसे? तुम्हारी 3 रोटियाँ थीं और मेरी 5. मेरी रोटियाँ ज्यादा थीं, इसलिए मुझे ज्यादा गिन्नियाँ मिलनी चाहिए। तुम 3 गिन्नी लो और मैं 5 लेता हूँ।” इस बात पर दोनों में बहस छोड़ गई। बहस इतनी बढ़ी कि मंदिर के पुजारी को बीच-बचाव के लिए आना पड़ा। पूछने पर दोनों ने एक दिन पहले का किस्सा और सोने की गिन्नियों की बात पुजारी जी को बता दी।
साथ ही उनसे निवेदन किया कि वे ही कोई निर्णय करें। वे जो भी निर्णय करेंगे, उन्हें स्वीकार होगा। यूँ तो पुजारी जी को मोहन की बात ठीक लगी। लेकिन वे निर्णय में कोई गलती नहीं करना चाहते थे। इसलिए बोले, “अभी तुम दोनों ये गिन्नियाँ मेरे पास छोड़ जाओ। आज मैं अच्छी तरह सोच-विचार कर लेता हूँ। कल सुबह तुम लोग आना। मैं तुम्हें अपना अंतिम निर्णय बता दूँगा।
सोहन और मोहन सोने की गिन्नियाँ पुजारी जी के पास छोड़कर चले गए। देर रात तक पुजारी जी गिन्नियों के बंटवारे के बारे में सोचते रहे। लेकिन किसी उचित निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके। सोचते-सोचते उन्हें नींद आ गई और वे सो गए। नींद में उन्हें एक सपना आया। उस सपने में उन्हें भगवान दिखाई पड़े। सपने में उन्होंने भगवान से गिन्नियों के बंटवारे के बारे में पूछा, तो भगवान बोले, “सोहन को 1 गिन्नी मिलनी चाहिए और मोहन को 7.”
यह सुनकर पुजारी जी हैरान रह गए और पूछ बैठे, “ऐसा क्यों प्रभु?” तब भगवान जी बोले, “देखो, राम के पास 3 रोटियाँ थी, जिसके उसने 9 टुकड़े किये। उन 9 टुकड़ों में से 8 टुकड़े उसने ख़ुद खाए और 1 टुकड़ा जतिन को दिया। वहीं मोहन में अपनी 5 रोटियों के 15 टुकड़े किये और उनमें से 7 टुकड़े जतिन को देकर ख़ुद 8 टुकड़े खाए।
चूंकि सोहन ने जतिन को 1 टुकड़ा दिया था और मोहन ने 7. इसलिए सोहन को 1 गिन्नी मिलनी चाहिए और मोहन को 7. पुजारी जी भगवान के इस निर्णय पर बहुत प्रसन्न और उन्हें कोटि-कोटि धन्यवाद देते हुए बोले, “प्रभु. मैं ऐसे न्याय की बात कभी सोच ही नहीं सकता था।” अगले दिन जब सोहन और मोहन मंदिर आकर पुजारी जी से मिले, तो पुजारी जी ने उन्हें अपने सपने के बारे में बताते हुए अंतिम निर्णय सुना दिया और सोने की गिन्नियाँ बांट दीं।
Moral – भगवान का निर्णय सदा न्याय-संगत होता है और हमें जीवन में जो भी मिल रहा होता है, वो बिल्कुल सही होता है।
9. किसान की घड़ी (Bacchon Wali Kahani)
एक किसान अपने खेत के पास स्थित अनाज की कोठी में काम कर रहा था। काम के दौरान उसकी घड़ी कहीं खो गई। वह घड़ी उसके पिता द्वारा उसे उपहार में दी गई थी। इस कारण उससे उसका भावनात्मक लगाव था। उसने वह घड़ी ढूंढने की बहुत कोशिश की। कोठी का हर कोना छान मारा। लेकिन घड़ी नहीं मिली। हताश होकर वह कोठी से बाहर आ गया। वहाँ उसने देखा कि कुछ बच्चे खेल रहे हैं।
उसने बच्चों को पास बुलाकर उन्हें अपने पिता की घड़ी खोजने का काम सौंपा। घड़ी ढूंढ निकालने वाले को ईनाम देने की घोषणा भी की। ईनाम के लालच में बच्चे तुरंत मान गए। कोठी के अंदर जाकर बच्चे घड़ी की खोज में लग गए। इधर-उधर, यहाँ-वहाँ, हर जगह खोजने पर भी घड़ी नहीं मिल पाई। बच्चे थक गए और उन्होंने हार मान ली।
किसान ने अब घड़ी मिलने की आस खो दी। बच्चों के जाने के बाद वह कोठी में उदास बैठा था। तभी एक बच्चा वापस आया और किसान से बोला कि वह एक बार फिर से घड़ी ढूंढने की कोशिश करना चाहता था। किसान ने हामी भर दी। बच्चा कोठी के भीतर गया और कुछ ही देर में बाहर आ गया। उसके हाथ में किसान की घड़ी थी।
जब किसान ने वह घड़ी देखी, तो बहुत ख़ुश हुआ। उसे आश्चर्य हुआ कि जिस घड़ी को ढूंढने में सब नाकामयाब रहे, उसे उस बच्चे ने कैसे ढूंढ निकाला? पूछने पर बच्चे ने बताया कि कोठी के भीतर जाकर वह चुपचाप एक जगह खड़ा हो गया और सुनने लगा।
शांति में उसे घड़ी की टिक-टिक की आवाज़ सुनाई पड़ी और उस आवाज़ की दिशा में खोजने पर उसे वह घड़ी मिल गई। किसान ने बच्चे को शाबासी दी और ईनाम देकर विदा किया।
Moral – शांति हमारे मन और मस्तिष्क को एकाग्र करती है और यह एकाग्र मन:स्थिति जीवन की दिशा निर्धारित करने में सहायक है।
10. अंतिम दौड़ (Baccho Ki Kahani)
बहुत समय पहले की बात है। एक प्रसिद्ध ऋषि गुरुकुल में बालकों को शिक्षा प्रदान किया करते थे। उनके गुरुकुल में अनेक राज्यों के राजकुमारों के साथ-साथ साधारण परिवारों के बालक भी शिक्षा प्राप्त करते थे। उस दिन वर्षों से शिक्षा प्राप्त कर रहे शिष्यों की शिक्षा पूर्ण हो रही थी और सभी बड़े ही उत्साह से अपने-अपने घर लौटने की तैयारी में थे।
जाने के पूर्व ऋषिवर ने सभी शिष्यों को अपने पास बुलाया। सभी शिष्य उनके समक्ष आकर एकत्रित हो गए। ऋषिवर सभी शिष्यों को संबोधित करते हुए बोले –
“प्रिय शिष्यों, आज आप सबका इस गुरूकुल में अंतिम दिन है। मेरी इच्छा है कि यहाँ से प्रस्थान करने के पूर्व आप सब एक दौड़ में सम्मिलित हो। ये एक बाधा दौड़ है, जिसमें आपको विभिन्न प्रकार की बाधाओं का सामना करना होगा। आपको कहीं कूदना होगा, तो कहीं पानी में दौड़ना होगा।
सारी बाधाओं को पार करने के उपरांत अंत में आपको एक अंधेरी सुरंग मिलेगी, जो आपकी अंतिम बाधा होगी। उस सुरंग को पार करने के उपरांत ही आपकी दौड़ पूर्ण होगी। तो क्या आप सब इस दौड़ में सम्मिलित होने के लिए तैयार है?” सभी शिष्य एक स्वर में बोले “हम तैयार है।”
दौड़ प्रारंभ हुई। सभी तेजी से भागने लगे। समस्त बाधाओं को पार करने के उपरांत वे अंत में सुरंग में पहुँचे। सुरंग में बहुत अंधेरा था, जब शिष्यों ने सुरंग में भागना प्रारंभ किया तो पाया कि उसमें जगह-जगह नुकीले पत्थर पड़े हुए है। वे पत्थर उनके पांव में चुभने लगे और उन्हें असहनीय पीड़ा होने लगी। लेकिन जैसे-तैसे दौड़ समाप्त कर वे सब वापस ऋषिवर के समक्ष एकत्रित हो गए।
ऋषिवर के उनसे प्रश्न किया, “शिष्यों, आप सबमें से कुछ लोंगों ने दौड़ पूरी करने में अधिक समय लिया और कुछ ने कम। भला ऐसा क्यों?”
उत्तर में एक शिष्य बोला, “गुरुवर! हम सभी साथ-साथ ही दौड़ रहे थे। लेकिन सुरंग में पहुँचने के बाद स्थिति बदल गई। कुछ लोग दूसरों को धक्का देकर आगे निकलने में लगे हुए थे, तो कुछ लोग संभल-संभल कर आगे बढ़ रहे थे। कुछ तो ऐसे भी थे, जो मार्ग में पड़े पत्थरों को उठा कर अपनी जेब में रख रहे थे, ताकि बाद में आने वालों को कोई पीड़ा न सहनी पड़े। इसलिए सबने अलग-अलग समय पर दौड़ पूरी की।”
पूरा वृत्तांत सुनने के उपरांत ऋषिवर ने आदेश दिया, “ठीक है! अब वे लोग सामने आये, जिन्होंने मार्ग में से पत्थर उठाये है और वे पत्थर मुझे दिखायें।” आदेश सुनने के बाद कुछ शिष्य सामने आये और अपनी जेबों से पत्थर निकालने लगे। लेकिन उन्होंने देखा कि जिसे वे पत्थर समझ रहे थे, वास्तव में वे बहुमूल्य हीरे थे। सभी आश्चर्यचकित होकर ऋषिवर की ओर देखने लगे।
“मैं जानता हूँ कि आप लोग इन हीरों को देखकर अचरज में पड़ गए हैं।” ऋषिवर बोले, “इन हीरों को मैंने ही सुरंग में डाला था। ये हीरे उन शिष्यों को मेरा पुरुस्कार है, जिन्होंने दूसरों के बारे में सोचा। शिष्यों यह दौड़ जीवन की भागमभाग को दर्शाती है, जहाँ हर कोई कुछ-न-कुछ पाने के लिए भाग रहा है।
लेकिन अंत में समृद्ध वही होता है, जो इस भागमभाग में भी दूसरों के बारे में सोचता है और उनका भला करता है। अतः जाते-जाते ये बात गांठ बांध लें कि जीवन में सफलता की ईमारत खड़ी करते समय उसमें परोपकार की ईंटें लगाना न भूलें। अंततः वही आपकी सबसे अनमोल जमा-पूंजी होगी।”
11. साँप की सवारी करने वाले मेंढकों की कहानी (Baccho Ki Kahaniyan)
एक पर्वतीय प्रदेश में एक वृद्ध साँप रहता था। उसका नाम मंदविष था। वृद्धावस्था के कारण उसके लिए अपने आहार की व्यवस्था करना कठिन होता जा रहा था। अतः वह बिना परिश्रम के किसी तरह भोजन जुटाने का उपाय सोचा करता था। एक दिन उसे एक उपाय सूझ गया। बिना समय गंवाए वह मेंढकों से भरे एक तालाब के किनारे पहुँचा और कुंडली मारकर यूं बैठ गया, मानो ध्यान में लीन हो।
जब एक मेंढक के उसे इस तरह देखा, तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उसने उससे पूछा, “क्या बात है साँप मामा? आज इस घड़ी आप यहाँ कुंडली मारकर बैठे हो। भोजन की व्यवस्था नहीं करनी है क्या? आज क्या आपका उपवास है?” मंदविष ने मधुर वाणी में उत्तर दिया, “अरे बेटा! आज प्रातः जो घटना मेरे साथ घटित हुई, उसने मेरी भूख हर ली है।” मेंढक ने जिज्ञासावश पूछा “ऐसा क्या हुआ मामा?”
“बेटा! प्रातः मैं एक नदी किनारे भोजन की तलाश में घूम रहा रहा था। वहाँ मुझे एक मेंढक दिखाई पड़ा। मैंने सोचा कि आज के भोजन की व्यवस्था हो गई और उसे पकड़ने बढ़ा। पास ही एक ब्राह्मण और उसका पुत्र ध्यान में लीन थे। जैसे ही मैंने मेंढक पर हमला किया, वह उछलकर दूर चला गया और ब्राह्मण का पुत्र मेरे दंश का शिकार बन गया। वह वहीं तड़पकर मर गया।
अपने पुत्र की मृत्यु देख ब्राह्मण क्रोधित हो गया और उसने मुझे मेंढकों का वाहन बनने का श्राप दे दिया। इसलिए मैं यहाँ तुम लोगों का वाहन बनने आया हूँ।” मेंढक ने यह बात अपने राजा जलपाद को बताई। राजा जलपाद ने सभा बुलाकर अपनी प्रजा को ये बात बताई। सबने निर्णय लिया कि वे वृद्ध साँप का श्राप पूर्ण करने में उसकी सहायता करेंगे। इस तरह वे साँप की सवारी का आनंद भी उठा लेंगे।
सब मिलकर मंदविष के पास गए। फन फैलाये मंदविष को देख सारे मेंढक डर गए। लेकिन जलपाद नहीं डरा और जाकर उसके फन पर चढ़ गया। मंदविष ने कुछ नहीं कहा। इसे अन्य मेंढकों का भी साहस बढ़ गया और वे भी मंदविष के ऊपर चढ़ने लगे। जब सारे मेंढक मंदविष के ऊपर चढ़ गए, तो वह उन्हें भांति-भांति के करतब दिखाने लगा। उसने उन्हें दिन भर इधर-उधर की ख़ूब सैर करवाई, जिसमें सभी मेंढकों को बड़ा आनंद आया।
अगले दिन वे सब फिर सवारी के लिए मंदविष के पास आये। मंदविष ने उन्हें अपने ऊपर चढ़ा तो लिया। लेकिन वह चला नहीं। यह देख जलपाद ने पूछा, “क्या बात है? आज आप हमें करतब नहीं दिखा रहे, न ही हमें घुमा रहे हैं।” मंदविष बोला, “मैंने कुछ दिनों से कुछ नहीं खाया है। इसलिए मुझे चलने में कठिनाई हो रही है।”
जलपाद बोला “अरे ऐसा है, तो आप छोटे-छोटे मेंढकों को खाकर अपनी भूख मिटा लो। फिर हमें ढेर सरे करतब दिखाओ।” मंदविष इसी अवसर की ताक में था। वह प्रतिदिन थोड़े-थोड़े मेंढक खाने लगा। जलपाद को अपने आनंद में यह भी सुध नहीं रहा कि धीरे-धीरे उसके वंश का नाश होता जा रहा है।
उसे होश तब आया, जब वह अकेला ही बचा और मंदविष उसे अपना आहार बनाने पर तुल गया। वह बहुत गिड़गिड़ाया। लेकिन मंदविष ने एक न सुनी और उसे भी लील गया। इस तरह पूरे मेंढक वंश का नाश हो गया।
Moral – अपने क्षणिक सुख के लिए अपने हितैषियों या वंश की हानि नहीं करनी चाहिए। अपने वंश की रक्षा में ही हमारी रक्षा है।
12. अवसर की पहचान (Stories for kids in Hindi)
पहाड़ी क्षेत्र में नदी किनारे एक छोटा सा गाँव बसा हुआ था। उस गाँव के लोग बहुत धार्मिक प्रवृति के थे। गाँव के मध्य स्थित मंदिर में सभी गाँव वाले दैनिक पूजा-अर्चना करते थे। उस मंदिर की देखभाल की ज़िम्मेदारी वहाँ के पुजारी पर थी। जो मंदिर परिसर में ही निवास करता था। वह सुबह से लेकर रात तक ईश्वर की अर्चना में लीन रहता था।
एक दिन गाँव पर प्रकृति का कहर मूसलाधार बारिश के रूप में टूटा, जिससे गाँव की नदी में बाढ़ आ गई। बाढ़ का पानी जब गाँव में प्रवेश कर गया, तो गाँव के लोग घर छोड़कर सुरक्षित स्थान पर जाने की तैयारी करने लगे। एक व्यक्ति को गाँव छोड़कर जाने के पहले मंदिर के पुजारी का ध्यान आया और वह भागता हुआ मंदिर पहुँचा।
वहाँ पहुँचकर वह पुजारी से बोला,”पंडितजी! बाढ़ का पानी हमारे घरों में घुसने लगा है। धीरे-धीरे बढ़ते हुए वो मंदिर तक भी पहुँच जायेगा। यदि हमने गाँव नहीं छोड़ा, तो बाढ़ में बह जायेंगे। हम सभी सुरक्षित स्थान पर जा रहे हैं। आप भी हमारे साथ चलिये।”
लेकिन पंडित उस व्यक्ति के साथ जाने को राज़ी नहीं हुआ। वह बोला, “मैं तुम लोगों जैसा नास्तिक नहीं हूँ। मुझे भगवान पर पूरा भरोसा है। पूरे जीवन मैंने उसकी आराधना की है। वह मुझे कुछ नहीं होने देगा। तुम लोगों को जाना है, तो जाओ। मैं यहीं रहूँगा।”
पंडित की बात सुनकर वह व्यक्ति वापस चला गया। पंडित भगवान की प्रार्थना में लीन हो गया। कुछ ही देर में बाढ़ का पानी मंदिर तक पहुँच गया। बढ़ते-बढ़ते वह पंडित के कमर तक पहुँच गया। ठीक उसी समय एक आदमी नाव लेकर वहाँ आया और पंडित से बोला, “पंडित जी, मुझे गाँव के एक आदमी ने बताया कि आप अब भी यहीं हैं। मैं आपको लेने आया हूँ। चलिये, नाव पर बैठिये।”
पंडित ने वही बात नाव वाले व्यक्ति से भी कही, जो उसने पहले व्यक्ति से कहीं थी और जाने से इंकार कर दिया। नाव लेकर आया व्यक्ति चला गया। कुछ देर में पानी मंदिर के छत तक पहुँच गया। भगवान को मदद के लिए याद करता हुआ पंडित मंदिर के सबसे ऊँचे शिखर पर जाकर खड़ा हो गया।
तभी वहाँ एक सुरक्षा दल हेलीकॉप्टर से आया और पंडित को बचाने के लिए रस्सी फेंकी। लेकिन पंडित ने वही बात दोहराते हुए रस्सी पकड़ने से इंकार कर दिया। सुरक्षा दल का हेलीकॉप्टर दूसरों को बचाने आगे चला गया। अब बाढ़ का पानी मंदिर के शिखर तक आ गया था। वहाँ खड़ा पंडित डूबने लगा।
डूबने के पहले वह भगवान से शिकायत करते हुए बोला, “भगवान! मैंने पूरा जीवन तुझे समर्पित कर दिया। मैंने तुझ पर इतना विश्वास रखा। फिर भी तुम मुझे बचाने नहीं आये।” पंडित की शिकायत सुन भगवान प्रकट हुए और बोले, “अरे मूर्ख! मैं तीन बार तुझे बचाने आया था। पहली बार मैं भागते हुए तुम्हारे पास आया और गाँव वालों के साथ गाँव छोड़कर चलने कहता रहा।
फिर मैं नाव लेकर आया और अंत में हेलीकॉप्टर। अब इसमें मेरी क्या गलती कि तूने मुझे पहचाना नहीं?” पंडित को अपनी गलती समझ में आ गई। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
Moral – जीवन में अवसर बिना बताये दस्तक देते है। हम उन्हें पहचान नहीं पाते और जीवन भर शिकायत करते रहते हैं कि अच्छा और सफ़ल जीवन जीने का हमें अवसर ही प्राप्त नहीं हुआ। इसलिए अवसर किसी भी रूप में सामने आये, उसे अपने हाथ से ना जाने दे।
13. मित्र दोह का फल (Baccho Ki Kahani Hindi Me)
एक दिन पापबुद्धि ने विदेश जाकर धन अर्जित करने का मन बनाया और धर्मबुद्धि के पास आकर बोला, “मित्र! क्यों न धन अर्जन के लिए हम विदेश यात्रा करें? वहाँ पर्याप्त धन अर्जित करने के उपरांत हम दोनों अपने नगर वापस लौट आयेंगे और सुख-संपन्नता का जीवन व्यतीत करेंगे।”
धर्मबुद्धि को पापबुद्धि की बात उचित प्रतीत हुई और वह विदेश यात्रा में पापबुद्धि के साथ हो लिया। दोनों ने देश-देशांतर की यात्रा की और प्रचुर धन अर्जित किया। अर्जित धन के साथ जब वे अपने नगर लौटने लगे, तो पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि से कहा, “मित्र! इतना धन देखकर हमारे सगे-संबंधी कहीं हमसे ईर्ष्या ना करने लगे।
ऐसे में अनिस्ट की आशंका रहेगी। इसलिए उचित होगा कि हम अपना धन नगर के बाहर किसी सुरक्षित स्थान पर रख दें।” धर्मबुद्धि पापबुद्धि से सहमत हो गया और दोनों ने नगर पहुँचने के पूर्व अपने धन का बड़ा अंश एक पेड़ के नीचे गड्ढा खोदकर डाल दिया। गड्ढे को मिट्टी से ढककर उसे सूखी पत्तियों से छुपाकर वे नगर आ गए।
कुछ दिन व्यतीत होने के उपरांत पापबुद्धि उसी स्थान पर वापस लौटा। गड्ढे को खोदकर उसने पूरा धन निकाल लिया और उस पर मिट्टी डालकर पुनः सूखी पत्तियों से ढक दिया। पूरा धन घर में छुपाने के उपरांत वह धर्मबुद्धि के पास पहुँचा और बोला, “मित्र! मुझे पारिवारिक कारणों से धन की आवश्यकता पड़ गई है।
इसलिए चलो हमारे विदेश में अर्जित धन में से कुछ धन निकालकर ले आते हैं।” धर्मबुद्धि तैयार हो गया। दोनों जंगल में निर्धारित स्थान पर पहुँचे। धर्मबुद्धि ने गड्ढा खोदा, लेकिन वहाँ से धन गायब था। दुष्ट पापबुद्धि रोने-पीटने का नाटक करने लगा और धर्मबुद्धि पर धन चुराने का आरोप लगाने लगा।
बात नगर के धर्माधिकारी के पास पहुँची। पापबुद्धि ने धर्माधिकारी के समक्ष धर्मबुद्धि पर चोरी का आरोप लगाया और न्याय की गुहार लगाने लगा। धर्मबुद्धि अपने मित्र के इस व्यवहार से आश्चर्यचकित था। वह धर्माधिकारी के समक्ष जड़वत खड़ा रहा। पापबुद्धि कहने लगा, “जिस स्थान पर हमने धन गड्ढे में डाला था, वहाँ के पेड़ साक्षी हैं। आप उनसे पूछिये? वो जिसे चोर कहेंगे, उसे चोर मान लिया जाये।”
धर्माधिकारी ने निश्चय किया कि अगले दिन पेड़ों की साक्षी ली जायेगी। साक्षी के बयान अनुसार ही निर्णय सुनाया जायेगा। सुबह मुँह अँधेरे पापबुद्धि ने अपने पिता को गड्ढे के पास के पेड़ की खोखली जड़ के अंदर बिठा दिया और बोला, “जब धर्माधिकारी पेड़ से पूछें कि चोर कौन है, तो आप धर्मबुद्धि का नाम लेना।”
पिता ने ठीक वैसा ही किया। धर्माधिकारी ने जब पेड़ से पूछा, “वनदेवता! धर्मबुद्धि और पापबुद्धि के धन चोरी हो जाने के प्रकरण में आप साक्षी हैं। कृपया बतायें इन दोनों में चोर कौन है?” प्रश्न सुनते ही पेड़ के खोखले जड़ के अंदर बैठा पापबुद्धि का पिता बोला पड़ा, “धर्मबुद्धि चोर है।”
पेड़ का उत्तर सुन सब आश्चर्यचकित रह गए। धर्माधिकारी ने साक्षीस्वरुप पेड़ का उत्तर स्वीकार कर लिया। वह अपना निर्णय सुनाने को हुए ही थे कि धर्मबुद्धि ने पेड़ की खोखली जड़ में आग लगा दी। आग की लपटों के कारण पापबुद्धि का पिता झुलस गया और चीखते हुए पेड़ की जड़ से बाहर निकला।
मृत्यु पूर्व उसने पापबुद्धि के द्वारा धन चोरी करने का भेद खोल दिया। दंड स्वरुप धर्माधिकारी ने पापबुद्धि को उसी पेड़ पर लटका दिया। पापबुद्धि को उसके कर्मों का फल मिल गया। एक ओर उसके ऊपर पिता के वध का पाप चढ़ा और दूसरी ओर अपने कर्म का दंड भी मिला।
Moral – बुरे कर्मों का फल बुरा ही होता है।
14. भगवान की मर्ज़ी (Bacchon Ke Liye Kahaniyan)
एक आदमी मंदिर में सेवक था। उसका काम मंदिर की साफ-सफ़ाई करना था। भक्तों और श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए दान में से थोड़ा-बहुत उसे मंदिर के पुजारी द्वारा दे दिया जाता। इसी से उसकी गुजर-बसर चल रही थी। वह अपनी जिंदगी से बहुत परेशान और दु:खी था। मंदिर में काम करते-करते वह दिन भर अपनी ज़िंदगी को लेकर शिकायतें करता रहता।
एक दिन शिकायत करते हुये वह भगवान से बोला, “भगवान जी! आपकी ज़िंदगी कितनी आसान है। आपको बस एक जगह आराम से खड़े रहना होता है। मेरी ज़िंदगी को देखो। कितनी कठिन ज़िंदगी जी रहा हूँ। मैं दिन भर कड़ी मेहनत करता हूँ, तब कहीं दो वक़्त की रोटी नसीब हो पाती है। काश मेरी ज़िंदगी भी आपकी तरह होती।”
उसकी बात सुनकर भगवान बोले, “तुम जैसा सोच रहे हो, वैसा नहीं है। मेरी जगह रहना बिल्कुल आसान नहीं है।मुझे बहुत सारी चीज़ें देखनी पड़ती है। बहुत सी व्यवस्थायें करनी पड़ती है। ये हर किसी के बस की बात नहीं है।” “भगवान जी! कैसी बात कर रहे हैं आप? आपका काम आसान ही तो है। आपकी तरह तो मैं भी दिन भर खड़े रह सकता हूँ। इसमें कौन सी बड़ी बात है?” मंदिर का सेवक बोला।
भगवान बोले “तुम नहीं कर पाओगे। इस काम में बहुत धैर्य की आवश्यकता पड़ती है।”
“मैं ज़रूर कर पाऊँगा। आप मुझे एक दिन अपनी ज़िंदगी जीने दीजिये। आप जैसा बतायेंगे, मैं वैसा ही करूँगा।” मंदिर का सेवक ज़िद करने लगा। उसकी ज़िद के आगे भगवान मान गए और बोले, “ठीक है! आज पूरा दिन तुम मेरी ज़िंदगी जिओ। मैं तुम्हारी ज़िंदगी जीता हूँ। लेकिन मेरी ज़िंदगी जीने के लिए तुम्हें कुछ शर्ते माननी होगी।”
फिर सेवक बोला “मैं हर शर्त मानने को तैयार हूँ भगवान जी।” “ठीक है! तो ध्यान से सुनो। मंदिर में दिन भर बहुत से लोग आयेंगे और तुमसे बहुत कुछ कहेंगे। कुछ तुम्हें अच्छा बोलेंगे, तो कुछ बुरा। तुम्हें हर किसी की बात चुपचाप एक जगह मूर्ति की तरह खड़े रहकर धैर्य के साथ सुननी है और उन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देनी है।”सेवक मान गया। भगवान और उसने अपनी ज़िंदगी एक दिन के लिए आपस में बदल ली।
सेवक भगवान की जगह मूर्ति बनकर खड़ा हो गया। भगवान मंदिर की साफ़-सफाई का काम निपटाकर वहाँ से चले गए। कुछ समय बीतने के बाद मंदिर में एक धनी व्यापारी आया। भगवान से प्रार्थना करते हुए वह बोला, “भगवान जी! मैं एक नई फैक्ट्री डाल रहा हूँ। मुझे आशीर्वाद दीजिये कि यह फैक्ट्री अच्छी तरह चले और मैं इससे अच्छा मुनाफ़ा कमाऊँ।”
प्रार्थना करने के बाद वह प्रणाम करने के लिए नीचे झुका, तो उसका बटुआ गिर गया। जब वह वहाँ से जाने लगा, तो भगवान की जगह खड़े मंदिर के सेवक का मन हुआ कि उसे बता दें कि उसका बटुआ गिर गया है। लेकिन शर्त अनुसार उसे चुप रहना था। इसलिए वह कुछ नहीं बोला और ख़ामोश खड़ा रहा।
इसके तुरंत बाद एक गरीब आदमी वहाँ आया और वो भगवान से बोला, “भगवान जी! बहुत गरीबी में जीवन काट रहा हूँ। परिवार का पेट पालना है। माँ की दवाई की व्यवस्था करनी है। समझ नहीं पा रहा हूँ कि इतना सब कैसे करुँ। आज देखो, मेरे पास बस 1 रुपया है। इससे मैं क्या कर पाउँगा? आप ही कुछ चमत्कार करो और मेरे लिए धन की व्यवस्था कर दो।”
प्रार्थना करने का बाद जैसे ही वह जाने को हुआ, उसे नीचे गिरा व्यापारी का बटुआ दिखाई दिया। उसने बटुआ उठा लिया और भगवान को धन्यवाद देते हुए बोला “भगवान जी आप धन्य है। आपने मेरी प्रार्थना इतनी जल्दी सुन ली। इन पैसों से मेरा परिवार कुछ दिन भोजन कर सकता है। माँ की दवाई की भी व्यवस्था हो जाएगी।”
भगवान को धन्यवाद देकर वह वहाँ से जाने लगा। तब भगवान बने मंदिर के सेवक का मन हुआ कि उसे बता दे कि वह बटुआ तो व्यापारी का है। उसे मैंने नहीं दिया है। वह जो कर रहा है, वह चोरी है। लेकिन वह चुप रहने के लिए विवश था। इसलिए मन मारकर चुपचाप खड़ा रहा।
मंदिर में आने वाला तीसरा व्यक्ति एक नाविक था। वह 15 दिन के लिए समुद्री यात्रा पर जा रहा था। भगवान से उसने प्रार्थना की कि उसकी यात्रा सुरक्षित रहे और वह सकुशल वापस वापस आ सके। वह प्रार्थना कर ही रहा था कि धनी व्यापारी वहाँ आ गया। वह अपने साथ पुलिस भी लेकर आया था। नाविक को देखकर वह पुलिस से बोला, “मेरे बाद ये मंदिर में आया है। ज़रुर इसने ही मेरा बटुआ चुराया होगा। आप इसे गिरफ़्तार कर लीजिये।”
पुलिस नाविक को पकड़कर ले जाने लगी। भगवान बने आदमी को अपने सामने होता हुआ ये अन्याय सहन नहीं हुआ। शर्त अनुसार उसे चुप रहना था। लेकिन उसे लगा कि बहुत गलत हो चुका है। यदि अब मैं चुप रहा, तो एक बेकुसूर आदमी को व्यर्थ में ही सजा भुगतनी पड़ेगी।
उसने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा, “आप गलत व्यक्ति को पकड़ कर ले जा रहे है। ये बटुआ इस नाविक ने नहीं, बल्कि इसके पहले आये गरीब व्यक्ति ने चुराया है। मैं भगवान हूँ और मैंने सब देखा है।” पुलिस भगवान की बात कैसे नहीं मानती? उनकी बात मानकर उन्होंने नाविक को छोड़ दिया और उस गरीब आदमी को पकड़ लिया, जिसने बटुआ लिया था।
शाम को जब भगवान वापस आये, तो मंदिर के सेवक ने पूरे दिन का वृतांत सुनाते हुए उन्हें गर्व के साथ बताया कि आज मैंने एक व्यक्ति के साथ अन्याय होने से रोका है। देखिए आपकी ज़िंदगी जीकर आज मैंने कितना अच्छा काम किया है। उसकी बात सुनकर भगवान बोले, “ये तुमने क्या किया? मैंने तुमसे कहा था कि चुपचाप मूर्ति बनकर खड़े रहना। लेकिन वैसा न कर तुमने मेरी पूरी योजना पर पानी फेर दिया।
उस धनी व्यापारी ने बुरे कर्मों द्वारा इतना धन कमाया है। यदि उसमें से कुछ पैसे गरीब आदमी को मिल जाते, तो उसका भला हो जाता और व्यापारी के पाप भी कुछ कम हो जाते। जिस नाविक को तुमने समुद्री यात्रा पर भेज दिया है, अब वह जीवित वापस नहीं आ पायेगा। समुद्र में बहुत बड़ा तूफ़ान आने वाला है। यदि वह कुछ दिन जेल में रहता, तो कम से कम बच जाता।
सेवक को यह सुनकर अहसास हुआ कि वह तो बस वही देख पा रहा था, जो आँखों के सामने हो रहा था। उन सबके पीछे की वास्तविकता को वह देख ही नहीं पा रहा था। जबकि भगवान जीवन के हर पहलू पर विचार अपनी योजना बनाते हैं और लोगों के जीवन को चलाते हैं।
Moral – हम सब भी भगवान की योजनाओं को समझ नहीं पाते। जब हमारे साथ कुछ गलत हो रहा होता है या हमारे हिसाब से कुछ नहीं हो रहा होता है, तो अपना धैर्य खोकर हम भगवान को दोष देने लगते है। हम ये समझ नहीं पाते कि इन सबके पीछे भगवान की कोई न कोई योजना छुपी हुई होती है।
ऐसे समय में हमें भगवान पर विश्वास रखकर धैर्य धारण करने की आवश्यता है। इसलिए चिंता न करें। यदि आपकी मर्ज़ी से कुछ नहीं हो रहा, तो इसका अर्थ है कि वह भगवान की मर्ज़ी से हो रहा है और भले ही देर से ही सही, भगवान की मर्ज़ी से सब अच्छा ही होता है।
15. शिकंजी का स्वाद (Baccho Ki Kahani Hindi)
एक प्रोफ़ेसर क्लास ले रहे थे। क्लास के सभी छात्र बड़ी ही रूचि से उनके लेक्चर को सुन रहे थे। उनके पूछे गये सवालों के जवाब दे रहे थे। लेकिन उन छात्रों के बीच कक्षा में एक छात्र ऐसा भी था, जो चुपचाप और गुमसुम बैठा हुआ था। प्रोफ़ेसर ने पहले ही दिन उस छात्र को नोटिस कर लिया, लेकिन कुछ नहीं बोले।
लेकिन जब 4-5 दिन तक ऐसा ही चला, तो उन्होंने उस छात्र को क्लास के बाद अपने केबिन में बुलवाया और पूछा, “तुम हर समय उदास रहते हो। क्लास में अकेले और चुपचाप बैठे रहते हो। लेक्चर पर भी ध्यान नहीं देते। क्या बात है? कुछ परेशानी है क्या?”
“सर, वो” छात्र कुछ हिचकिचाते हुए बोला, “मेरे अतीत में कुछ ऐसा हुआ है, जिसकी वजह से मैं परेशान रहता हूँ। समझ नहीं आता क्या करुँ?”
प्रोफ़ेसर भले व्यक्ति थे। उन्होंने उस छात्र को शाम को अपने घर पर बुलवाया। शाम को जब छात्र प्रोफ़ेसर के घर पहुँचा, तो प्रोफ़ेसर ने उसे अंदर बुलाकर बैठाया। फिर स्वयं किचन में चले गये और शिकंजी बनाने लगे। उन्होंने जानबूझकर शिकंजी में ज्यादा नमक डाल दिया।
फिर किचन से बाहर आकर शिकंजी का गिलास छात्र को देकर कहा, “ये लो, शिकंजी पियो।” छात्र ने गिलास हाथ में लेकर जैसे ही एक घूंट लिया, अधिक नमक के स्वाद के कारण उसका मुँह अजीब सा बन गया। यह देख प्रोफ़ेसर ने पूछा, “क्या हुआ? शिकंजी पसंद नहीं आई?”
छात्र बोलै “नहीं सर, ऐसी बात नहीं है। बस शिकंजी में नमक थोड़ा ज्यादा है।”
“अरे, अब तो ये बेकार हो गया। लाओ गिलास मुझे दो। मैं इसे फेंक देता हूँ।” प्रोफ़ेसर ने छात्र से गिलास लेने के लिए अपना हाथ बढ़ाया। लेकिन छात्र ने मना करते हुए कहा, “नहीं सर, बस नमक ही तो ज्यादा है। थोड़ी चीनी और मिलायेंगे, तो स्वाद ठीक हो जायेगा।”
यह बात सुन प्रोफ़ेसर गंभीर हो गए और बोले, “सही कहा तुमने। अब इसे समझ भी जाओ। ये शिकंजी तुम्हारी जिंदगी है। इसमें घुला अधिक नमक तुम्हारे अतीत के बुरे अनुभव है। जैसे नमक को शिकंजी से बाहर नहीं निकाल सकते, वैसे ही उन बुरे अनुभवों को भी जीवन से अलग नहीं कर सकते। वे बुरे अनुभव भी जीवन का हिस्सा ही हैं।
लेकिन जिस तरह हम चीनी घोलकर शिकंजी का स्वाद बदल सकते हैं। वैसे ही बुरे अनुभवों को भूलने के लिए जीवन में मिठास तो घोलनी पड़ेगी ना। इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम अब अपने जीवन में मिठास घोलो।” प्रोफ़ेसर की बात छात्र समझ गया और उसने निश्चय किया कि अब वह बीती बातों से परेशान नहीं होगा।
Moral – जो हो चुका, उसे सुधारा नहीं जा सकता। लेकिन कम से कम उसे भुलाया तो जा सकता है और उन्हें भुलाने के लिए नई मीठी यादें हमें आज बनानी होगी। जीवन में मीठे और ख़ुशनुमा लम्हों को लाइये, तभी तो जीवन में मिठास आयेगी।
16. प्यासा कौवा की कहानी
17. चालाक लोमड़ी की कहानी
18. खरगोश और कछुआ की कहानी
19. चींटी और कबूतर की कहानी
20. शेर और चूहे की कहानी
21. चूहे की कहानी
22. अकबर बीरबल की कहानी
Moral Stories in Hindi for Class 1
Moral Stories in Hindi for Class 2
Moral Stories in Hindi for Class 3
Moral Stories in Hindi for Class 5
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FAQs about Baccho Ki Kahani
Q1. दुनिया में सबसे अच्छी कहानी कौन सी है?
दुनिया में बहुत सारी अच्छी कहानियाँ है। जैसे की :
1. कौवे और उल्लू के बैर की कथा
2. चीनी बांस के पेड़ की प्रेरणादायक कहानी
3. सेविका और भेड़िया की कहानी
4. सियार और ढोल
5. चार ब्राह्मण की कहानी
6. किसान की घड़ी
7. अंतिम दौड़
8. अवसर की पहचान
9. मित्र दोह का फल
10. भगवान की मर्ज़ी
Q2. सबसे अच्छी प्रेरणादायक कहानी कौन सी है?
वैसे तो कई अच्छी प्रेरणादायक कहानी है। लेकिन चीनी बांस के पेड़ की प्रेरणादायक कहानी बहुत अच्छी है। जिससे हमें ये शिक्षा मिलती है कि हमें ख़ुद पर विश्वास रखना चाहिए और धैर्य से परिश्रम करते रहना चाहिए। एक दिन आपको सफ़लता अवश्य प्राप्त होगी।
Q3. बच्चे कहानी सुनना क्यों पसंद करते हैं?
बच्चे कहानी सुनना इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि कहानी बहुत ही रोचक होती है। बच्चों को कहानी में नए-नए किरदारों के बारे में जानने में इच्छा होती है। कहनी से बच्चे बहुत कुछ सीखते है।
Q4. कहानी पढ़ने से क्या लाभ है?
कहानी पढ़ने से बच्चों को एक अच्छी नैतिक शिक्षा मिलती है और उन्हें जीवन के बारे में बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है।