Top 25+ Moral Stories in Hindi for Class 5 | कक्षा 5 के लिए कहानी

नमस्कार दोस्तों आज हम इस लेख में छोटे बच्चों की मोरल कहानियों Moral Stories in Hindi for Class 5 के बारे में पढ़ेंगे। यह कहानियाँ आपके बच्चों के जीवन में बहुत सी अच्छी बातें सिखाएगी और इससे उन्हें नैतिक शिक्षा भी मिलेगी। अगर आपको यह Class 5 Moral Stories पसंद आए तो इसे शेयर जरूर कीजियेगा। तो आए जानते है Hindi Story for Class 5 के बारे में।

Table of Contents

1. खरगोश और उसके मित्र (Moral Stories in Hindi for Class 5)

Hindi story for class 5

एक खरगोश था। उसके अनेक मित्र थे। वह हमेशा अपने मित्रों से मिलता और उनके साथ गपशप भी करता। हौके-मौके वह उनकी मदद भी करता। मगर एक दिन खरगोश खुद संकट में पड़ गया। कुछ शिकारी कुत्ते उसका पीछा करने लगे। यह देखकर खरगोश जान बचाने के लिए सरपट भागने लगा। भागते-भागते खरगोश का दम फूलने लगा। वह थककर चूर हो गया। मौका देखकर वह एक घर्नी झाड़ी में घुस गया और वहीं छिपकर बैठ गया। 

पर उसे यह डर सता रहा था कि कुत्ते किसी भी क्षण वहाँ आ पहुँचेंगे और सूँघते-सूँघते उसे ढूँढ़ निकालेंगे। वह समझ गया कि यदि समय पर उसका कोई मित्र न पहुँच सका, तो उसकी मृत्यु निश्वित है। तभी उसकी नजर अपने मित्र घोड़े पर पड़ी। वह रास्ते पर तेजी से दौड़ता हुआ जा रहा था। खरगोश नें घोड़े को बुलाया तो घोड़ा रुक गया। उसने घोड़े से प्रार्थना की, “घोड़े भाई, कुछ शिकारी कुत्ते मेरे पीछे पड़े हुए हैं।

कृपया मुझे अपनी पीठ पर बिठा लो और कहीं दूर ले चलो। अन्यथा ये शिकारी कुत्ते मुझे मार डालेंगे। घोड़े नें कहा, “प्यारे भाई! मैं तुम्हारी मद्द तो जरुर करता, पर इस समय मैं बहुत जल्दी में हूँ। वह देखों तुम्हारा मित्र बैल इथर ही आ रहा है। तुम उससे कहो। वह जरुर तुम्हारी मदद करेगा।” यह कहकर घोड़ा तेजी से सरपट दौड़ता हुआ चला गया। खरगोश ने बैल से प्रार्थना की, “बैल दादा, कुछ शिकारी कुत्ते मेरा पीछा कर रहे हैं। 

कृपया आप मुझे अपनी पीठ पर बिठा ले और कहीं दूर ले चले। नहीं तो कुत्ते मुझे मार डालेंगें।” बैल ने जवाब दिया, “भाई खरगोश! मैं तुम्हारी मदद जरुर करता। पर इस समय मेरे कुछ दोस्त बड़ी बेचैनी से मेरा इंतजार कर रहे होंगे। इसलिए मुझे वहाँ जल्दी पहुँचना है। देखो, तुम्हारा मित्र बकरा इधर ही आ रहा है। उससे कहो, वह जरुर तुम्हारी मद्द करेगा। यह कहकर बैल भी चला गया।”

खरगोश ने बकरे से विनती की, “बकरे चाचा, कुछ शिकारी कुत्ते मेरा पीछा कर रहे हैं। तुम मुझें अपनी पीठ पर बिठाकर कहीं दूर ले चलो, तो मेरे प्राण बच जाएँगे। वरना वे मुझे मार डालेंगे। बकरे ने कहा, “बेटा, मैं तुम्हें अपनी पीठ पर दूर तो ले जाऊँ, पर मेरी पीठ खुरदरी है। उस पर बैठने से तुम्हारे कोमल शरीर को बहुत तकलीफ होगी। मगर चिंता न करो। देखो, तुम्हारी दोस्त भेड़ इथर ही आ रही है। उससे कहोगे तो वह जरुर तुम्हारी मद्द करेगी।” 

यह कहकर बकरा भी चलता बना। खरगोश ने भेड़ से भी मदद की याचना की, पर उसने भी खरगोश से बहाना करके अपना पिछा छुड़ा लिया। इस तरह खरगोश के अनेक पुराने मित्र वहाँ से गुजरे। खरगोश ने सभी से मदद करने की प्रार्थना की, पर किसी ने उसकी मदद नहीं की। सभी कोई न कोई बहाना कर चलते बने। खरगोश के सभी मित्रो ने उसे उसके भाग्य के भरोसे छोड़ दिया।

खरगोश ने मन ही मन कहा, अच्छे दिनों में मेरे अनेक मित्र थे। पर आज संकट के समय कोई मित्र काम नहीं आया। मेरे सभी मित्र केवल अच्छे दिन के ही साथी थे। थोड़ी देर में शिकारी कुत्ते आ पहुँचे। उन्होंने बेचारे खरगोश को मार डाला। अफसोस की बात है कि इतने सारे मित्र होते हुए भी खरगोश बेमौत मारा गया।

Moral – स्वार्थी मित्र पर विश्वास करने से सर्वनाश ही होता है।

2. चार मित्र (Hindi Story for Class 5)

Short moral stories in hindi for class 5

एक गाँव में चार मित्र रहते थे। उनमें से तीन बहुत ही विद्वान थे। पर वे व्यावहारिक ज्ञान की दृटि से एकदम कोरे थे। चोथा मित्र पढ़ा-लिखा तो कम था, पर वह व्यावहारिक ज्ञान में माहिर था। एक बार चारों मित्र अपना-अपना भाग्य आजमाने राजधानी की ओर चल पड़े। रास्ते में एक जंगल आया। वहाँ उन्हें एक पेड़ के नीचे कुछ हड्डियाँ दिखाई दी। 

उनमें से एक व्यक्ति ने उन हड्डियों का निरक्षण करते हुए कहा, ये हड्डियाँ किसी शेर की हैं। इन हड्डियों को एकत्र कर मैं अपनी विद्या से मरे हुए शेर का कंकाल तैयार कर सकता हूँ।

दूसरे विद्वान ने कहा, मैं अपने ज्ञान के बल से उस कंकाल पर मांस चढ़ा कर एवं रक्त से भरकर उसे खाल से ढक सकता हूँ। तीसरे विद्वान ने कहा, मैं अपनी विद्या से इस निर्जीव प्राणी को जीवित कर सकता हूँ।

व्यावहारिक ज्ञान में माहिर चौथे मित्र को अपने तीनों मित्रों की बाते सुनकर बड़ा आश्र्चय हुआ। उसने अपने विद्वान मित्रों को सावधान करते हुए कहा, मित्रो, शेर को जीवित करना खतरे से खाली नहीं होगा। यह सुनकर पहले विद्वान ने कहा, अरे, यह तो मूर्ख है! इस बेवकूफ को हमारे ज्ञान से ईष्या हो रही है।

दोनो विद्वान मित्रों ने भी उसका समर्थन किया। यह देखकर वह समझदार व्यक्ति दौड़कर एक पेड़ पर चढ़ गया। तीनों विद्वान मित्रों ने अपने-अपने ज्ञान का प्रयोग करना शुरू कर दिया। पहले विद्वान ने सारी हड्डियाँ एकत्र कर उसका कंकाल तैयार किया। दूसरे विद्वान ने कंकाल पर मांस चढ़ाकर वे रक्त से भरकर उसे खाल से ढक दिया।

तीसरे ने अपनी विद्या का प्रयोग कर उस निर्जीव शेर में जान डाल दी। जान आते ही शेर दहाड़ता हुआ खड़ा हो गया और तीनोपर टूट पड़ा। तीनों विद्वान वहीं ढेर हो गए। व्यावहारिक ज्ञान एवं सूझबझ के कारण चौथे मित्र की जान बच गई। 

Moral – ज्ञान का अव्यावहारिक उपयोग बड़ा ही खतरनाक होता है।

Also read: 11 Best Moral Stories in Hindi for Class 3

3. स्वार्थी चमगादड़ (Short Moral Stories in Hindi for Class 5)

Hindi moral stories for class 5

बहुत पुरानी बात है। एक बार पशुओं और पक्षियों में झगड़ा हो गया। चमगादड़ों ने इस लड़ाई में किसी का पक्ष नहीं लिया। उन्होंने सोचा, हम पक्षियों की भाँति उड़ते हैं, इसलिए पक्षियों में शामिल हो सकते हैं। मगर पक्षियों की तरह हमारे पंख नही होते हम अंडे भी नहीं देते। इसलिए हम पशु दल में भी शामिल हो सकते हैं। हम पक्षी भी हैं और पशु भी हैं। इसलिए दोनों में से जो पक्ष जीतेगा, उसी में हम मिल जाएँगे। अभी तो हम इस बात का इंतजार करें कि इनमें से कौन जीतता है।

पशुओं और पक्षियों में युद्ध शुरू हुआ। एक बार तो ऐसा लगा कि पशु जीत जाएँगे चमगादड़ों ने सोचा, अब शामिल होने का सही वक्त आ गया है। वे पशुओं के दल में शामिल हो गए। कुछ समय बाद पक्षी-दल जीतने लगा। चमगादड़ों को इससे बड़ा दुःख हुआ। अब वे पशुओं को छोड़कर पक्षी-दल में शामिल हो गए। अंत में युद्ध खत्म हुआ। पशुओं और पक्षियों ने आपस में संधि कर ली। 

वे एक-दूसरे के दोस्त बन गए। दोनों ने चमगादड़ों का बहिष्कार कर दिया। स्वार्थी चमगादड़ अकेले पड़ गए। तब चमगादड़ वहाँ से दूर चले गए और अंधेरे कोटरो में छुप गए। तब से वे अंधेरे कोटरो में ही रहते है। केवल शाम के धुँधले में ही वे बाहर निकलते है। इस समय पक्षी अपने घोंसलों में लौट आते है और जंगली जानवर रात में ही अपनी गुफा से बाहर निकलते है।

Moral – स्वार्थी मित्र किसी को अच्छा नही लगता। 

4. मकड़ी की सीख (Hindi Moral Stories for Class 5)

एक बार दो राजाओं के बीच युद्ध छिड़ गया। उनमें से एक राजा पराजित हो गया। वह जंगल की ओर भाग गया। उसने एक गुफा में शरण ली। विजयी राजा ने उसका पीछा करने के सैनिक भेजे। वह उसे जान से मार डालना चाहता था। पराजित राजा बहुत बहादुरी से लड़ा था। पर उसकी सेना थोड़ी थी। शत्रु की विशाल सेना ने उसकी छोटी सी सेना को हरा दिया था। मजबूर होकर अपनी जान बचाने के लिए उसे जंगल में भागना पड़ा। 

वह बहुत दुखी हो गया और हिम्मत हार बैठा। एक दिन उदास होकर राजा गुफा में लेटा हुआ था। तभी उसका ध्यान एक छोटी-सी मकड़ी की ओर गया। वह गुफा की छत के एक कोने में जाला बुनने का प्रयत्न कर रही थी। वह सरपट दीवार पर चढ़ती। बीच में जाले का कोई धागा टूटता और वह जमीन पर आ गिरती। बार-बार यही होता रहा पर मकड़ी हिम्मत नहीं हारी। वह बार-बार प्रयास करती रही। 

आखिरकार जाला बुनते-बुनते वह छत तक पहुँचने में सफल हो गयी। उसने पूरा जाला बुन-कर तैयार कर दिया। राजा ने सोचा, “यह रेंगनेवाली नन्ही-सी मकड़ी बार-बार असफल होती रही, लेकिन इसने प्रयास करना नही छोड़ा। मैं तो राजा हूँ। फिर मैं प्रयास करना क्यों छोड़ दूँ। मुझे फिर से प्रयत्न करना चाहिए।” उसने दुश्मन से एक बार फिर युद्ध करने का निश्रय किया। राजा जंगल से बाहर निकलकर अपने विश्वासपात्र सहयोगियों से मिला। 

उसने अपने राज्य के शूर-वीरो को एकत्र किया और शक्तिशाली सेना खड़ी की। उसने पूरी ताकत से दुश्मन पर चढ़ाई कर दी। वह वीरता पूर्वक लड़ा। आखिरकार उसकी विजय हुई। उसे अपना राज्य वापस मिल गया। राजा उस मकड़ी को जिंदगी भर नही भूल सका, जिसने उसे सदा प्रयास करते रहने का सबक सिखाया था।

Moral – असफलताओं से जूझनेवालों को एक दिन सफलता अवश्य मिलती है।

5. राजा सोलोमन और शीबा की रानी (Moral Stories in Hindi)

राजा सोलोमन अपने ज्ञान के लिए जाना जाता था। शिबा की रानी उसके ज्ञान की परिक्षा लेना चाहती थी। एक दिन वह अपने दोनो हाथो में फूलो के दो हार लेकर राज सोलोमन के दरबार में आई। दोनों हार देखने में एक जैसे थे। पेर उनमें एक हार असली फूलों का था और दूसरा कागज का था। उसने राजा से कहा, “हे राजन यह बताएं कि असली फूलो का हार कौन सा है? और नकली फूलों का हार कौन सा है? 

आपको सिंहासन पर बैठे-बैठे इस बात का निर्णय करना है।” राजा ने दोनों हारो को बड़े ध्यान से देखा। दोनों एक जैसे दिखाई दे रहे थे। सिर्फ दूर से देखना असली नकली का निर्णय करना मुश्किल था। राजा सोच में पड़ गया आखिर उसे एक तरकीब सूझी। उसके राजमहल के एक ओर हरी भरी फूलवारी थी। 

उसने अपने एक सेवक को आदेश दिया, “वह बगीचे की ओर वाली खिड़की खोल दो।” खिड़की खुलते ही कुछ मधुमक्खियाँ अंदर आई। वे रानी के दॉय हाथ पर मड़राने लगी। यह देखते हुए राजा ने कहा, “रानी साहिबा मेरे बगीचे की मक्खियों ने आपके सवाल का जवाब दे दिया। 

आपके दाहिने हाथ का हार असली फूलों का बना है।” रानी ने आदरपूर्वक राजा का अभिवादन किया। राजन आपने सही उत्तर दिया। मेरे दाहिने हाथ का हार ही असली फूलों का बना है। आप सचमुच बहुत ज्ञानी है।

Moral – जहाँ आँखे निणर्य लेने में असमर्थ हो, वहाँ ज्ञान से काम लेना चाहिए।

Also read: Top 15+ Class 2 Short Moral Stories in Hindi

6. मूर्ख और ठग (Hindi Kahani for Class 5)

एक गाँव में एक मूर्ख आदमी रहता था गाँव के छोटे-छोटे बच्चे उसका मजाक उड़ाते थे। वह लाख चतुर बनने की कोशश करता पर कोई न कोई उसे मूर्ख बनाता रहता। एक दिन वह अपने घोड़े और बकरी बेचने बजार जा रहा था। वह अपने घोड़े पर सवार था उसने बकरी के गले मे घंटी बाँध रखी थी रस्सी का एक हिस्सा बकरी के गले में और दूसरा हिस्सा घोड़े की पूँछ से बाँध रखा था। मूर्ख को जानने वाले कुछ ठग उसका पीछा कर रहे थे। 

उनमें से एक ठग ने बकरी के गले से घंटी खोलकर घोड़े की पूँछ में बाँध दी। इसके बाद बकरी को लेकर रफूचक्कर हो गया। घौड़े की पूँछ पर बँधी घंटी बजती रही और मूर्ख यही समझता रहा कि बकरी उसके पीछ-पीछे आ रही है। थोड़ी देर बाद दूसरा ठग आया उसने मूर्ख को रोककर पूँछा, “भाई साहब आपने अपने घोड़े की पूँछ में यह घंटी क्यों बाँध रखी है।” उस मूर्ख ने पीछे मुड़कर देखा तो बकरी नदारद थी उसे बड़ा ताज्जुब हुआ।

तभी तीसरा ठग आ पहुँचा उसने मूर्ख से कहा, “मैंने अभी देखा है कि एक आदमी तुम्हारी बकरी को लिए भागा जा रहा है अगर तुम मुझे अपना घोड़ा दे दो। तो मैं उसका पीछा करके तुम्हारी चुराई गई बकरी वापस ला सकता हूँ! “मूर्ख तुरंत घोड़े पर से उतर पड़ा और उसने घोड़ा तीसरे ठग के हवाले कर दिया। वह मूर्ख को चिढ़ाता हुआ घोड़े को लेकर सरपट भाग गया बेचारा मृूर्ख बहुत देर तक अपने पशुओं को पाने का इंतजार करता रहा। 

पर जब वह राह देखते-देखते थक गया और ठग लौट कर नही आया। तो वह खाली हाथ ही घर वापस लौट आया। दूर कहीं घंटी बजती रही और तीनो ठग गाते रहे, घंटी-घंटी बजती रहो, रातोदिन गाती रहो, जीवन एक खेल है सुनहरा।

Moral – मूर्ख की तकदीर कभी लंबे समय तक उसका साथ नही देती। 

7. तीन चोर की कहानी (Moral Stories in Hindi for Class 5)

Hindi kahani for class 5

तीन चोर थे। एक रात उन्होंने एक मालदार आदमी के यहाँ चोरी की। चोरों के हाथ खूब माल लेगा। उन्होंने सारा धन एक थैले में भरा और उसे लेकर जंगल की ओर भाग निकले। जंगल में पहुँचने पर उन्हें जोर की भूख लगी। वहाँ खाने को तो कुछ था नहीं, इसलिए उनमें से एक चोर पास के एक गॉँव से खाने का कुछ सामान लाने गया। बाकी के दोनों चोर चोरी के माल की रखवाली के लिए जंगल में ही रहे। 

जो चोर खाने का सामान लाने गया था, उसकी नीयत खराब थी। पहले उसने होटल में खुद छककर भोजन किया। फिर उसने अपने साथियों के लिए खाने का समान खरीदा और उसमें तेज जहर मिला दिया। उसने सोचा कि जहरीला खाना खाकर उसके दोनों साथी मर जाएँगे। तो सारा धन उसी का हो जाएगा। इधर जंगल में दोनो चोरों ने खाने का समान लाने गए अपने साथी चोर की हत्या कर डालने की योजना बना ली थी। 

वे उसे अपने रास्ते से हटाकर सारा धन आपस में बाँट लेना चाहते थे। तीनों चोरों ने अपनी-अपनी योजनाओं के अनुसार कार्य किया। पहला चोर जैसे ही जहरीला भोजन लेकर जंगल में पहुँचा कि उसके साथी दोनों चोर उसपर टूट पड़े। उन्होंने उसका काम तमाम कर दिया। फिर वे निश्रित होकर भोजन करने बैठे। मगर जहरीला भोजन खाते ही वे दोनों भी तड़प-तड़प कर मर गए। इस प्रकार इन बुरे लोगों का अंत भी बुरा ही हुआ।

Moral – बुराई का अंत बुरा ही होता है।

8. नमक का व्यापारी और गधा (Hindi Story for Class 5)

Moral stories in hindi

नमक के एक व्यापारी के पास एक गधा था। वह व्यापारी रोज सुबह अपने गधे पर नमक की बोरियाँ लादकर आस पास के गाँवो में नमक बेचने ले जाया करता था। आसपास के गाँवो में जाने के लिए उसे कई नाले और छोटी-छोटी नदियाँ पार करनी पड़ती थी। एक दिन नदी पार करते समय गधा अचानक पानी में गिर पड़ा इससे गधे के शरीर पर लदा हुआ ढेर सारा नमक पानी में घुल गया। अब गधे का बोझ काफी हल्का हो गया। 

उस दिन गधे को अच्छा आराम मिल गया। दूसरे दिन वह व्यापारी रोज की तरह गधे पर नमक की बोरियाँ लाद कर नमक बेचने निकला। उस दिन पहले नाले को पार करते समय गधा जानबूझ कर पानी मे बैठ गया। उसकी पीठ का बोझ फिर हल्का हो गया। व्यापारी उस दिन भी गधे को लेकर वापस लौट आया। पर नमक के व्यापारी के ध्यान में आ गया कि आज गधा जानबूझकर पानी मे बैठ गया था। उसे गधे पर बहुत गुस्सा आया। 

इसलिए डंडे से उसने गधे की खूब पिटाई की। उसने कहा, “मूर्ख प्राणी, तू मुझसे चालाकी करता है। मैं तुझे सबक सिखाए बिना नही रहूगाँ।” अगले दिन व्यापारी ने गधे पर रूई के बोरे लादे। गधे ने फिर वही तरकीब आजमाने की कोशिश की, नाला आते ही वह पानी मे बैठ गया। इस बार उल्टा ही हुआ। 

रूई के बोरो ने खूब पानी सोखा और गधे की पीठ का बोझ पहले से कई गुना बढ़ गया। पानी से बाहर आने में गधे को खूब मेहनत करनी पड़ी। उस दिन के बाद से गधे ने पानी में बैठने की आदत छोंड दी। 

Moral – मूर्ख सबक सिखाने से ही काबू में आते है।

9. चुहिया की बेटी का विवाह (Moral Stories in Hindi)

एक चुहिया को एक सुंदर कन्या थी। वह अपनी बेटी का विवाह सबसे शक्तिशाली व्यक्ति से करना चाहती थी। बहुत सोच विचार करने पर उसे लगा कि भगवान सूर्य उसकी कन्या के लिए उपयुक्त वर साबित होंगे। चुहिया सूर्य भगवान के पास गई। उसने कहा, “सूर्य देवता, क्या आप मेरी सुंदर कन्या से विवाह करेगें? क्या उसे आप अपनी पत्नी के रूप में पसंद करेगें?” 

सूर्य भगवान ने कहा, चुहिया चाची, आपने मुझे अपनी बेटी के योग्य वर समझा, इसके लिए मैं आपको आभारी हूँ। पर मैं सबसे ज्यादा शक्तिशाली नहीं हूँ। मुझसे शक्तिशाली तो वरूण देवता हैं। वे अपने बादलों से मुझे ढक देते हैं।” अतः चुहिया जल के देवता के पास गई और बोली, “वरूण देवता, क्या आप मेरी सुंदर कन्या से विवाह करेंगे? क्या उसे आप अपनी पत्नी के रूप में अपनाएँगे?” 

वरूण देवता ने जवाब दिया, देखो देवी, आपने मुझे अपनी बेटी के योग्य वर समझा, इसके लिए मैं आपका बहुत आभारी हूँ। पर मैं सबसे ज्यादा शक्तिशाली नहीं हूँ। मुझसे अधिक शक्तिशाली तो वायु देवता हैं। वे मेरे बादलों को दूर-दूर तक उड़ा ले जाते हैं।” इसलिए चुहिया चाची वायु देवता के पास गई और कहने लगी, “वायु देवता, क्या आप मेरी सुन्दर कन्या से विवाह करेंगे? क्या आप मेरी बेटी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करेंगे?” 

वायु देवता ने कहा, “चाची आपने मुझे अपनी बेटी के योग्य वर समझा, इसके लिए मैं आपका बहुत आभारी हूँ। पर मैं सबसे ज्यादा शक्तिशाली नहीं हूँ। मुझसे अधिक शक्तिशाली तो पर्वतराज हैं। वे मेरे मार्ग में खड़े हो जाते हैं और मुझे रोक देते हैं। मैं चाहे कितनी ही ताकत लगाऊँ पर पर्वतराज को अपने रास्ते से नहीं हटा पाता। तब चुहिया चाची पर्वतराज के पास गई उनसे बोली, पर्वतराज, “क्या आप मेरी सुन्दर कन्या से विवाह करेंगे? 

क्या आप मेरी बेटी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करेंगे?” पर्वतराज ने कहा, “चाची, आपने मुझे अपनी बेटी के योग्य वर समझा, इसके लिए मैं आपका बहुत आभारी हूँ। पर मैं सबसे अधिक शक्तिशाली नहीं हूँ। मुझसे ज्यादा शक्तिशाली तो जो मूषकराज (चूहों के राजा) हैं। वे और उनके साथी मेरे चट्टानी शरीर में बड़े-बड़े बिल खोदकर मुझे खोखला कर डालते हैं। 

अंत में चुहिया चाची मूषकराज के पास गई और बोली, “मूषकराज, क्या आप मेरी सुन्दर बेटी से विवाह करेंगे? क्या आप उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करेंगे?” मूषकराज यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा, “हाँ, मैं आपकी बेटी से अवश्य विवाह करूँगा। तब गाजे-बाजे के साथ दही धूमधाम से चुहिया की बेटी और मूषकराज का विवाह संपन्न हुआ।”

Moral – दूर के ढ़ोल सुहावने लगते हैं।

10. कंजूस करोड़ीमल (Moral Stories in Hindi for Kids)

करोडीमल नाम का एक कजूस आदमी था। एक दिन वह नारियल खरीदने के लिए बाजार गया। उसने नारियलवाले से नारियल की कीमत पूछी। चार रूपये का एक, नारियलवाले ने कहा। चार रूपये! यह तो बहुत महँगा है। मैं तो तीन रूपये दूँगा। करोड़ीमल ने कहा। नारियलवाले ने जवाब दिया, यहाँ तो नही, यहाँ से एक मील की दूरीपर आपको जरूर तीन रूपये मैं एक नारियल मिल जाएगा। 

करोड़ीमल ने विचार किया, पैसा बहुत मेहनत से कमाया जाता है। मीलभर पैदल चल लेने पर कम से कम एक रूपये की तो बचत हो जाएगी। वे पैदल चलते-चलते एक मील तक गए, तो वहाँ उन्हें एक नारियलवाले की दुकान दिखाई दी। उन्होंने दुकानदार से नारियल की कीमत पूछी। दुकानदार ने कहा, तीन रूपये का एक। करोड़ीमल ने कहा, यह तो बहुत ज्यादा है। मैं तो अधिक से अधिक दो रूपये दूँगा। 

अगर तुम एक मील आगे चले जाओ, तो वहाँ तुम्हें दो रूपए में मिल जाएगा। दुकानदार ने करोड़ीमल ने फिर विचार किया, पैसा बहुत मूल्यवान होता है। एक रूपया बचाने के लिए मीलश्र पैदल चलने में क्या हर्ज है? वे फिर चलते-चलते एक मील चले गए । वहाँ उन्हें नारियल की एक दुकान दिखाई दी। उन्होंने नारियलवाले से नारियल की कीमत पूछी। दो रूपए का एक, नारियलवाले वाले ने जवाब दिया। 

करोड़ीमल ने कहा, “एक नारियल के दो रूपये? यह तो बहुत अधिक है। मैं तो केवल एक रूपए दूँगा।” तो फिर एक काम करो, नारियलवाले ने कहा, “तुम समुद्र के किनारे-किनारे एक मील तक चलते जाओ। वहाँ नारियल की कई दुकानें है। तुम्हें एक रूपए में ही नारियल मिल जाएगा वहाँ।” करोडीमल ने फिर विचार किया, “एक रूपया बचाने के लिए एक मील चल लेने में क्या हर्ज है? पैसा बहुत मूल्यवान होता है!” 

करोड़ीमल वहाँ से चलते-चलते एक मील दूर समुद्र-तट पर पहुँच गए। वहाँ नारियलवालों की कई दुकाने थीं। करोड़ीमल ने एक दुकानदार से नारियल की कीमत पूछी। दुकानदार ने कहां, “एक रूपए का एक नारियल।” करोड़ीमल ने कहा, “एक रूपया! मैं तो इसके पचास पैसे दूँगा।” नारियलवाले ने कहा, “तो फिर सामनेवाले नारियल के पेड़ पर चढ़ जाओ और तोड़ लो जितने चाहिए उतने। 

तुम्हारा एक पैसा भी खर्च नहीं होगा।” हाँ यही ठीक रहेगा। करोड़ीमल ने कहा और देखते ही देखते वे एक नारियल के पेड़ पर चढ़ गए । उन्होंने अपने दोनों हाथों से एक नारियल पकड़ा और उसे जोर का झटका दिया। नारियल तो टूट गया, पर साथ ही साथ पेड़ से उनके पैर की पकड़ भी छूट गयी। 

फिर क्या था, करोड़ीमल नारियल सहित समुद्र की रेत पर आ गिरे। उनके पैर की हड्डी टूट गई और शरीर पर भी कई जगह खरोंचें आ गई। एक नारियल के लिए करोड़ीमल को सिर्फ इतनी ही कीमत अदा करनी पड़ी। 

Moral – लालच बुरी बला है।

Also read: Best 10+ Short Moral Stories in Hindi for Class 1

11. घमंडी मोर और बुद्धिमान सारस (Moral Stories in Hindi for Class 5)

Moral stories in hindi for kids

एक मोर था। वह बड़ा ही घमंडी था और अपनी सुंदरता का बखान करता रहता था। वह रोज नदी के किनारे जाता, पानी में अपनी परछाई देखता और अपनी सुंदरता की तारीफ करता। वह कहता, जरा मेरी पूँछ तो देखो। कितने मनमोहक रंग हैं मेरे पंखों के! वास्तव में मैं दुनिया के सभी पक्षियों से अधिक सुंदर हूँ। 

एक दिन मोर को नदी के किनारे एक सारस दिखाई दिया। उसने सारस को देखकर मुँह फेर लिया। सारस का आपमान करते हुए उसने कहा, कितने रंगहीन पक्षी हो तुम! तुम्हारे पंख तो एकदम सादे और फीके हैं। सारस ने कहा, तुम्हारे पंख सचमुच बहुत सुदर हैं। मेरे पंख तुम्हारे पंखों जितने सुंदर नहीं हैं। 

पर इससे क्या होता है? तुम अपने पंखों से ऊँची उड़ान तो नहीं भर सकते! जबकि मैं अपने पंखों से आसमान में बहुत ऊँचाई तक उड़ सकता हूँ। इतना कहकर सारस उड़ता हुआ आकाश में बहुत ऊँचे चला गया। मोर शर्मिदगी से उसकी ओर देखता ही रह गया।

Moral – केवल सुंदरता की अपेक्षा उपयोगिता अधिक महत्वपूर्ण हैं।

12. ब्राह्मण और तीन ठग (Hindi Kahani for Class 5)

एक दिन सुबह-सुबह एक ब्राह्मण सुनसान रोस्ते से जा रहा था। उसके साथ एक बकरी भी थी। तीन ठगों की नजर ब्राह्मण और उसकी बकरी पर पड़ी। एक ठग ने कहा, “मैं चाहता हूँ कि इस मोटी-ताजी बकरी को किसी तरह हथिया लिया जाए।” दूसरे ठग ने कहा, “चलो, हम बकरी छीनकर भाग चले। यह मोटू ब्राह्मण हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।” तीसरे ठग ने कहा, “नहीं, बकरी छीनकर भागने की कोई जरूरत नहीं है। 

मैंने एक अच्छी तरकीब सोच ली है। फिर उसने वह तरकीब अपने साथियों को बताई। दोनों ठगों ने अपने साथी की योजना सुनी तो वे खुशी से उछल पड़े। उन्होंने उसी तरकीब से ब्राह्मण की बकरी ले लेने का निश्वय किया। योजना के अनुसार एक ठग ने ब्राह्मण से जाकर कहा,”पंडितजी, प्रणाम! आपका यह कुत्ता तो बहुत अच्छा है। 

क्या यह शिकारी कुत्ता है?” ब्राह्मण को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया। उसने कहा, “अरे बेवकूफ, चल दूर हट! कितने शर्म की बात है कि तू बकरी को कुत्ता कहता है।” “क्या आपके इस कुत्ते को मैं बकरी कहूँ, तो आप मुझे बुद्धिमान मानेंगे? हंसता हुआ वह ठग चला गया। थोड़ी देर के बाद दूसरा ठग ब्राह्मण के पास आया। 

उसने ब्राह्मण से कहा, “प्रणाम पंडितजी! ताजुब्ब है! आपके पास सवारी के लेए इतना मजबूत टट्टू है। फिर भी आप इसके साथ-साथ पैदल जा रहे हैं!” ब्राह्मण ने कहा, “है भगवान! अरे, क्या तुम्हें यह बकरी टट्टू दिखाई दे रही है?” ठग ने कहा, “मैं तो समझ रहा था कि आप कोई विद्वान ब्राह्मण होंगे, पर आप तो सनकी लगते हैं। 

आपको तो टट्टू और बकरी में कोई फर्क ही नजर नहीं आता!” यह कहते हुए वह ठग भी चलता बना। कुछ समय के बाद तीसरा ठग ब्राह्मण के पास आया। उसने कहा, “पुरोहित जी, प्रणाम! अरे आप इस गधे को कहाँ लिए जा रहे यह सुनकर ब्राह्मण चकरा गया उसने कहा,”यह गधा है?” “बिल्कुल! गधा ही तो है यह!” ठग ने दावे के साथ कहा। 

यह सुनकर ब्राह्मण घबरा गया। उसे लगा कि उसकी बकरी वास्तव में कोई पिशाचिनी है। वह समय-समय पर अपना रूप बदलती रहती है। इसलिए ब्राह्मण बकरी को वहीं छोड़कर भाग खड़ा हुआ। यह देखकर तीनों ठग बहुत खुश हुए। वे खशी-खुशी बकरी को लेकर चलते बने ।

Moral – लोगो की बातें सुनकर अपनी धारणा मत बदलो।

13. सच्चा मित्र (Short Moral Stories in Hindi for Class 5)

एक दिन सुबह-सुबह दो मित्र समुद्र में नौका-विहार करने निकले। वे शांत समुद्र में नाव खेते और गपशप करते हुए जा रहे थे। देखते ही देखते वे किनारे से बहुत दूर गहरे समुद्र में जा पहुँचे। तभी एकाएएक आसमान में काले-काले बादल घिर आए। तूफानी हवाएँ चलने लगीं। समुद्र में ऊँची-ऊँची लहरें उठने लगीं। उनकी नाव लहरों के साथ हिचकोले खाने लगी। अब मृत्यु उनकी ऑँखों के सामने नाचने लगी। 

इतने में सौभाग्य से उन्हें पास ही तैरता हुआ लकड़ी का एक पल्ला दिखाई पड़ा। डूबतों को जैसे तिनके का सहारा मिल गया। दोनो मित्रों ने झटपट नाव से छलाँग लगाई और तैरते-तैरते उस पल्ले को पकड़ लिया। पर पल्ला बहुत ही हल्का था। वह दोनों का वजन वहन नहीं कर सकता था। तब एक मित्र ने दूसरे मित्र से कहा,” देखो भाई, तुम शादीशुदा हो। तुम्हारी पत्नी है, बच्चे हैं। उनके लिए तुम्हारा जिदा रहना ज्यादा जरूरी है। 

मैं ठहरा अकेला। इसलिए मैं मर भी गया, तो कोई हर्ज नहीं!” शादीशुदा मित्र ने जवाब दिया, “नही भाई, तुम्हारी माँ है, बहन है! अगर तुम मर गए, तो उनकी देख रेख कौन करेगा?” “उनकी देखरेख का जिम्मा अब मैं तुम पर डालकर जा रहा हूँ।” कहते हुए पहले मित्र ने पल्ला छोड़ दिया। वह समुद्र में डूबकर मर गया। 

शादीशुदा युवक पल्ले के सहारे तैरते-तैरते किसी तरह किनारे आ लगा। उसकी जान बच गई। वह सकुशल घर पहुँच गया। उसने अपने दिवंगत दोस्त की माँ और बहन की जिंदगी भर परवरिश की।

Moral – सच्चे मित्र एक दूसरे के सुख-दुख में सहभागी होते है।

14. गँवार किसान (Moral Stories in Hindi for Class 5)

एक किसान था। वह पढ़ा-लिखा नहीं था। वह अकसर लोगों को अखबार व किताबें पढने के लिए चश्मा लगाते देखा करता था। वह सोचता, अगर मेरे पास भी चश्मा होता, तो मैं भी इन लोगों की तरह पढ़ सकता। मुझे भी शहर जाकर अपने लिए चश्मा खरीद लाना चाहिए। एक दिन वह शहर गया। चश्मे की एक दुकान में पहुँचकर उसने दुकानदार से कहा कि मुझे पढ़ने के लिए चश्मा चाहिए। दुकानदार ने उसे तरह-तरह के चश्मे दिखाए। 

उसने पढ़ने के लिए उसे एक पुस्तक भी दी। किसान ने एक-एक कर अनेक चश्मे लगाकर देखे। पर वह कुछ भी नहीं पढ़ सका। उसने दुकानदार से कहा, इसमें से कोई भी चश्मा मेरे काम का नहीं है। दुकानदार ने शंकाभरी नजर से किसान की ओर देखा। फिर उसकी नजर किताब पर पड़ी। किसान ने किताब उल्टी पकड़ रखी थी। दुकानदार ने कहा, शायद तुम्हें पढ़ना नहीं आता? किसान ने कहा, मुझे पढ़ना नहीं आता। 

इसीलिए तो मैं चश्मा खरीद रहा हूँ, ताकि दूसरों की तरह मैं भी पढ़ सकूँ। पर इनमें से किसी भी चश्मे से मैं पढ़ नहीं पा रहा हूँ। दुकनदार को अपने अनपढ़ ग्राहक की असली परेशानी का पता चला। तो वह बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोक सका। उसने किसान को समझाते हुए कहा, मेरे दोस्त, तुम बहुत भोले और अज्ञानी हो। 

सिर्फ चश्मा लगा लेने भर से किसी को पढ़ना-लिखना नहीं आ जाता। चश्मा लगाने से सिर्फ साफ-साफ दिखाई देने लगता है। पहले तुम पढ़ना-लिखना तो सीखो। फिर तुम्हें बिना चश्मे के भी पढ़ना आ जाएगा।

Moral – अज्ञान ही अंधत्व है।

15. डरपोक घोड़ा (Hindi Story for Class 5)

Class 5 moral stories

एक बार एक घोड़ा एक आदमी के पास आया और कहने लगा, भाई, मेरी मदद करो। जंगल में एक बाघ आ गया है। वह मुझे मार डालना चाहता है। आदमी ने कहा, “अरे मित्र चिंता मत करो! वह बाघ तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। बाघ से मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा। घोड़े ने कहा, मैं आपका बहुत अभारी रहूँगा। आदमी ने कहा, “पर तुम्हें एक बात का ध्यान रखना पड़ेगा। मैं जैसा कहूँ तुम्हे वैसा ही करना होगा।” घोड़े ने कहा, “मुझे क्या करना होगा।”

आदमी ने कहा, “तुम्हें अपनी पीठ पर काठी और मुँह में लगाम डालने की अनुमति देनी होगी।” घोड़े ने कहा, “तुम जो चाहो, सो करो। पर कृपा करके मुझे उस बाघ से बचाओ।” आदमी ने घोड़े की पीठ पर काठी कर्सी। उसने उसके मुँह में लगाम लगाई। इसके बाद वह घोड़े पर स्वार हुआ दौड़ाते हुए अस्तबल में ले आया। आदमी ने घोड़े को बाँधते हुए कहा, “अब तुम इस अस्तबल में एकदम सुरक्षित हो। 

जब मैं तुम्हे बाहर ले जाऊगाँ, तब मैं तुम्हारी पीठ पर सवार रहूँगा। मैं तुम्हारे साथ रहूगाँ। बाघ तुम्हारा कुछ नही बिगाड़ सकेगा। इसके बाद आदमी ने अस्तबल का दरवाजा बंद किया और चला गया। अब घोड़ा अस्तबल में कैद हो गया। उसने मन ही मन सोचा मैं यहाँ सुरक्षित जरूर हूँ, पर स्वतंत्र नही। मैंने सुरक्षा प्राप्त की पर अपनी आजादी गवाँ दी। यह तो बहुत बुरा सौदा हुआ। पर अब मैं मजबूर हूँ। 

Moral – स्वतंत्रता की कीमत पर सुरक्षा किस काम की।

16. सुगंध और खनखनाहट (Moral Stories in Hindi for Class 5)

एक गरीब मजदूर था। वह खेतो में काम करता था। एक दिन शाम को वह अपना काम खत्म करके। घर लौट रहा था रास्ते के किनारे मिठाई की एक दुकान थी। मिठाइयों की मीठी-मीठी सुगंध रास्ते भर आ रही थी। इससे मजदूर के मुँह में पानी आ गया। वह दुकान के पास गया। कुछ देर वहाँ खड़ा रहा। उसके पास थोड़े पैसे थे। पर वे मिठाई खरीदने के लिए काफी नही थे। वह खाली हाथ लौटने लगा तभी उसे दुकनदार की कर्कश आवाज सुनाई दी।

“रूको! पैसे तो देते जाओ।” पैसे ? काहे के पैसे? मजदूर ने पूछा? मिठाई के और काहे के! दुकनदार ने कहा, “पर मैने तो मिठाई खाई नही! उसने जवाब दिया। “लेकिन तुमने मिठाई की सुगंध तो ली है न!” दुकनदार ने कहा, “सुगंध लेना मिठाई खाने के बराबर है।” बेचारा मजदूर घबरा गया। वहाँ खड़ा एक होशियार आदर्मी यह सुन रहा था। उसने मजदूर को अपने पास बुलाया और उसके कान फुसफुसाकर कुछ कहा। 

उस आदमी की बात सुनकर मजदूर का चेहरा खिल उठा वह दुकनदार के पास गया और अपनी जेब के पैसे खनखनाने लगा। पैसो की खनखनाहट सुनकर दुकनदार खुश हो गया। चलो निकालो पैसे। मजदूर ने कहा, “पैसे तो मैने चुकता कर दिए” दुकनदार ने कहा, “अरे तुमने पैसे कब दिए?” मजदूर ने कहा, “तुमने पैसो की खनखनाहट नही सुनी। 

अगर मिठाई की सुगंध लेना मिठाई खाने के बराबर है। तो पैसो की खनखनाहट सुनना पैसे लेने के बराबर है।” हा हा वह गर्व से सर ऊँचा किए कुछ देर वहाँ खड़ा रहा। फिर मुस्कराता हुआ चला गया।

Moral – जैसे को तैसा। 

17. फलवाला और पंसारी (Hindi Kahani for Class 5)

एक बार एक पंसारी ने एक फलवाले से उसका तराजू और बाट उधार लिए कुछ दिनो बाद फलवाले ने पंसारी से अपने तराजू और बाट वापस मागें पंसारी ने कहा, “कैसा तराजू और बाँट उन्हें तो चूहा खा गया। इसलिए मुझे खेद है कि मै उन्हें लौटा नही सकता।” बेईमान पंसारी की बात सुनकर फल वाले को बहुत गुस्सा आया। पर उसने गुस्से को दबाते हुए कहा, “कोई बात नही मित्र! इसमे तुम्हारा कोई दोष नहीं है मेरी तकदीर खराब है।” 

उसके बाद एक दिन फलवाले ने पंसारी से कहा,”देखों! मैं कुछ समान लेने बाहर जा रहा हूँ। तुम चाहो तो मेरे साथ अपने बेटे को भेज सकते हो हम लोग कल तक वापस आ जाएगे।” पंसारी ने बेटे को फलवाने के साथ भेज दिया। दूसरे दिन फलवाला लौटा तो वह अकेला था। अरे! मेरा बेटा कहाँ है? पंसारी ने पूछा, “क्या बताऊँ तुम्हारे बेटे को सारस उठा ले गया फलवाले ने जवाब दिया!” “अबे झूठे इतने बड़े लड़के को सारस कैसे उठा ले जा सकता है” पंसारी ने गुस्से से कहा। 

फलवाले ने जवाब दिया, “उसी तरह जैसे चूहे तराजू और बाँट खा सकते हैं।” पंसारी को अपनी भूल समझ में आई। उसने फलवाले का तराजू और बाँट वापस कर दिया। वह ऑंसू भरी आँखो से बोला, “भाई! मैंने तुम्हारे साथ छल किया मुझे माफ कर दो और मेरा बेटा मुझे लौटा दो।” फलवाले ने पंसारी के बेटे को उसके पिता के पास लौटा दिया।

18. बाघ की बन आई (Moral Stories in Hindi for Class 5)

एक जंगल मे चार गायें रहती थी। उनमें गाढ़ी मित्रता थी। वे चारों हमेशा साथ-साथ रहती थी। एक साथ घूमने जाती साथ-साथ चरने जाती। वे बड़े सुख से रहती थी। कभी कोई जंगली जानवर उन पर हमला करता, तो वे चारों मिलकर उसका सामना करती और उसे मारकर भगा देती। उसी जंगल में एक बाघ भी रहता था। उसकी नजर इन गायों पर थी वह गायों को मार कर खा जाना चाहता था। 

लेकिन उनकी एकता देखकर उन पर हमला करने की उसकी हिम्मत नही होती थी। एक दिन गायों में आपस में झगड़ा हो गया। वे एक-दूसरे से नाराज हो गई। उस दिन हर गाय अलग-अलग रास्ते से जंगल में चरनें गई। बाघ तो बहुत दिनों से इसी ताक में बैठा था। उसने एक-एक कर सभी गायों को मार डाला और उन्हें खा गया।

Moral – एकता में ही शक्ति है, फूट से ही विनाश होता है। 

19. पिपहरीवाला और गाँव के लोग (Hindi Story for Class 5)

एक गाँव मे हजारो चूहे थे। गाँव मे ऐसी कोई जगह नही थी जहाँ चूहे ना हो। ये चूहे ढेरो अनाज खा जाते थे। घर का समान कपड़े कागज पत्र सब कुछ वे कुतर डालते थे। चूहो के कारण गाँव के लोगो को कार्फी नुकसान उठाना पड़ता था। वे किसी तरह चूहों से छुटकारा पाना चाहते थे। एक दिन पिपहरीवाला उस गाँव मे आया। 

उसने देखा कि गाँव के लोग चूहो से परेशान है। अत उसने गाँव के लोगो से कहा “मै गाँव के सारे चूहो को खत्म कर दूँगा। पर इसके लिए तुम लोगो को मुझे पाँच हजार रूपए देने होगे।” गाँववालो ने पिपहरीवाले को पॉँच हजार रूपए देना मंजूर कर लिया। पिपहरीवाला मधुर स्वर मे अपनी पिपहरी बजाने लगा। पिपहरी की अवाज सुनकर सभी चूहे घरो दुकानो गोदामों तथा खेतो खलियानो से निकलकर दौड़ते हुए रास्ते पर आ गए। 

वे पिपहरी की अवाज सुनकर नाचने लगे। पिपहरी बजाने वाला नदी की ओर चल पड़ा। चूहे भी नाचते-नाचते उसके पीछे-पीछे चल पड़े। वह नदी के पानी में उतर गया। उसके पीछे चूहे भी पानी मर गए। इसके बाद पिपहरीवाला गाँव मे लौटा। उसने गाँव वालो से अपने पाच हजार रूपए माँगे। पर गाँववालो ने पैसे देने से इनकार कर दिया। पिपहरीवाले ने कहा “तुम लोग बेईमान हो, अब मै फिर से पिपहरी बजा रहा हूँ।

इस बार तुम लोगो को पाँच हजार के बजाए दस हजार देने पड़ेगे।” उसने पहले से भी मधुर पिपहरी बजानी शुरू की। पिपहरी की अवाज सुनकर गाँव के सारे बच्चे रास्ते पर आ गए और मस्त होकर नाचने लगे। पिपहरीवाला पिपहरी बजाता रहा बच्चे मस्ती मे नाचते रहे बहुत देर तक यो ही चलता रहा। गाँव के लोग न पिपहरीवाले को पिपहरी बजाने से रोक सके और न ही बच्चों को नाचने से। 

गाँव के लोगो को लगा कि चूहो कि तरह उनके बच्चो के भी नाचते-नाचते प्राण ना निकल जाएँ। उन्हें अब पिपहरीवाले को पैसे ना देने का बड़ा पछतावा हुआ। आखिरकार गाँववालो ने पिपहरीवाले से विनती की। “ये रहे तुम्हारे दस हजार रूपए अपने पैसे लो और पिपहरी बजाना बंद करो।” 

पिपहरीवाले ने पिपहरी बजाना बंद कर दिया। पैसे अपनी जेब में डालकर वह गाँव से चल पड़ा। पिपहरी की अवाज बंद होते ही बच्चों ने नाचना बंद कर दिया। वे अपने-अपने घर लौट गए। गाँव के लोगो मे खुशी की लहर दौड़ गई।

Moral – बेईमानी की सजा हमेशा बहुत भारी होती है। 

20. बुद्धिचंद की बुद्धि का चमत्कार (Moral Stories in Hindi for Class 5)

बुद्धिचंद नाम का एक आदमी था। उसके पड़ोस में लक्ष्मीनंदन नाम का एक आदमी रहता था। बुद्धिचंद ने अपनी बेटी की शादी के लिए लक्ष्मीनंदन से एक हजार रुपये उधार लिए थे। उसकी बेटी की शादी हो जाने के बाद लक्ष्मीनंदन ने बुद्धिचंद से अपने पैसे वापस मॉँगे। बुद्धिचंद ने कहा, सेठजी, मैं आपको एक -एक पैसा चुकता कर दूँगा! मुझे थोड़ा समय दीजिए। लक्ष्मीनंदन ने कहा, “मेरा ख्याल था कि तुम एक ईमानदार अदमी हो! पर अब पता चला कि यह मेरी भूल थी।”

बुद्धिवंद ने कहा, “सेठजी, धीरज रखिए! मैं आपका कर्ज अवश्य चुका दँगा। मैं बेईमान नहीं “अगर तुम बईमान नहीं हो, तो मेरे साथ अदालत में चलो। वहाँ न्यायाधीश के सामने लिखकर कर दो कि तुमने कर्ज के बदले में अपना मकान मेरे पास गिरवी रखा है।” बुद्धिचंद ने कहा, “सेठजी, अदालत चलने की क्या जरूरत है? मुझ पर विश्वास रखिए। मैं आपका पैसा जल्द से जल्द लौटा दूँगा।” पर लक्ष्मीनंदन ने बुद्धिचंद की एक न सुनी। 

वह अपनी इस जिदपर अड़ा रहा कि बुद्धिचंद अदालत चलकर दस्ताविज पर हस्ताक्षर कर दे। वास्तव में लक्ष्मीनंदन बुद्धविचंद के मकान को हड़पना चाहता था। बुद्धिचंद लक्ष्मीनंदन के मन की बात ताड़ गया। उसने लक्ष्मीनंदन से कहा, “मैं अदालत चलने के लिए तैयार हूँ। पर वह चलने के लिए मेरे पास ना तो घोड़ा है और न सेठ ने बीच ही में उसकी बात काटकर कहा, तुम तैयार हो जाओ, “मैं तुम्हें अपना घोड़ा दे दूँगा “

पर मेरे पास अच्छे कपड़े भी नहीं हैं।” बुद्धिचंद ने कहा। “चलो, मैं तुम्हें अपने कपड़े भी दे दूँगा। लक्ष्मीनंदन ने कहा। “मगर मैं पगड़ी की व्यवस्था कहाँ से करूगा?” बुद्धिवंद ने कहा। “वह भी मैं तुम्हें दे दूँगा। और कुछ चाहिए?” लक्ष्मीनंदन ने कहा। सेठजी, “मेरे पास तो जूते भी नहीं हैं!” बुद्धिचंद ने कहा। “मैं तुम्हे अपने जूते भी दे दूँगा। मगर अब देर मत करो! झटपट तैयार हो जाओ। लक्ष्मीनंदन ने मन ही मन खश होत हुए कहा।

बुद्धिचंद ने लक्ष्मीनंदन की पोषाक पहन ली। सिर पर पगड़ी और पैरों में उसके जूते पहन लिये। वह लक्ष्मीनंदन के घोड़ेपर सवार होकर उसके साथ अदालत जाने के लिए चल पड़ा। जब अदालत में बुद्धिचंद का नाम पुकारा गया। तो वह न्यायाधीश के सामने हाजिर हुआ। उसने नयायाधीश से कहा, श्रीमान, सेठ लक्ष्मीनंदन का कहनो है कि मेरा मकान और मेरे घर की सारी चीजें इनकी हैं। इसके लिए ये हमेशा मुझसे झगड़ा करते रहते हैं। 

मुझे सेठ जी जबरन अदालत में लेकर आए हैं। श्रीमान, कृपया आप मुझे इनसे कुछ सवाल पूछने की इजाजत दे।” न्यायाधीश ने लक्ष्मीनंदन को बुलावाया और उसे बुद्धिचंद के सवालों का जवाब देने का आदेश दिया। बुद्धिचंद ने लक्ष्मीनंदन से पूछा, “मेरे सिर पर बँधी पगड़ी किसकी है?” लक्ष्मीनंदन ने कहा, “मेरी है!” “मैंने जो कपड़े पहने रखे हैं, वे किसके हैं?” बुद्धिचंद ने पूछा। “मेरे हैं, और किसकी?” 

लक्ष्मीनंदन ने कहा। “और मेरे पैरों में जो जूते हैं, वे किसके हैं?” बुद्धिचंद ने पूछा। “जूते भी मेरे ही हैं।” लक्ष्मीनंदन ने चीखते हुए कहा। “और जिस घोड़ेपर सवार होकर मैं यहाँ कचहरी आया हूँ, वह घोड़ा किसका है?” बुद्धिचंद ने पूछा। “वह घोड़ा भी तो मेरा ही है,” लक्ष्मीनंदन ने ऊँची अवाज में कहा, पगड़ी, “घोड़ा, जूते, कपड़े, सब मेरे हैं। 

अदालत में मौजूद सभी लोग लक्ष्मीनंदन को जवाब सुनकर ठठाकर हँसने लगे। हर किसी को लगा किे लक्ष्मीनंदन पागल हो गया है। अंत में न्यायाधीश ने मुकदमा खारिज कर दिया। बुद्धिचंद ने अपनी बुद्धि से अदालत में लक्ष्मीनंदन को हँसी का पात्र साबित कर दिया। इस तरह उसने लक्ष्मीनंदन के षड्यंत्र को विफल कर दिया। 

Moral – धूर्त के साथ धूर्तता से ही पेश आना चाहिए।

21. प्यासा कौवा की कहानी

22. चालाक लोमड़ी की कहानी

23. शेर और चूहे की कहानी

24. खरगोश और कछुआ की कहानी

25. चूहे की कहानी

26. अकबर और बीरबल की कहानी

Leave a Comment