Panchtantra Ki Kahaniyan: आज हम पंचतंत्र की कहानियां के बारे में जानेंगे। पंचतंत्र की कहानियाँ बहुत ही रोमांचक होती है और अच्छी शिक्षा देती है। पंचतंत्र के लेखक विष्णु शर्मा है। तो आए जानते है पंचतंत्र की मजेदार कहानियों के बारे में।
1. बूढ़े गिद्ध की सलाह (Panchtantra Ki Kahani)
एक बार गिद्धों का झुण्ड उड़ता-उड़ता एक टापू पर जा पहुँचा। टापू समुद्र के बीचों-बीच स्थित था। वहाँ ढेर सारी मछलियाँ, मेंढक और समुद्री जीव थे। इस प्रकार गिद्धों को वहाँ खाने-पीने को कोई कमी नहीं थी। सबसे अच्छी बात ये थी कि वहाँ गिद्धों का शिकार करने वाला कोई जंगली जानवर नहीं था। गिद्ध वहाँ बहुत ख़ुश थे। इतना आराम का जीवन उन्होंने पहले देखा नहीं था।
उस झुण्ड में अधिकांश गिद्ध युवा थे। वे सोचने लगे कि अब जीवन भर इसी टापू पर रहना है। यहाँ से कहीं नहीं जाना, क्योंकि इतना आरामदायक जीवन कहीं नहीं मिलेगा। लेकिन उन सबके बीच में एक बूढ़ा गिद्ध भी था। वह जब युवा गिद्धों को देखता, तो चिंता में पड़ जाता। वह सोचता कि यहाँ के आरामदायक जीवन का इन युवा गिद्धों पर क्या असर पड़ेगा? क्या ये वास्तविक जीवन का अर्थ समझ पाएंगे?
यहाँ इनके सामने किसी प्रकार की चुनौती नहीं है। ऐसे में जब कभी मुसीबत इनके सामने आ गई, तो ये कैसे उसका मुकाबला करेंगे? बहुत सोचने के बाद एक दिन बूढ़े गिद्ध ने सभी गिद्धों की सभा बुलाई। अपनी चिंता जताते हुए वह सबसे बोला, “इस टापू में रहते हुए हमें बहुत दिन हो गए है। मेरे विचार से अब हमें वापस उसी जंगल में चलना चाहिए, जहाँ से हम आये है। यहाँ हम बिना चुनौती का जीवन जी रहे है।
ऐसे में हम कभी भी मुसीबत के लिए तैयार नहीं हो पाएंगे।” युवा गिद्धों ने उसकी बात सुनकर भी अनसुनी कर दी। उन्हें लगा कि बढ़ती उम्र के असर से बूढ़ा गिद्ध सठिया गया है। इसलिए ऐसी बेकार की बातें कर रहा है। उन्होंने टापू की आराम की ज़िन्दगी छोड़कर जाने से मना कर दिया।
बूढ़े गिद्ध ने उन्हें समझाने की कोशिश की, “तुम सब ध्यान नहीं दे रहे कि आराम के आदी हो जाने के कारण तुम लोग उड़ना तक भूल चुके हो। ऐसे में मुसीबत आई, तो क्या करोगे? मेरे बात मानो, मेरे साथ चलो।” लेकिन किसी ने बूढ़े गिद्ध की बात नहीं मानी। बूढ़ा गिद्ध अकेला ही वहाँ से चला गया। कुछ महीने बीते। एक दिन बूढ़े गिद्ध ने टापू पर गये और गिद्धों की ख़ोज-खबर लेने की सोची और उड़ता-उड़ता उस टापू पर पहुँचा।
टापू पर जाकर उसने देखा कि वहाँ का नज़ारा बदला हुआ था। जहाँ देखो, वहाँ गिद्धों की लाशें पड़ी थी। कई गिद्ध लहू-लुहान और घायल पड़े थे। हैरान बूढ़े गिद्ध ने एक घायल गिद्ध से पूछा, “ये क्या हो गया? तुम लोगों की ये हालत कैसे हुई?”
घायल गिद्ध ने बताया, “आपके जाने के बाद हम इस टापू पर बड़े मज़े की ज़िन्दगी जी रहे थे। लेकिन एक दिन एक जहाज़ यहाँ आया। उस जहाज से यहाँ चीते छोड़ दिए गए। शुरू में तो उन चीतों ने हमें कुछ नहीं किया। लेकिन कुछ दिनों बाद जब उन्हें आभास हुआ कि हम उड़ना भूल चुके हैं।
हमारे पंजे और नाखून इतने कमज़ोर पड़ गए हैं कि हम तो किसी पर हमला भी नहीं कर सकते और न ही अपना बचाव कर सकते है। तो उन्होंने हमें एक-एक कर मारकर खाना शुरू कर दिया। उनके ही कारण हमारा ये हाल है। शायद आपकी बात न मानने का फल हमें मिला है।”
Moral – अक्सर कम्फर्ट जोन में जाने के बाद उससे बाहर आ पाना मुश्किल होता है। ऐसे में चुनौतियाँ आने पर उसका सामना कर पाना आसान नहीं होता। इसलिए कभी भी कम्फर्ट ज़ोन में जाकर ख़ुश न हो जाये। ख़ुद को हमेशा चुनौती देते रहे और मुसीबत के लिए तैयार रहे। जब तब आप चुनौती का सामना करते रहेंगे, आगे बढ़ते रहेंगे।
2. सियार की रणनीति (Panchtantra Stories in Hindi)
एक जंगल में महाचतुरक नामक एक सियार रहता था। एक दिन वह भोजन की तलाश में निकला। भटकते-भटकते एक स्थान पर उसे मरा हुआ हाथी मिल गया, जिससे उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसके कई दिनों के भोजन की व्यवस्था हो गई थी। वह हाथी के मृत शरीर के पास गया और उस पर अपने दांत गड़ा दिए। लेकिन, हाथी की चमड़ी मोटी थी। बहुत प्रयासों के बाद भी वह उसे चीरने में असफ़ल रहा।
तब वह वहीं बैठकर किसी तरह हाथी की चमड़ी चीरने का उपाय सोचने लगा। कुछ देर में उसे जंगल का राजा सिंह आता हुआ दिखाई पड़ा, जिसे देख उसने सोचा कि क्यों न इससे ही किसी तरह हाथी की मोटी चमड़ी चिरवाई जाए। जैसे ही सिंह पास आया, वह उसका स्वागत करते हुए बोला, “वनराज! आपके इस सेवक ने आपके लिए इस हाथी का भोजन तैयार रखा है। कृपया इसे ग्रहण कर मुझ पर उपकार कीजिये।”
सिंह जंगल का राजा था, वह किसी दूसरे के द्वारा मारे गए जानवर को भला क्यों खाता?
“मैं जंगल का राजा हूँ और मैं अपना शिकार ख़ुद करता हूँ। इसे तुम ही खाओ।” साफ़ इंकार करते हुए वह बोला और चला गया।
सियार बहुत ख़ुश हुआ कि अब इस हाथी पर पूर्णतः मेरा अधिकार है। लेकिन समस्या अब भी जस की तस थी।
थोड़ी देर बाद वहाँ से एक बाघ गुजरा। मृत हाथी पर दृष्टि पड़ते ही उसकी लार टपकने लगी। जीभ लपलपाते हुए वह मृत हाथी की ओर बढ़ा, तो सियार ने उसकी मंशा भांप ली।
वह बोला, “अरे बाघ भाई! बड़े दिनों बाद आपके दर्शन हुए। सब कुशल-मंगल तो है?”
“मैं ठीक हूँ। तुम कैसे हो? और इस मृत हाथी के पास क्या कर रहे हों?” बाघ ने पूछा।
सियार बोला, “मैं यहाँ इस मृत हाथी के रखवाली कर रहा हूँ। सिंह ने इसका शिकार किया है और मुझे इसकी रखवाली की ज़िम्मेदारी देकर नदी में स्नान करने गया है। वैसे आप भी इस हाथी का मांस चख सकते थे। लेकिन सिंह तो आपका बैरी ठहरा। उसे पता चल गया कि आपने उसका भोजन जूठा कर दिया है, तो फिर न वो आपको छोड़ेगा ना ही मुझे। खैर इसी में है कि आप उसके आने के पहले ही यहाँ से चले जाओ।”
सियार की बात सुनकर बाघ वहाँ से भाग गया। कुछ देर बाद वहाँ से एक चीता गुजरा। चीते के दांत तेज होते हैं। सियार ने सोचा कि कोई ऐसी जुगत लगानी होगी कि ये चीता हाथी की चमड़ी भी फाड़ दे और बिना मांस खाए ही यहाँ से चलता बने। उसने चीते से कहा, “मित्र, आओ आओ। देखो ये मृत हाथी, ये सिंह का शिकार है। मैं इसकी निगरानी कर रहा हूँ। तुम भूखे जान पड़ते हो। चाहो तो तुम इसका कुछ मांस खा सकते हो।
जैसे ही मैं सिंह को आता हुआ देखूँगा, तुम्हें बता दूँगा। तुम तत्काल भाग जाना।” पहले तो चीता ने सिंह के डर से हाथी का मांस खाने से इंकार कर दिया। लेकिन सियार के विश्वास दिलाने पर वह राज़ी हो गया। उसने कुछ ही देर में हाथी की मोटी चमड़ी फाड़ दी। जब सियार ने देखा कि उसका काम हो गया, तो वह चीते से बोला, “भागो शेर आ गया।”
बिना एक क्षण गंवाए चीता भाग गया। सियार ने मजे से हाथी का मांस कई दिनों तक खाया। इस प्रकार उसने अपनी चतुराई और सूझबूझ से अपनी समस्या का समाधान निकाला।
Moral – किसी भी समस्या के समाधान के लिए सूझबूझ से काम लो।
3. शेर का पीछा करता गधा (Panchtantra Ki Kahaniya in Hindi)
एक सुबह एक गधा और एक मुर्गा मिलकर भोजन कर रहे थे। अचानक एक शेर आया और उसने गधे की तरफ आक्रामक होकर जैसे ही पंजा बढ़ाया वैसे ही मुर्गे ने जोर-जोर से बांग देना आरंभ कर दिया।
शेर इस आवाज़ से डर गया और भाग खड़ा हुआ। गधे ने सोचा कि क्यों न शेर को सबक सिखाया जाए और उसने शेर का पीछा करना शुरू कर दिया।
शेर मुर्गे की आवाज से डर कर भाग रहा था लेकिन थोड़ी दूर के बाद आवाज़ सुनाई देना बंद हो गई। गधा उस शेर का पीछा करते-करते यह भूल चुका था कि भागते-भागते वह मुर्गे की आवाज़ की सीमा से बाहर आ चुका था।
जैसे ही आवाज़ बंद हुई वैसे ही शेर पलटा और उसने गधे पर आक्रमण कर दिया। इस प्रकार अपनी बेवकूफी के कारण गधा मारा गया।
4. एन्ड्रोक्लीज़ और शेर की कहानी | पंचतंत्र की कहानी
एन्ड्रोक्लीज़ नामक एक व्यक्ति रोम के सम्राट का गुलाम था। एक दिन वह स्वयं पर होने वाले जुल्मों से तंग आकर महल से भाग गया और जंगल में जाकर छुप गया। जंगल में उसका सामना एक शेर से हुआ, जो घायल अवस्था में था और बार-बार अपना पंजा उठा रहा था। पहले तो एन्ड्रोक्लीज़ डरा, लेकिन फिर सहृदयता दिखाते हुए वह शेर के पास गया। शेर के पंजे में कांटा चुभा हुआ था। उसने कांटा निकाला और कुछ दिनों तक घायल शेर की देखभाल की।
एन्ड्रोक्लीज़ की देखभाल से शेर ठीक हो गया। आभार में वह एन्ड्रोक्लीज़ का हाथ चाटने लगा। फिर चुपचाप अपनी गुफ़ा में चला गया। इधर सम्राट के सैनिक एन्ड्रोक्लीज़ को ढूंढ रहे थे। आखिर, एक दिन वह पकड़ा गया। उसे सम्राट के सामने पेश किया गया। सम्राट बहुत नाराज़ था। उसने एन्ड्रोक्लीज़ को भूखे शेर के सामने फेंक देने का आदेश दिया।
जिस दिन एन्ड्रोक्लीज़ को शेर के सामने फेंका जाना था। उस दिन एक मैदान में रोम की सारी जनता इकट्ठा हुई।सबके सामने एन्ड्रोक्लीज़ को भूखे शेर के पिंजरे में फेंक दिया गया। एन्ड्रोक्लीज़ डरा हुआ था। उसे मौत सामने दिख रही थी। वह ईश्वर को याद करने लगा। शेर एन्ड्रोक्लीज़ की ओर बढ़ा। एन्ड्रोक्लीज़ पसीने-पसीने हो गया। शेर एन्ड्रोक्लीज़ के पास आया। डर के मारे एन्ड्रोक्लीज़ ने अपनी आँखें बंद कर ली। लेकिन यह क्या?
एन्ड्रोक्लीज़ को मारने के स्थान पर शेर उसका हाथ चाटने लगा। सम्राट हैरान था, सारी जनता हैरान थी और एन्ड्रोक्लीज़ भी। अंततः, एन्ड्रोक्लीज़ समझ गया कि हो न हो, ये वही शेर है, जिसकी घायल अवस्था में उसने देखभाल की थी। वह एन्ड्रोक्लीज़ को पहचान गया था। वह भी शेर को पुचकारने लगा और उसकी पीठ पर हाथ फ़ेरने लगा। यह देख सम्राट ने सैनिकों को एन्ड्रोक्लीज़ को पिंजरे से बाहर निकालने का आदेश दिया।
उसने एन्ड्रोक्लीज़ से पूछा, “तुमने ऐसा क्या किया कि शेर तुम्हें मारने के स्थान पर तुम्हारा हाथ चाटने लगा।” एन्ड्रोक्लीज़ ने उसे जंगल की घटना सुना दी और बोला, “महाराज, जब शेर घायल था, तब मैंने कुछ दिनों तक ही इसकी देखभाल की थी। इस उपकार के कारण इसने मुझे नहीं मारा। लेकिन, आपकी सेवा तो मैंने बरसों की है।इसके बावजूद आप मेरी जान ले रहे हैं।” सम्राट का दिल पिंगल गया। उसने एन्ड्रोक्लीज़ को आज़ाद कर दिया और शेर को भी जंगल में छुड़वा दिया।
Moral – सबके प्रति सहृदयता का भाव रखो, फिर चाहे वो मनुष्य हो या पशु। जो आप पर उपकार करें, उसके प्रति सदा कृतज्ञ रहो।
5. शार्क और चार मछलियाँ (Panchtantra Ki Kahaniyan)
अपने शोध के दौरान एक समुद्री जीवविज्ञानी ने पानी से भरे एक बड़े टैंक में शार्क को डाला। कुछ देर बाद उसने उसमें कुछ चार मछलियाँ डाल दी। चार मछलियों को देखते ही शार्क तुरंत तैरकर उनकी ओर गई और उन पर हमला कर उन्हें खा लिया। समुद्री जीवविज्ञानी ने कुछ और चार मछलियाँ टैंक में डाली और वे भी तुरंत शार्क का आहार बन गई।
अब समुद्री जीवविज्ञानी ने एक कांच का मजबूत पारदर्शी टुकड़ा उस टैंक के बीचों-बीच डाल दिया। अब टैंक दो भागों में बंट चुका था। एक भाग में शार्क थी। दूसरे भाग में उसने कुछ चारा मछली डाल दी। विभाजक पारदर्शी कांच से शार्क चारा मछलियाँ को देख सकती थी। चारा मछलियों के देख शार्क फिर से उन पर हमला करने के लिए उस ओर तैरी। लेकिन कांच के विभाजक टुकड़े से टकरा कर रह गई। उसने फिर से कोशिश की।
लेकिन कांच के टुकड़े के कारण वह चारा मछलियों तक नहीं पहुँच सकी। शार्क ने दर्जनों बार पूरी आक्रामकता के साथ चार मछलियों पर हमला करने की कोशिश की। लेकिन बीच में कांच का टुकड़ा आ जाने के कारण वह असफल रही। कई दिनों तक शार्क उन कांच के विभाजक के पार जाने का प्रयास करती रही। लेकिन सफल न हो सकी। अंततः थक-हारकर उसने एक दिन हमला करना छोड़ दिया और टैंक के अपने भाग में रहने लगी।
कुछ दिनों बाद समुद्री जीवविज्ञानी ने टैंक से वह कांच का विभाजक हटा दिया। लेकिन शार्क ने कभी उन चारा मछलियों पर हमला नहीं किया क्योंकि एक काल्पनिक विभाजक उसने दिमाग में बस चुका था और उसने सोच लिया था कि वह उसे पार नहीं कर सकती।
Morla – जीवन में असफ़लता का सामना करते-करते कई बार हम अंदर से टूट जाते हैं और हार मान लेते हैं। हम सोच लेते हैं कि अब चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, सफ़लता हासिल करना नामुमकिन है और उसके बाद हम कभी कोशिश ही नहीं करते। जबकि सफ़लता प्राप्ति के लिए अनवरत प्रयास आवश्यक है।
परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं। इसलिए अतीत की असफ़लता को दिमाग पर हावी न होने दें और पूरी लगन से फिर मेहनत करें। सफलता आपको अवश्य मिलेगी।
6. व्यापारी का पतन और उदय (Panchtantra Stories)
बहुत समय पहले की बात है। वर्धमान नामक नगर में दंतिल नाम का व्यापारी रहता था। अथक परिश्रम, लगन और कुशलता के कारण उसका व्यापार दिन-दूनी रात-चौगुनी वृद्धि कर कर रहा था। राज्य का राजा भी उससे बहुत प्रसन्न था। इसलिए प्रायः परामर्श हेतु उसे बुलाया करता था।
राजा से निकटता के कारण दंतिल के महल में आने-जाने पर कोई रोक-टोक नहीं थी। वह पूर्ण अधिकार के साथ बेरोक-टोक महल में विचरण किया करता था। महल के समस्त सेवक उसका बहुत सम्मान करते थे। दंतिल की एक सुंदर कन्या था, जो विवाह-योग्य हो चुकी थी। अच्छा वर देखकर उसने धूम-धाम से उसका विवाह संपन्न किया और पूरे नगर वासियों को एक बड़ा भोज दिया।
भोज में नगर का हर व्यक्ति आमंत्रित था, राजघराने से लेकर धनी व्यापारी, सैनिक से लेकर सेवक तक। कोई भी नहीं छूटा था। राजा के महल में झाडू लगाने वाला एक सेवक भी भोज में आया हुआ था। वह अनभिज्ञतावश एक ऐसे स्थान पर बैठ गया, जो राजघराने के मेहमानों के लिए सुरक्षित था। जब दंतिल ने उसे वहाँ बैठा हुआ देखा, तो आग-बबूला हो गया। उसने उसे अपमानित कर भोज से भगा दिया।
अपने साथ हुए इस व्यवहार से सेवक क्रोधित हो गया और उसने प्रतिशोध लेने की ठान ली। अगले दिन राजा के कक्ष में झाड़ू लगाते समय जब उसने देखा कि राजा अर्ध-निंद्रा की स्थिति में है, तो बड़बड़ाना शुरू कर दिया, “ये दंतिल व्यापारी इतना गिर गया है कि रानी से दुर्व्यवहार करने लगा है।”
राजा ने जब ये बात सुनी, तो तत्काल आँखें खोल दी। उठकर उसने सेवक से पूछा, “जो तुम कह रहे हो, क्या वो सच है?” सेवक कहने लगा, “महाराज, मैं कल रात ठीक से सो नहीं पाया। इसलिए नींद में कुछ भी बड़बड़ा रहा हूँ, मुझे क्षमा करें…मुझे क्षमा करें।”
राजा उस समय मौन रहा। लेकिन सेवक के जाने के बाद उसकी कही बातों पर विचार करने लगा। उसे उनकी सत्यता पर पूर्ण विश्वास नहीं था, लेकिन मन में दंतिल के प्रति संदेह का भाव उत्पन्न हो चुका था। फलस्वरुप उसने उसकी महल में बेरोक-टोक आवाजही पर पाबंदी लगा दी। उस दिन जब दंतिल रोज़ की तरह महल में आया, तो द्वारपालों ने उसे द्वार पर ही रोक लिया।
वह आश्चर्यचकित होकर बोला, “तुम लोग मुझे इस तरह कैसे रोक सकते हो? क्या मुझे नहीं जानते?” द्वारपालों ने उसे राजा के आदेश से अवगत करा दिया। उस समय सेवक वहीं झाड़ू लगा रहा था। वह दंतिल पर व्यंग्यबाण छोड़ते हुए बोला, “अरे द्वारपालो! तुम लोग इन्हें नहीं जानते। ये महाराज के ख़ास हैं। इनका इतना रुतबा है कि ये किसी को भी कहीं से भी भगा सकते हैं। मुझे कल इन्होंने अपने भोज से अपमानित कर भगा दिया था।
कहीं तुम लोगों को महल से ना भगा दें।” सेवक की बात सुनकर दंतिल समझ गया कि हो ना हो, जो उसके साथ हो रहा है, उसमें इस सेवक का ही हाथ है। उस समय तो वह वहाँ से चला गया। लेकिन कुछ दिनों बाद उसने सेवक को अपने घर में बुलाया, उसका ख़ूब आदर-सत्कार किया, उसे शानदार भोजन करवाया और ढेरों उपहार देकर विदा किया।
जाते समय उसने सेवक से क्षमा भी मांगी, “मुझे क्षमा करना मित्र, उस दिन मुझे तुमसे वैसा व्यवहार नहीं करना चाहिय था।” इतनी आवभगत से सेवक पहले ही प्रसन्न हो चुका था। दंतिल के क्षमा मांगने पर उसका मन द्रवित हो गया। वह बोला, “हम दोनों ने एक-दूसरे के साथ गलत किया है। लेकिन वह अतीत था और हमें अतीत की बातें भूल जानी चाहिए।
मैं आपको वचन देता हूँ कि आपको वो सम्मान पुनः प्राप्त होगा, जिसके आप सदा से अधिकारी रहे हैं।” अगले दिन राजा के कक्ष में झाड़ू लगाते समय उसने जब राजा को पुनः अर्ध-निंद्रा की स्थिति में देखा, तो बड़बड़ाने लगा, “ऐसा मूर्ख राजा मैंने आज तक नहीं देखा। कैसा राजा है ये, जो गुसलखाने में खीरे खाता है।”
जब राजा ने कानों में ये बात पड़ी, तो वह क्रोधित होकर उठ बैठा और सेवक से बोला, “मूर्ख, तुझमें इतना साहस कि मेरे बारे ऐसी अनर्गल बात बोले।” सेवक ने राजा के चरण पकड़ लिए और कहने लगा, “महाराज, क्षमा कर दें। नींद पूरी न होने पर उनींदी अवस्था में मेरे मुँह से कुछ भी अनाप-शनाप निकल जाता है।”
राजा ने उसे क्षमा कर दिया. सेवक कक्ष से बाहर चला गया। राजा पलंग पर बैठा-बैठा ही सोचने लगा कि ये मूर्ख सेवक जब मेरे बारे में कुछ भी अनर्गल बड़बड़ा सकता है, तो दंतिल के बारे में भी बड़बड़ा सकता है। मुझे इसकी बातों में आना ही नहीं चाहिए था। व्यर्थ में मैंने दंतिल से महल में आने-जाने का अधिकार छीन लिया।
राजा ने तत्काल अपने आदेश वापस लिए और दंतिल को पुनः महल में सारे अधिकार प्रदान कर दिए। इस तरह दंतिल को अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त हो गई।
Moral – हमने सबके साथ समान व्यवहार करना चाहिए और बिना पूर्ण जांच-पड़ताल के सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
7. ब्राह्मण का सपना (Panchtantra Ki Kahaniyan)
एक गाँव में स्वभावकरिपन नामक ब्राह्मण रहता था। वह घर-घर जाकर भिक्षा मांगता और भिक्षा में प्राप्त अन्न से अपना जीवन निर्वाह किया करता था। भिक्षा में प्रायः उसे गेहूं का आटा मिलता था। जिसमें से वह थोड़ा भाग खाता और शेष को एक घड़े में भरकर घड़े को रस्सी की सहायता से एक खूंटी पर टांग दिया करता था।
वह खूंटी पर लटके घड़े के नीचे ही अपनी खाट लगाकर सोया करता था। खाट पर लेटे-लेटे वह तब तक उस घड़े को देखता रहता था, जब तक उसे नींद नहीं आ जाती थी। एक रात वह सोते-सोते सपना देखने लगा। सपने में उसने देखा कि उसका घड़ा गेहूं के आटे से पूरा भर गया है। वह अकाल का समय है।
इस अवसर का लाभ उठाकर उसने अपना गेहूं का आटा अच्छे दाम में बेचकर कुछ धन कमा लिया है। उस धन से उसने दो बकरियाँ ख़रीद ली हैं। धीरे-धीरे बकरियों की संख्या बढ़ने लगी है और उसके पास बकरियों का झुण्ड हो गया है। बकरियों को बेचकर उसने दो गाय ख़रीद ली हैं और गाय का दूध बेचने लगा है।
दूध बेचकर हुए लाभ से उसने कुछ भैंस ख़रीद ली है। फिर कुछ घोड़े, उसने घोड़ों का व्यवसाय प्रारंभ कर लिया है, जो दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है। उसके पास धन-धान्य की उसे कोई कमी नहीं रह गई है। वह एक आलीशान कोठी का मालिक है और गाँव का एक धनवान सेठ बन गया है। गाँव के लोग उसका बहुत सम्मान करते हैं और हर कोई उससे अपनी रूपवती कन्या का विवाह करने आतुर है।
एक रूपवती ब्राहमण कन्या देखकर उसने विवाह कर लिया है और सुखी जीवन व्यतीत कर रहा है। विवाह उपरांत उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई है, जिसका नाम उसने सोमशर्मा रखा है। सोमशर्मा एक चंचल बालक है। उसकी बाल सुलभ क्रीड़ायें देखते बनती हैं। एक दिन वह घुड़साल की दीवार पर बैठा अपने पुत्र सोमशर्मा की बाल-क्रीड़ा देख रहा है। तभी सोमशर्मा अपनी माँ की गोद से उतरकर उसकी ओर आने लगा है।
यह देख वह क्रोध में आ गया है और अपने पत्नि पर चिल्ला रहा है, “अपने बच्चे को संभाल।” लेकिन घरेलू कार्य में व्यस्त होने के कारण उसकी पत्नि उसकी बातों पर ध्यान नहीं दे रही है। यह देख क्रोधवश वह उसे पैर से मार रहा है। सपने में ही ब्राह्मण अपना पैर चलाने लगा।
ज्यों ही उसने अपना पैर ऊपर उठाया, वह खूंटी में बंधे घड़े को जाकर लगा और घड़ा फूट गया। घड़ा चकनाचूर हो गया और गेंहू का आटा जमीन में बिखर गया। ब्राह्मण ने सपने में जो हवाई किले बनाये थे, वो भी टूटकर बिखर गए।
Moral – शेखचिल्ली के समान हवाई किले मत बनाओ।
8. मछुआरों की समस्या (Story Panchtantra Ki Kahaniya)
मछलियाँ सालों से जापानियों की प्रिय खाद्य पदार्थ रही हैं। वे इसे अपने भोजन का एक अभिन्न अंग मानते हैं। ताज़ी मछलियों का स्वाद उन्हें बहुत पसंद हैं। लेकिन तटों पर मछलियों के अभाव के कारण मछुआरों को समुद्र के बीच जाकर मछलियाँ पकड़नी पड़ती हैं। शुरुवाती दिनों में जब मछुआरे मछलियाँ पकड़ने बीच समुद्र में जाते, तो वापस आते-आते बहुत देर हो जाती और मछलियाँ बासी हो जाती।
यह उनके लिए एक बड़ी समस्या बन गई क्योंकि लोग बासी मछलियाँ ख़रीदने से कतराते थे। इस समस्या का निराकरण मछुआरों ने अपनी बोट में फ्रीज़र लगवाकर किया। वे मछलियाँ पकड़ने के बाद उन्हें फ्रीज़र में डाल देते थे। इससे मछलियाँ लंबे समय तक ताज़ी बनी रहती थी। लेकिन लोगों ने फ्रीज़र में रखी मछलियों का स्वाद पहचान लिया। वे ताज़ी मछलियों की तरह स्वादिष्ट नहीं लगती थी।
लोग उन्हें ख़ास पसंद नहीं करते थे और ख़रीदना नहीं चाहते थे। मछुआरों के मध्य इस समस्या का हल निकालने के लिए फिर से सोच-विचार की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। आख़िरकार इसका हल भी मिल गया। सभी मछुआरों ने अपनी बोट में फिश टैंक बनवा लिया। मछलियाँ पकड़ने के बाद वे उन्हें पानी से भरे फिश टैंक में डाल देते। इस तरह वे ताज़ी मछलियाँ बाज़ार तक लाने लगे। लेकिन इसमें भी एक समस्या आ खड़ी हुई।
फिश टैंक में मछलियाँ कुछ देर तक इधर-उधर विचरण करती। लेकिन ज्यादा जगह न होने के कारण कुछ देर बाद स्थिर हो जाती। मछुआरे जब किनारे तक पहुँचते, तो वे सांस तो ले रही होती थी। लेकिन समुद्री जल में स्वतंत्र विचरण करने वाली मछलियों वाला स्वाद उनमें नहीं होता था। लोग चखकर ये अंतर कर लेते थे। ये मछुआरों के लिए फिर से परेशानी का सबब बन गई।
इतनी कोशिश करने के बाद भी समस्या का कोई स्थाई हल नहीं निकल पा रहा था। फिर से उनकी बैठक हुई और सोच-विचार प्रारंभ हुआ। सोच-विचार कर जो हल निकाला गया। उसके अनुसार मछुआरों ने मछलियाँ पकड़कर फिश टैंक में डालना जारी रखा। लेकिन साथ में उन्होंने एक छोटी शार्क मछली भी टैंक में डालनी शुरू कर दी।
शार्क मछलियाँ कुछ मछलियों को मारकर खा जाती थी। इस तरह कुछ हानि मछुआरों को ज़रूर होती थी। लेकिन जो मछलियाँ किनारे तक पहुँचती थी। उनमें स्फूर्ती और ताजगी बनी रहती थी। ऐसा शार्क मछली के कारण होता था क्योंकि शार्क मछली के डर से मछलियाँ पूरे समय अपनी जान बचाने सावधान और चौकन्नी रहती थी। इस तरह टैंक में रहने के बाबजूद वे ताज़ी रहती थी। इस तरकीब से जापानी मछुआरों ने अपनी समस्या का समाधान कर लिया।
9. घमंड का सिर नीचा | पंचतंत्र की शिक्षाप्रद कहानियां
एक गाँव में उज्वलक नामक एक निर्धन बढ़ई रहता था। धन अर्जित करने के प्रयोजन से उसने परदेश जाने का विचार किया और परदेश की यात्रा में घर से रवाना हो गया। गाँव पार करने के बाद रास्ते में एक घना जंगल पड़ा। जहाँ उसे प्रसव पीड़ा से कराहती एक ऊँटनी दिखाई पड़ी। उस ऊँटनी ने एक ऊँट को जन्म दिया।
बढ़ई को ऊँटनी और उसके बच्चे पर दया आ गई और वह परदेश जाने का विचार त्यागकर उन दोनों को लेकर अपने घर लौट आया। घर के बाहर ही उसने एक खूँटी से ऊँटनी को बांध दिया। वह रोज़ जंगल से हरे पत्ते लाकर ऊँटनी को खिलाने लगा। कुछ ही दिनों में ऊँटनी स्वस्थ हो गई। वह और उसका बच्चा बढ़ई के घर ही रहने लगे।
ऊँटनी का दूध बढ़ई के बच्चों के पीने की काम आता और कुछ दूध वह गाँव में बेच आता। इस तरह ऊँटनी उसकी आजीविका का साधन बन गई। समय बीता और ऊँटनी का बच्चा भी बड़ा हो गया। उसका उपयोग बढ़ई माल ढुलाई में करने लगा। बढ़ई ने ऊँट के गले में एक घंटी बांध दी। इससे ऊँट कहीं भी होता, उसे पता चल जाता था और उसे ढूंढना आसान हो जाता था।
कुछ वर्षों में बढ़ई ने कई ऊँट और ऊँटनियाँ ख़रीद ली। उसका व्यापार अच्छा चल पड़ा। ऊँटनियों का दूध बेच-बेचकर वह धनवान हो गया। ऊँटों से माल ढुलाई करवाकर भी उसे अच्छी कमाई होने लगी। सब कुछ अच्छा चल रहा था। लेकिन जिस ऊँट के गले में घंटी बंधी हुई थी, वह स्वयं को दूसरे ऊँटों से श्रेष्ठ समझने लगा। जब सारे ऊँट जंगल में पत्ते खाने जाते, तो वह समूह छोड़कर अकेला ही इधर-उधर घूमता रहता और घर भी देर से लौटता।
जंगल में जंगली जानवरों का भय था। उस पर उसके गले में घंटी बंधी हुई थी, जिसकी ध्वनि से जानवरों को ऊँट का पता चल जाता था। अन्य ऊँटों ने उसे चेताया, लेकिन अपने घमंड में उसने किसी की बात नहीं मानी। उसे लगता था कि अन्य ऊँट उसकी घंटी से जलते हैं। इसलिए उसके गले से उसे उतरना चाहते हैं।
एक दिन जंगल में पत्ते खाने के बाद सारे ऊँट गाँव लौटने लगे, तो सबने उस ऊँट को भी अपने साथ चलने को कहा। लेकिन वह अकेला ही जंगल में घूमने निकल गया। वह चलता, तो उसके गले की घंटी बजने लगती। एक शेर ने जब घंटी की आवाज़ का पीछा किया, तो उसे हृष्ट-पुष्ट ऊँट दिखाई पड़ा। उसे अपना शिकार मिल चुका था। उसने ऊँट पर झपट्टा मारा और उसका काम तमाम कर दिया।
Moral – घमंडी का सिर नीचा।
10. शिकायत करना छोड़ो (Panchtantra Ki Kahaniyan Hindi Mein)
आकाश एयरपोर्ट से बाहर निकला और कैब इंतज़ार करने लगा। वह कैब पहले ही बुक कर चुका था। वह सोच रहा था कि कैब सही समय पर आ जाए और सही समय पर उसे गंतव्य पर पहुँचा दे। कुछ ही देर में एक शानदार चमचमाती हुए कार उसके पास आकर रुकी, जिसे देख आकाश एक पल को चौंका कि क्या ये उसके द्वारा बुक की गई कैब ही है? उसका अंदाज़ा सही था, वो वही कैब थी।
कार से एक ड्राईवर बाहर आया और उसने आकाश के लिए कार के पीछे का दरवाज़ा खोला। आकाश के बैठते ही उसने कागज का एक पन्ना उसे पकड़ा दिया और बोला, “सर! इस कागज पर हमारा मिशन स्टेटमेंट लिखा हुआ है।आप आराम से बैठकर इसे पढ़ लीजिये। तब तक मैं आपका सामान डिक्की में डाल देता हूँ। “ओह” चौंकते हुए आकाश ने वह ‘मिशन स्टेटमेंट’ ले लिया और उसे पढ़ने लगा।
उसमें लिखा हुआ था – “हमारी कैब सर्विस में आपका स्वागत है। हम आपको आपके डेस्टिनेशन तक सस्ते दाम पर, सुरक्षित तरीके से और जल्द से जल्द पहुँचाने की कोशिश करेंगे। आपको किसी प्रकार की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा। आपकी यात्रा मंगलमय रहेगी।” वह ‘मिशन स्टेटमेंट’ पढ़कर आकाश के चेहरे पर एक मुस्कराहट छा गई। फिर उसने कार के भीतर एक नज़र डाली। कार साफ-सुथरी थी।
तब तक कैब ड्राईवर ड्राइविंग सीट पर बैठ चुका था। उसने पलटकर आकाश से पूछा, “सर! एसी का टेम्परेचर ठीक है? यदि इसे बढ़ाना या घटाना हो, तो आप बेझिझक मुझे बताइए।” आकाश ने कहा, “नहीं, इसकी ज़रुरत नहीं है। एसी का टेम्परेचर ठीक है।”
इसके बाद कैब ड्राईवर ने एक कार्ड आकाश की ओर बढ़ाया और बोला, “सर इस कार्ड पर सभी रेडियो स्टेशन्स की पूरी डिटेल्स है। आप जिस भी रेडियो स्टेशन को सुनना चाहते हैं, प्लीज मुझे बता दीजिये। मैं वो प्ले कर दूँगा।” आकाश ने कार्ड ले लिया। फिर कैब ड्राईवर ने कहा, “सर! आज के सारे न्यूज़ पेपर्स भी यहाँ उपलब्ध हैं। जो आप पढ़ना चाहें, मुझे बता दे।” आकाश ने एक न्यूज़ पेपर पढ़ने के लिए ले लिया।
कैब ड्राईवर ने फिर पूछा, “सर! आप चाय या कॉफ़ी कुछ लेंगे?” आकाश ने जवाब दिया, “एक्चुअली, मुझे सॉफ्ट ड्रिंक चाहिए था।” “आपके ठीक सामने एक छोटा सा फ्रिज है सर। आपको वहाँ चिल वाटर मिल जायेगा। सॉफ्ट ड्रिक्स की कुछ वैरायटी मिल जायेगी। चाहे तो आप आइस क्रीम भी खा सकते हैं।”
आकाश कार में दी जा रही फैसिलिटी से हैरान था। वह इन्हीं सबके बारे में सोच रहा था कि कैब ड्राईवर फिर से बोला, “सर आप इस शहर के बारे में कुछ पूछना चाहते है, तो मैं आपको यहाँ के बारे में बता सकता हूँ। इस तरह आपको यहाँ की जानकारी भी हो जाएगी और रास्ता भी आसानी से कट जायेगा।”
आकाश ने शहर के बारे में तो नहीं पूछा, लेकिन एक सवाल जो बहुत देर से वह सोच रहा था, वह पूछ लिया, “भाई, तुम मुझे ये बताओ कि क्या तुम हमेशा हर कस्टमर को इसी तरीके से ट्रीट करते हो? इसी तरीके से बात करते हो? उसे ये सारी फैसिलिटी देते हो?” कैब ड्राईवर ने जवाब दिया, “जी सर! लेकिन ये मैंने १ साल पहले ही शुरू किया है। यूं तो ५ साल से मैं कैब चला रहा हूँ। लेकिन पहले ये सब नहीं करता था।
मुझमें ये बदलाव एक कहानी लेकर आई। एक दिन कैब चलाते-चलाते मैं रेडियो पर एक कहानी सुन रहा था। वो कहानी थी – बाज और बत्तख की। उस कहानी में बताया गया था कि बत्तख कैसे क्वाक- क्वाक कर हमेशा शिकायतें करती हैं। वहीं बाज हमेशा ऊपर आकाश में उड़ता रहता है। उस कहानी में ये बताया गया था कि यदि हमें कुछ अलग बनना है, तो इस दुनिया से कुछ अलग करना होगा। बस ये कहानी मेरे दिमाग में घर कर गई।
मैंने अपने साथी कैब ड्राइवर्स को देखा, तो पाया कि जो काम मैं कर रहूँ, वे सब भी वही कर रहे हैं। वे दिन भर थक-हारकर काम करते हैं और जिंदगी से शिकायतें करते रहते थे। मैं भी ऐसा ही कर रहा था। लेकिन उस दिन मैंने सोचा कि मुझे कुछ अलग करना चाहिए। बस उस दिन से धीरे-धीरे अपनी कैब को बदलना शुरू किया। धीरे-धीरे एक-एक फैसिलिटी ऐड करनी शुरू किया और आज तक कर रहा हूँ।
आप बहुत लकी हैं सर कि आपको आज मेरे साथ ड्राइव पर आने का मौका मिल गया, क्योंकि मेरी कैब हमेशा बुक रहती है। एक बार जो पैसेंजर मेरे साथ आ जाता है, वो हमेशा मेरे साथ ही जाना चाहता है। वो मेरा नंबर लेकर जाता है और ज़रुरत पड़ने पर कॉल कर लेता है। कई बार मैं बुक होता हूँ, तो अपने दोस्तों को भेज देता हूँ और उन्हें कोई दिक्कत नहीं आने देता। आप भी ये मेरा कार्ड लीजिये सर।
कभी आपको भी मेरी ज़रूररत पड़े, तो याद ज़रूर कीजियेगा।” आकाश को आज तक इतना बढ़िया ड्राईवर कभी नहीं मिला था। उसका ये सफ़र उसके लिए ख़ास बन गया।
Moral – जिंदगी में बत्तख़ की तरफ शिकायत करना बंद कर दें, क्योंकि फिर जिंदगी बस शिकायत बनकर रह जायेगी। जिंदगी का मज़ा लेना है, तो अपनी सोच ऊँची रखकर बाज़ की तरह ऊपर आकाश में उड़ना होगा। सबसे हटकर, दुनिया से कुछ अलग काम करना होगा।
11. समस्याओं से डरें नहीं (Panchtantra Story in Hindi)
बहुत समय पहले की बात है। एक गाँव में एक गरीब किसान अपने परिवार के साथ रहता था। उसकी एक ही बेटी थी। वह बहुत सुंदर थी। गरीब किसान ने गाँव के जमींदार से कर्ज लिया हुआ था। किंतु गरीबी के कारण वह कर्ज वापस नहीं कर पा रहा था। जमींदार जब भी उस पर कर्ज वापस करने का दबाव बनाता, वह कुछ समय की मोहलत मांग लेता। ऐसे ही कई वर्ष बीत गए।
एक दिन जमींदार की दृष्टि किसान की सुंदर पुत्री पर पड़ी, जो युवा हो चुकी थी। किसान की बेटी को देख जमींदार उस पर मोहित हो गया। वह किसान के पास गया और बोला, “मैं तुम्हारा पूरा कर्ज माफ़ कर दूंगा, अगर तुम अपनी बेटी का विवाह मेरे साथ कर दो।”
जमींदार के विवाह प्रस्ताव से किसान और उसकी बेटी हैरान रह गए। जमींदार अधेड़ उम्र का कुरूप व्यक्ति था। किसान ने अपनी सुंदर बेटी का विवाह उससे करने से इंकार कर दिया।
किसान की इंकार सुनकर जमींदार बौखला गया और तुरंत अपने कर्ज के पैसे मांगने लगा. किसान के पास पैसे नहीं थे, उसने मोहलत मांगी। लेकिन जमींदार ने मना कर दिया और उसे जेल पहुँचाने की धमकी देने लगा। अंत में दोनों का मसला गाँव की पंचायत में पहुँचा। पूरा मामला सुनने के बाद पंच बोले, “ये मामला कुछ उलझा हुआ है।
किसान तो कई वर्षों से कर्ज चुका नहीं पा रहा और उसकी स्थिति को देखते हुए लगता नहीं कि वह कर्ज चुका पायेगा। बेटी का विवाह वह जमींदार से करना नहीं चाहता। ऐसे में बहुत सोच-विचार कर हम ये फ़ैसला किसान की बेटी की किस्मत पर छोड़ते हैं।”
पंच आगे बोले,”…यहाँ जमीन पर काले और सफ़ेद कंकड़ पड़े हुए हैं। जमींदार इन कंकडों में से दो कंकड़ उठाकर दो थैलों में रखेगा। किसान की बेटी को बिना देखे उन थैलों में से कंकड़ निकालना होगा।
1. यदि वह काला कंकड़ निकालती है, तो उसे जमींदार से शादी करनी पड़ेगी और किसान का कर्ज माफ़ कर दिया जाएगा।
2. यदि वह सफ़ेद कंकड़ निकालती है, तो उसे जमींदार से शादी नहीं करनी पड़ेगी और किसान का कर्ज भी माफ़ कर दिया जायेगा।
3. यदि वह कंकड़ निकालने से इंकार करती हैं, तो किसान को जेल में डाल दिया जायेगा।
पंचायत का फैसला सुनकर किसान और उसकी बेटी चिंता में पड़ गए। किसान तो सिर पकड़कर बैठ गया। इधर जमींदार ने जमीन में पड़े कंकड़ उठाकर थैली में डाल लिए। जब जमींदार कंकड़ उठा रहा था, तो किसान की बेटी ने देख लिया कि उसने सबकी आखों में धूल झोंककर दोनों काले कंकड़ ही उठाये हैं। अब किसान की बेटी किसी भी थैले से कंकड़ निकालती, वह काले रंग का ही होता। जमींदार इतना धूर्त होगा, ये उसने सोचा नहीं था।
लेकिन उसे किसी भी हाल में इस मुसीबत से बाहर निकलना था। वह अपना दिमाग दौड़ाने लगी। उसके सामने तीन विकल्प थे:
1. थैली में से कंकड़ निकालने से मना कर दे और पिता को जेल जाने दे।
2. थैली में से कंकड़ निकाले और चुपचाप जमींदार से शादी कर ले।
3. पंचों को जमींदार की धूर्तता के बारे में बता दे।
तीसरा विकल्प उसे ठीक लगा। लेकिन पंचों को बताने पर भी इस मुसीबत से छुटकारा नहीं मिलता। पंच जमींदार से कंकड़ बदलवा लेते और अंत में निर्णय उसकी किस्मत पर ही निर्भर करता। वह ऐसा उपाय सोचने लगी, जिससे उसे पंचों को कुछ कहना भी ना पड़ना पड़े और वह जमींदार से शादी करने से बच भी जाए। एक उपाय उसके दिमाग में आ ही गया। वह आगे बढ़ी और जमींदार की थैली में से एक कंकड़ निकाला।
लेकिन उसे देखे बिना ही जमीन में गिरा दिया। जमीन में गिरकर वह कंकड़ अन्य कंकडों में जा मिला। “हाय, ये क्या हो गया? कंकड़ का रंग तो मैं देख ही नहीं पाई और वह मेरे हाथों से नीचे गिर गया। अब मैं क्या करूं?” किसान की बेटी पंचो को देखकर जानबूझकर परेशान होने का नाटक करने लगी। यह सुन एक पंच बोला, “कोई बात नहीं। तुमने जो कंकड़ निकाला था, अब उसे पहचानना संभव नहीं है।
ऐसा करो जमींदार के दूसरे थैले में कंकड़ निकाल लो। वह जिस रंग का हुआ, उसके विपरीत रंग का कंकड़ ही तुमने पहले निकाला होगा।” सभी पंच इस बात पर सहमत हो गये। इधर ये सुनकर जमींदार के होश उड़ गए।लेकिन अब वह क्या कहता? पासा पलट चुका था। वह चुप ही रहा। किसान की बेटी ने जब थैले में से कंकड़ निकाला, तो वह काले रंग का था।
सबने मान लिया कि पहले उसने सफ़ेद कंकड़ निकाला था। इस तरह वह जमींदार से शादी करने से बच गई और उसके पिता का कर्ज भी माफ़ हो गया।
Moral – मुसीबत के समय समझदारी से काम लेना चाहिए। जब भी मुसीबत आ पड़े, तो बिना हौसला खोये शांत दिमाग से विचार करना करो, कोई न कोई हल अवश्य निकलेगा।
12. दुख का कारण (Panchtantra Kahani)
एक शहर में एक आलीशान और शानदार घर था। वह शहर का सबसे ख़ूबसूरत घर माना जाता था। लोग उसे देखते, तो तारीफ़ किये बिना नहीं रह पाते। एक बार घर का मालिक किसी काम से कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर चला गया। कुछ दिनों बाद जब वह वापस लौटा, तो देखा कि उसके मकान से धुआं उठ रहा है। करीब जाने पर उसे घर से आग की लपटें उठती हुई दिखाई पड़ी। उसका ख़ूबसूरत घर जल रहा था।
वहाँ तमाशबीनों की भीड़ जमा थी, जो उस घर के जलने का तमाशा देख रही थी। अपने ख़ूबसूरत घर को अपनी ही आँखों के सामने जलता हुए देख वह व्यक्ति चिंता में पड़ गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे? कैसे अपने घर को जलने से बचाये? वह लोगों से मदद की गुहार लगाने लगा कि वे किसी भी तरह उसके घर को जलने से बचा लें।
उसी समय उसका बड़ा बेटा वहाँ आया और बोला, “पिताजी, घबराइए मत. सब ठीक हो जायेगा।” इस बात पर कुछ नाराज़ होता हुआ पिता बोला, “कैसे न घबराऊँ? मेरा इतना ख़ूबसूरत घर जल रहा है।”
बेटे ने उत्तर दिया, “पिताजी, माफ़ कीजियेगा। एक बात मैं आपको अब तक बता नहीं पाया था। कुछ दिनों पहले मुझे इस घर के लिए एक बहुत बढ़िया खरीददार मिला था। उसने मेरे सामने मकान की कीमत की ३ गुनी रकम का प्रस्ताव रखा। सौदा इतना अच्छा था कि मैं इंकार नहीं कर पाया और मैंने आपको बिना बताये सौदा तय कर लिया।”
ये सुनकर पिता की जान में जान आई। उसने राहत की सांस ली और आराम से यूं खड़ा हो गया, जैसे सब कुछ ठीक हो गया हो। अब वह भी अन्य लोगों की तरह तमाशबीन बनकर उस घर को जलते हुए देखने लगा। तभी उसका दूसरा बेटा आया और बोला, “पिताजी हमारा घर जल रहा है और आप हैं कि बड़े आराम से यहाँ खड़े होकर इसे जलता हुआ देख रहे हैं। आप कुछ करते क्यों नहीं?”
“बेटा चिंता की बात नहीं है। तुम्हारे बड़े भाई ने ये घर बहुत अच्छे दाम पर बेच दिया है। अब ये हमारा नहीं रहा। इसलिए अब कोई फ़र्क नहीं पड़ता।” पिता बोला।
“पिताजी भैया ने सौदा तो कर दिया था। लेकिन अब तक सौदा पक्का नहीं हुआ है। अभी हमें पैसे भी नहीं मिले हैं। अब बताइए, इस जलते हुए घर के लिए कौन पैसे देगा?”
यह सुनकर पिता फिर से चिंतित हो गया और सोचने लगा कि कैसे आग की लपटों पर काबू पाया जाए। वह फिर से पास खड़े लोगों से मदद की गुहार लगाने लगा। तभी उसका तीसरा बेटा आया और बोला, “पिता जी घबराने की सच में कोई बात नहीं है। मैं अभी उस आदमी से मिलकर आ रहा हूँ, जिससे बड़े भाई ने मकान का सौदा किया था। उसने कहा है कि मैं अपनी जुबान का पक्का हूँ।
मेरे आदर्श कहते हैं कि चाहे जो भी हो जाये, अपनी जुबान पर कायम रहना चाहिए. इसलिए अब जो हो जाये, जबान दी है, तो घर ज़रूर लूँगा और उसके पैसे भी दूँगा।” पिता फिर से चिंतामुक्त हो गया और घर को जलते हुए देखने लगा.
Moral – एक ही परिस्थिति में व्यक्ति का व्यवहार अलग-अलग हो सकता है और यह व्यवहार उसकी सोच के कारण होता है।
13. जीवन का दर्पण (Panchtantra Ki Kahaniyan)
एक दिन जब ऑफिस के सभी कर्मचारी ऑफिस पहुँचे। तो उन्हें दरवाजे पर एक पर्ची चिपकी हुई मिली। उस पर लिखा था – “कल उस इंसान की मौत हो गई, जो कंपनी में आपकी प्रगति में बाधक था। उसे श्रद्धांजली देने के लिए सेमिनार हाल में एक सभा आयोजित की गई है। ठीक ११ बजे श्रद्धांजली सभा में सबका उपस्थित होना अपेक्षित है।”
अपने एक सहकर्मी की मौत की खबर पढ़कर पहले तो सभी दु:खी हुए। लेकिन कुछ देर बाद उन सबमें ये जिज्ञासा उत्पन्न होने लगी कि आखिर वह कौन था, जो उनकी और कंपनी की प्रगति में बाधक था? ११ बजे सेमिनार हाल में कर्मचारियों का आना प्रारंभ हो गया। धीरे-धीरे वहाँ इतनी भीड़ जमा हो गई कि उसे नियंत्रित करने के लिए सिक्यूरिटी गार्ड की व्यवस्था करनी पड़ी। लोगों का आना लगातार जारी था।
जैसे-जैसे लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी, सेमिनार हॉल में हलचल भी बढ़ती जा रही थी। सबके दिमाग में बस यही चल रहा था: “आखिर वो कौन था, जो कंपनी में मेरी प्रगति पर लगाम लगाने पर तुला हुआ था? चलो, एक तरह से ये अच्छा ही हुआ कि वो मर गया।” जैसे ही श्रद्धांजली सभा प्रारंभ हुई, एक-एक करके सभी उत्सुक और जिज्ञासु कर्मचारी कफ़न के पास जाने लगे। करीब पहुँचकर जैसे ही वे कफ़न के अंदर झांकते, उनका चेहरा फक्क पड़ जाता। मानो उन्हें सदमा सा लग गया हो।
उस कफ़न के अंदर एक दर्पण रखा हुआ था। जो भी उसमें झांककर देखता, उसे उसमें अपना ही अक्स नज़र आता। उस दर्पण पर एक पर्ची भी चिपकी हुई थी, जिस पर कुछ ऐसा लिखा था जो सबकी आत्मा को झकझोर रहा था: “केवल एक ही इंसान आपकी प्रगति में बाधक है और वो आप खुद है। आप ही वो इंसान है, जो अपने जीवन में क्रांति उत्पन्न कर सकते है। आप ही वो इंसान है, जो अपनी ख़ुशी, अपनी समझ और अपनी सफलता को प्रभावित कर सकते है।
आप ही वो इंसान हैं, जो अपनी खुद की मदद कर सकते है। आपका जीवन नहीं बदलता, जब आपका बॉस बदल जाता है। आपका जीवन नहीं बदलता, जब आपके दोस्त बदल जाते है। आपका जीवन नहीं बदलता, जब आपके पार्टनर या साथी बदल जाते है। आपका जीवन तब बदलता है, जब “आप खुद” बदल जाते है।
जब आप अपने खुद के विश्वास की सीमा को लांघकर उसके पार जाते है, जब आप ये समझ जाते है कि आप और सिर्फ आप अपने जीवन के लिए जिम्मेदार है, तब आपका जीवन बदल जाता है। सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता जो आपका किसी के साथ है, वो आपका खुद से है।
14. मानव और साँप की कहानी (Panchtantra Ki Kahani in Hindi)
एक दिन एक किसान अपने पुत्र के साथ खेत में काम कर रहा था। अचानक उसके पुत्र का पांव एक साँप की पूंछ पर पड़ गया। पूंछ दबते ही साँप फुंकार उठा और उसने किसान के बेटे को डस लिया। साँप विषैला था। उसके विष के प्रभाव से किसान का पुत्र तत्काल मर गया। अपने सामने पुत्र की मृत्यु देख किसान क्रोधित हो गया और प्रतिशोध लेने के लिए उसने अपनी कुल्हाड़ी उठाई और साँप की पूंछ काट दी। साँप दर्द से छटपटाने लगा।
उसे भी अत्यधिक क्रोध आया और प्रतिशोध लेने की ठान कर वह किसान की गौशाला में घुस गया। वहाँ उसने मवेशिओं को डस लिया। सारे मवेशी मर गए। इतना नुकसान देख किसान विचार करने लगा – “साँप से बैर के कारण मेरी अत्यधिक हानि हो चुकी है। अब इस बैर का अंत करना ही होगा। मुझे सर्प की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाना चाहिए।”
उसने एक कटोरे में दूध भरा और साँप के बिल के पास रख दिया। फिर कहने लगा, “हम दोनों ने एक-दूसरे का बहुत नुकसान कर लिया। अब इस बैर का अंत कर मित्रता कर लेते हैं। जो हुआ तुम भूल जाओ। मैं भी भूल जाता हूँ।”
साँप ने बिल के अंदर से ही उत्तर दिया, “दूध का कटोरा लेकर तुरंत यहाँ से चले जाओ। मेरे कारण तुमने अपना पुत्र खोया है, जो तुम कभी भूल नहीं पाओगे और तुम्हारे कारण मैंने अपनी पूंछ गंवाई है, जो मैं कभी भूल नहीं पाउँगा। इसलिए अब हमारे बीच मित्रता संभव नहीं है।”
Moral – अपकार क्षमा तो किया जा सकता है, किंतु भुलाया नहीं जा सकता।
15. रोता हुआ कुत्ता (Panchtantra Ki Kahaniyan)
एक युवक अपने नए घर में शिफ्ट हुआ। नया घर और वहाँ का वातावरण उसे बहुत पसंद आया। लेकिन एक बात थी, जो उसे थोड़ी खटक रही थी। जब से वह आया था, तब से किसी कुत्ते के रोने की आवाज़ उसे लगातार परेशान कर रही थी। काफ़ी देर वह यही सोचता रहा कि थोड़ी देर में यह आवाज़ बंद हो जायेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, बल्कि कुत्ते के रोने की आवाज़ दिन भर आती रही।
अगले दिन भी जब कुत्ते की रोने की आवाज़ बंद नहीं हुई, तब युवक से न रहा गया। वह घर से बाहर निकला। कुत्ते के रोने की आवाज़ उसके पड़ोस के एक घर से आ रही थी। वह उस घर में पहुँचा। वहाँ उसने देखा कि एक व्यक्ति बरामदे में बैठा अखबार पढ़ रहा है और पास ही लकड़ी की एक पाटिया पर बैठा कुत्ता रो रहा था।
यह नज़ारा देख युवक कुछ हैरान हुआ। वह उस व्यक्ति के पास पहुँचा और अपना परिचय देने के बाद बोला, “महाशय, आपका कुत्ता कल से बहुत रो रहा है।” “हाँ, ये तो मैं भी ये देख रहा हूँ।” उस व्यक्ति ने उत्तर दिया.
“तो फिर आपने यह जानने की कोशिश नहीं की कि इसे क्या परेशानी है। परेशानी जानकार इसकी मदद की जा सकती है।”
“अरे कुछ नहीं ये एक कील (Nail) के ऊपर बैठा हुआ है। वो कील इसके पेट में चुभ रही है। इसलिए ये रो रहा है।” व्यक्ति ने बड़ी ही शांति से उत्तर दिया। उत्तर सुन युवक हैरत में पड़ गया और बोला, “यदि ऐसा है, तो ये इस जगह से उठ क्यों नहीं जाता?”
“क्योंकि इसे अभी बहुत ज्यादा दर्द नहीं हो रहा है। जब दर्द इसकी सहनशक्ति से बाहर हो जायेगा, तो ये ख़ुद-ब-ख़ुद यहाँ से उठ जायेगा।”
16. प्यासा कौवा की कहानी
17. चालाक लोमड़ी की कहानी
18. खरगोश और कछुआ की कहानी
19. चींटी और कबूतर की कहानी
20. शेर और चूहे की कहानी
Panchtantra Ki Kahaniyan in Hindi PDF
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FAQs about Panchtantra
Q1. पंचतंत्र के लेखक कौन है?
विष्णु शर्मा
Q2. पंचतंत्र के 5 तंत्र कौन से हैं?
मित्रभेद
मित्रलाभ या मित्रसम्प्राप्ति
काकोलुकीयम्
लब्धप्रणाश
अपरीक्षित कारक
छोटे बच्चों की मजेदार कहानियां