Best 25+ Acchi Acchi Kahaniyan | बच्चों की अच्छी अच्छी कहानियां

हेलो दोस्तों आज हम इस पोस्ट में बच्चों की अच्छी अच्छी कहानियां (Acchi Acchi Kahaniyan) के बारे में पढ़ेंगे। बच्चों को छोटी-छोटी कहानियां के बारे में पढ़ना अच्छा लगता है। इनमें उनकी बहुत रूचि होती है। इन कहानियां को पढ़कर वे जीवन के बारे में बहुत कुछ सीखते है।

बच्चों को रात में कहानियां (Bedtime Stories) सुनने का बड़ा मन करता है। आप इन कहानियों को उन्हें रात में सुनाकर सुला सकते है। अगर आपको यह बच्चों की मजेदार कहानियां पसंद आए तो इसे शेयर जरूर कीजियेगा। तो आए जानते है Bacchon Ki Acchi Acchi Kahaniyan के बारे में।

Table of Contents

1. हाथी और उसके दोस्त (Acchi Acchi Kahani)

Acchi acchi kahani

एक बहुत बड़ा जंगल था और उसमे बहुत सारे जंगली जानवर रहते थे। उस जंगल में एक हाथी ही ऐसा था, जिसका कोई भी दोस्त नहीं था। वह अकेला हाथी दोस्तों की तलाश में जंगल में भटकता रहता था। एक बार हाथी को कुछ खरगोश मिले। हाथी ने उनसे कहा “भाई क्या मैं तुम्हारा दोस्त बन सकता हूँ?” फिर खरगोश ने कहा “आप मेरे घर के अंदर फिट होने के लिए बहुत बड़े हैं। तुम मेरे मित्र नहीं हो सकते।”

कुछ देर बाद हाथी को कुछ बंदर दिख गए। जब हाथी ने उनसे दोस्ती करने को पूछा तब उन्होंने जवाब दिया “आप बहुत बड़े है और पेड़ों पर झूल नहीं सकते है। जैसा हम करते है। इसलिए हम आपके दोस्त नहीं हो सकते।” फिर हाथी को एक मेंढक मिला और पूछा कि क्या वह उसका दोस्त हो सकता है? फिर मेंढक ने कहा “आप बहुत बड़े और भारी हैं। तुम मेरी तरह नहीं कूद सकते। आप मेरे मित्र नहीं हो सकते।”

हाथी निराश होके आगे चला गया। वहाँ उसकी कुछ लोमड़ियों से मुलाकात हो गयी और उसे वहाँ भी एक ही जवाब मिला, कि वह बहुत बड़ा है। अगले दिन हाथी ने देखा की जंगल के सभी जानवर डर के मारे  भाग रहे थे। हाथी ने एक हिरण को रोका और पूछा कि क्या हो रहा है और उसने  बताया गया कि एक बाघ सभी जानवरों पर हमला कर रहा है। हाथी दूसरे कमजोर जानवरों को बाघ से बचाना चाहता था। 

वह जल्दी से बाघ के पास गया और बोला “आप मेरे दोस्तों को अकेला छोड़ दो। इन्हें न खाएं, हम इस जंगल में मिल जुलकर रहते है।” बाघ ने उसकी बात नहीं सुनी और हाथी को अपने रास्ते से हट जाने को कहा। बाघ सुनने को राज़ी नहीं था और हाथी को कोई अन्य तरीका भी नहीं दिख रहा था। 

फिर हाथी ने बाघ को जोर से लात मार दी और बाघ डर के मारे वहाँ से भाग गया। हाथी ने अपनी बहादुरी से बाघ को भगा दिया। यह देखकर सभी जानवर एकजुट हो गए और उसमे दोस्त बन गए।

Moral – दोस्त सभी आकर के होते है।

2. चिड़िया और बंदर की कहानी (Kahaniyan Acchi Acchi)

Kahaniyan acchi acchi

जंगल में ठण्ड दस्तक दे रही थी, सभी जानवर आने वाले मौसम की तैयारी करने में लगे हुए थे। एक पेड़ पर रहने वाली चिड़िया भी उनमें से एक थी। हर साल की तरह उसने अपने लिए एक घोंसला तैयार किया था और अचानक होने वाली बारिश और ठण्ड से बचने के लिए उसे चारो तरफ से घांस-फूंस से ढक दिया था।

सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन अचानक ही बिजली कड़कने लगी और देखते-देखते जोरदार बारिश होने लगी। बारिश से ठण्ड भी बढ़ गयी और सभी जानवर अपने-अपने घरों की तरफ भागने लगे। वह चिड़िया भी तेजी दिखाते हुए अपने घोंसले में वापस आ गई और आराम करने लगी।

कुछ देर बाद उसने देखा की एक बंदर खुद को बारिश से बचाने के लिए पेड़ के नीचे आ गया है। चिड़िया ने बंदर को देखते ही कहा, “तुम इतने होशियार बने फिरते हो तो भला ऐसे मौसम से बचने के लिए घर क्यों नहीं बनाया?”  यह सुनकर बंदर को गुस्सा आया। लेकिन वह चुप ही रहा और पेड़ की आड़ में खुद को बचाने का प्रयास करने लगा।

थोड़ी देर शांत रहने के बाद चिड़िया फिर बोली, “पूरी गर्मी इधर-उधर आलस में बिता दी। अच्छा होता अपने लिए एक घर बना लेते।” यह सुन बंदर ने गुस्से में कहा, “तुम अपने से मतलब रखो, मेरी चिंता छोड़ दो।” थोड़ी ही देर में हवाएं भी तेज चलने लगी और अब बारिश भी तेज हो गयी। बंदर ठण्ड से काँप रहा था और खुद को ढंकने की कोशिश कर रहा था। 

पर चिड़िया ने तो मानो उसे छेड़ने की कसम खा रखी थी। वह फिर बोली, “काश कि तुमने थोड़ी अकल दिखाई होती तो आज यह हालत नहीं होती। कम से कम अब घर बनाना सीख लेना।”इतना सुनते ही बंदर गुस्से से तुरंत ही पेड़ पर चढ़ने लगा और बोला “भले मैं घर बनाना नहीं जानता। 

लेकिन मुझे तोड़ना अच्छे से आता है और ये कहते हुए उसने चिड़िया का घोंसला तहस नहस कर दिया।” अब चिड़िया भी बंदर की तरह बेघर हो चुकी थी और ठण्ड से काँप रही थी।

Moral – हमें हमेशा अपने काम से काम रखना चाहिए और दूसरे के मामले के बारे में नहीं बोलना चाहिए। 

3. खरगोश की चालाकी (Acchi Acchi Kahaniyan)

एक जंगल में एक शक्तिशाली शेर रहा करता था। उसे जब भी भूख लगती, तो वह शिकार पर निकलता और जो जानवर उसके सामने दिखता, उसका शिकार करके अपनी भूख मिटाता था। जंगल के सभी जानवर उससे डरते थे। एक दिन शेर ने एक बकरी का शिकार किया। जब वह उसे खाने लगा, तो उसकी नुकीली सींगों से बुरी तरह घायल हो गया। 

उसे बहुत गुस्सा आया और उसने तय किया कि जंगल में सींगों वाले जानवरों के लिए कोई जगह नहीं है। उसने पूरे जंगल में ये घोषणा करवा दी कि सींग वाले सभी जानवर जंगल छोड़कर चले जाए। यह घोषणा सुनकर बेचारे सींग वाले जानवर क्या करते? सभी शेर से डरते थे। इसलिए जंगल छोड़कर जाने की तैयारी करने लगे। 

उस जंगल में एक खरगोश भी रहता था। जब उसने भी शेर की घोषणा सुनी, तो डर के मारे सारी रात सो नहीं पाया। अगली सुबह सींग वाले सभी जानवर जंगल से जाने लगे। उनमें से कई खरगोश के मित्र भी थे। खरगोश आखिरी बार अपने मित्रों से मिलने गया। जब वह उनसे मिलकर वापस लौटने लगा, तो उसे धूप में अपनी परछाई दिखाई पड़ी। परछाई में जब उसने अपनी लंबे कानों को देखा, तो डर गया। 

उसने सोचा कि कहीं मेरे लंबे कानों को शेर सींग न समझ ले। अगर उसने ऐसा समझ लिया, तो फिर चाहे मैं उसे कितना ही समजा लूं, वह मेरी बात नहीं मानेगा और मुझे मार डालेगा। उसके बाद उसने बिना देर किए उसने भी जंगल छोड़ दिया।

Moral – अपने शत्रु को ऐसा कोई मौका मत दो। जिससे की आप मुसीबत में पड़ जाओ। 

4. राजा और चिड़िया की कहानी (Bacchon Ki Acchi Acchi Kahaniyan)

एक राज्य में एक राजा राज करता था। उसके महल में बहुत ख़ूबसूरत बगीचा था। बगीचे की देखरेख की ज़िम्मेदारी एक माली के कंधों पर थी। माली पूरा दिन बगीचे में रहता और पेड़-पौधों की अच्छे से देखभाल किया करता था। राजा माली के काम से बहुत खुश था। बगीचे में एक अंगूर की एक बेल लगी हुई थी। जिसमें ढेर सारे अंगूर फले हुए थे। एक दिन एक चिड़िया बगीचे में आई। उनसे अंगूर की बेल पर फले अंगूर चखे। अंगूर स्वाद में मीठे थे। 

उस दिन के बाद से वह रोज़ बाग़ में आने लगी। चिड़िया अंगूर की बेल पर बैठती और चुन-चुनकर सारे मीठे अंगूर खा लेती। खट्टे और अधपके अंगूर वह नीचे गिरा देती। चिड़िया की इस हरकत पर माली को बड़ा गुस्सा आता। वह उसे भगाने का प्रयास करता, लेकिन सफल नहीं हो पाता। बहुत प्रयासों के बाद भी जब माली चिड़िया को भगा पाने में असफल रहा।

तो राजा के पास चला गया और उसने राजा को चिड़िया की पूरी कहानी बताई और बोला, “महाराज! चिड़िया में मुझे तंग कर दिया है। उसे काबू में करना मेरे बस के बाहर है। अब आप ही कुछ करे।” राजा ने खुद ही चिड़िया से निपटने का निर्णय किया। अगले दिन वह बाग में गया और अंगूर की घनी बेल की आड़ में छुपकर बैठ गया। रोज़ की तरह चिड़िया आई और अंगूर की बेल पर बैठकर अंगूर खाने लगी। 

अवसर पाकर राजा ने उसे पकड़ लिया। चिड़िया ने राजा की पकड़ से आज़ाद होने का बहुत प्रयास किया। किंतु सब व्यर्थ रहा। अंत में वह राजा से याचना करने लगी कि वो उसे छोड़ दें। राजा इसके लिए तैयार नहीं हुआ। तब चिड़िया बोली, “राजन, यदि तुम मुझे छोड़ दोगे, तो मैं तुम्हें ज्ञान की 4 बातें बताऊंगी।” 

राजा चिड़िया पर क्रोधित था। लेकिन इसके बाद भी उसने यह बात मान ली और बोला, “ठीक है, पहले तुम मुझे ज्ञान की वो 4 बातें बताओ। उन्हें सुनने के बाद ही मैं तय करूँगा कि तुम्हें छोड़ना ठीक रहेगा या नहीं।” चिड़िया बोली, “ठीक है राजन, तो सुनो पहली बात, कभी किसी हाथ आये शत्रु को जाने मत दो।”

“ठीक है और दूसरी बात?” राजा बोला। “दूसरी ये है कि कभी किसी असंभव बात पर यकीन मत करो।” चिड़िया बोली। “तीसरी बात?” “बीती बात पर पछतावा मत करो।” “और चौथी बात।” “राजन! चौथी बात बड़ी गहरी है। मैं तुम्हें वो बताना तो चाहती हूँ। लेकिन तुमनें मुझे इतनी जोर से जकड़ रखा है कि मेरा दम घुट रहा है। तुम अपनी पकड़ थोड़ी ढीली करो, तो मैं तुम्हें चौथी बात बताऊं।” चिड़िया बोली।

राजा ने चिड़िया की बात मान ली और अपनी पकड़ ढीली कर दी। पकड़ ढ़ीली होने पर चिड़िया राजा एक हाथ छूट गई और उड़कर पेड़ की ऊँची डाल पर बैठ गई। राजा उसे ठगा सा देखता रह गया। पेड़ की ऊँची डाल पर बैठी चिड़िया बोली, “राजन! चौथी बात ये कि ज्ञान की बात सुनने भर से कुछ नहीं होता। उस पर अमल भी करना पड़ता है। 

अभी कुछ देर पहले मैंने तुम्हें ज्ञान की 3 बातें बताई। जिन्हें सुनकर भी आपने उन्हें अनसुना कर दिया। पहली बात मैंने आपसे ये कही थी कि हाथ में आये शत्रु को कभी मत छोड़ना। लेकिन आपने अपने हाथ में आये शत्रु अर्थात् मुझे छोड़ दिया। दूसरी बात ये थी कि असंभव बात पर यकीन मत करें। 

लेकिन जब मैंने कहा कि चौथी बात बड़ी गहरी है, तो आप मेरी बातों में आ गए। तीसरी बात मैंने आपको बताई थी कि बीती बात पर पछतावा न करें और देखिये, मेरे आपके चंगुल से छूट जाने पर आप पछता रहे हैं।” इतना कहकर चिड़िया वहाँ से उड़ गई और राजा हाथ मलता रह गया.

Moral – ज्ञान अर्जित करने से कोई ज्ञानी नहीं बन जाता। ज्ञानी वो होता है, जो अर्जित ज्ञान पर अमल करता है। 

5. कौवा और अन्य पक्षी (Kahani Acchi Acchi)

Kahani acchi acchi

एक कौवा एक जंगल में रहता था। उसे कोई चिंता नहीं था और वह अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट था। एक दिन वह उड़ते हुए वह एक तालाब के किनारे पहुँचा और वहाँ उसने एक उजले सफ़ेद हंस को तैरते हुए देखा। उसे देखकर वह सोचने लगा – “यह हंस कितना सौभाग्यशाली है, जो इतना सफेद और सुंदर है और इधर मुझे देखो, मैं कितना काला और बदसूरत हूँ। ये हंस अवश्य इस दुनिया का सबसे खुश पक्षी होगा।”

वह हंस के पास गया और अपने मन की बात उसे बता दी। फिर हंस बोला, “नहीं मित्र! वास्तव में ऐसा नहीं है। पहले मैं भी यही सोचा करता था कि मैं इस दुनिया का सबसे सुंदर पक्षी हूँ। इसलिए बहुत सुखी और खुश था। लेकिन एक दिन मैंने तोते को देखा, जिसके पास दो रंगों की अनोखी छटा है। उसके बाद से मुझे यकीन है कि वही दुनिया का सबसे सुंदर और खुश पक्षी है।”

हंस की बात सुनने के बाद कौवा तोते के पास गया और उससे पूछा कि क्या वह दुनिया का सबसे खुश पक्षी है। तोते ने उत्तर दिया, “मैं बहुत ही खुश जीवन व्यतीत कर रहा था, जब तक मैंने मोर को नहीं देखा था। लेकिन अब मुझे लगता है कि मोर से सुंदर तो कोई हो ही नहीं सकता। इसलिए वही दुनिया का सबसे सुखी और खुश पक्षी है।” इसके बाद कौवा मोर की खोज में निकला। उड़ते-उड़ते वह एक चिड़ियाघर पहुँचा।

वहाँ उसने देखा कि मोर एक पिंजरे में बंद है और उसे देखने के लिए बहुत सारे लोग जमा है। सभी मोर की बहुत सराहना कर रहे थे। सबके जाने के बाद कौवा मोर के पास गया और उससे बोला, “तुम कितने सौभाग्यशाली हो, जो हजारों लोग तुम्हें तुम्हारी सुंदरता के कारण हर रोज देखने आते है। मुझे तो लोग अपने आस-पास भी नहीं आने देते और देखते ही भगा देते है। तुम इस दुनिया के सबसे खुश पक्षी हो ना?” 

कौवे की बात सुनकर मोर उदास हो गया। वह बोला, “मित्र! मुझे भी अपनी सुंदरता पर बड़ा घमंड था। मैं सोचा करता था कि मैं इस दुनिया का क्या, बल्कि इस पूरे ब्रम्हाण्ड का सबसे सुंदर पक्षी हूँ। इसलिए खुश भी बहुत था। लेकिन मेरी यही सुंदरता मेरी शत्रु बन गई है और मैं इस चिड़ियाघर में बंद हूँ। 

यहाँ आने के बाद इस पूरे चिड़ियाघर का अच्छी तरह मुआयना करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि कौवा ही एक ऐसा पक्षी है, जो यहाँ कैद नहीं है। इसलिए पिछले कुछ दिनों से मैं सोचने लगा हूँ कि काश मैं कौवा होता, तो कम से कम आज़ादी से बाहर घूम सकता और तब मैं इस दुनिया का सबसे सुखी और खुश पक्षी होता।”

Moral – हमें कभी भी अपनी तुलना दूसरों से नहीं करनी चाहिए। भगवान ने हमें जैसे रंग-रूप में बनाया है हमें उसी में खुश रहना चाहिए।

6. शेर और मच्छर की कहानी (Kids Story in Hindi)

एक समय की बात है एक जंगल में एक शेर रहता था जो की वहाँ का राजा था और उसे अपनी शक्ति पर बड़ा घमंड था। वह स्वयं को सबसे ताकतवर समझता था। इसलिए, जंगल के हर जानवर पर अपनी धौंस जमाता था। जंगल के जानवर भी क्या करते? अपने प्राण सबको प्रिय थे। इसलिए, न चाहकर भी शेर के सामने झुक जाते और उसका कहा मानते। 

एक दिन दोपहर के समय शेर एक पेड़ के नीचे सो रहा था।  वहीं एक मच्छर भिनभिना रहा था। जिससे शेर की नींद खुल गई। वह एक मच्छर से बोला, “ए मच्छर, देखता नहीं मैं सो रहा हूँ। भाग यहाँ से, नहीं तो मसल कर रख दूँगा।” मच्छर ने कहा, “माफ करें वनराज, मेरे कारण आपकी नींद खुल गई। लेकिन आप मुझे ये बात आराम से भी कह सकते हैं, आखिर, मैं भी इस धरती का जीव हूँ.” 

फिर शेर ने कहा “अच्छा, तो तू छोटा सा मच्छर मुझसे जुबान लड़ाएगा और क्या गलत कहा मैंने? तुम मच्छर हो ही ऐसे कि कोई भी तुम्हें यूं मसल दें। मैं तो ये बार-बार कहूँगा क्या बिगाड़ लोगे तू मेरा?” मच्छर को शेर की बात और व्यवहार का बहुत बुरा लगा। वह अपने साथी मच्छरों के पास गया और उन्हें सारी बताई। सभी मच्छरों को शेर की बात चुभ गई। उन्होंने तय किया कि इस संबंध में एक बार सब मिलकर शेर से बात करेंगे। सभी मच्छर शेर के पास पहुँचे और बोले, “वनराज, हमें आपसे बात करनी है।”

शेर ने कहा “जल्दी बोलो, मुझे तुम जैसों से बात करने की फ़ुर्सत नहीं है।” मच्छर बोले “वनराज, आप होंगे बहुत शक्तिशाली। लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है कि आप अन्य जीवों और प्राणियों का मज़ाक उड़ायें या उन्हें नीचा दिखाएं।” फिर शेर ने कहा “मैंने जो कहा, सच कहा मैं सबसे शक्तिशाली हूँ और मुझे कोई हरा नहीं सकता।” फिर मच्छर बोले “घमंड में चूर शेर गरजा ऐसा नहीं है। 

अगर आप शक्तिशाली हैं, तो हममें भी इतना सामर्थ्य है कि आवश्यकता पड़ने पर हम किसी का भी सामना कर सकते हैं और उसे हरा सकते हैं। हम आपको भी हरा सकते हैं।” यह सुनकर शेर हँसते हुए बोला, “तुम लोग मुझे हराओगे? तुम लोगों की इतनी हिम्मत कि मेरे सामने आकर ये बात कहो, मेरी शक्ति का अंदाज़ा नहीं है तुम्हें, वरना ऐसा कभी नहीं कहते, अभी भी समय है, भाग जाओ यहाँ से, नहीं तो कोई नहीं बचेगा।”

शेर के घमंड ने मच्छरों को क्रोधित कर दिया। उन्होंने ठान लिया कि इस शेर को मज़ा चखा कर ही रहेंगे। वे सारे एकजुट हुए और शेर पर टूट पड़े। वे जगह-जगह उसे काटने लगे। वह दर्द से कराह उठा। इतने सारे मच्छरों का सामना करना उसके बस के बाहर हो गया। वह दर्द से चीखता हुआ वहाँ से भागा। लेकिन मच्छरों ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। वह जहाँ भी जाता, वे भी उसके पीछे जाते और उसे काटते। 

आखिरकार शेर को झुकना पड़ा, उसने हार मान ली। वह मच्छरों के सामने गिपड़गिड़ाने लगा, “मुझे बख्श दो मुझसे गलती हो गई, जो मैंने तुम्हें तुच्छ समझकर तुम्हारा मज़ाक उड़ाया और तुमसे बुरा व्यवहार किया। आज तुमने मेरा घमंड तोड़ दिया है, अब मैं कभी किसी को नीचा नहीं दिखाऊंगा।”

मच्छरों ने शेर को सबक सिखा दिया था। इसलिए उन्होंने उसे काटना बंद कर दिया। फिर मच्छर बोले, “घमंडी का घमंड कभी न कभी अवश्य टूटता है। आज तुम्हारा टूटा है, घमंड करना छोड़ दो, वरना एक दिन ये तुम्हें ले डूबेगा और कभी किसी प्राणी को नीचा मत समझो, हर किसी का अपना सामर्थ्य और शक्ति होती है।” और फिर से वहाँ से भाग गया.

Moral – घमंडी का सिर नीचा।

7. कबूतर और शिकारी की कहानी (Hindi Bedtime Story)

एक बार की बात हैं कि कबूतरों का एक दल आसमान में भोजन की तलाश में उडता हुआ जा रहा था। नीचे हरियाली नजर आने लगी तो भोजन मिलने की उम्मीद बनी। एक कबूतर ने संकेत किया “नीचे एक खेत में बहुत सारा दाना बिखरा पड़ा हैं। हम सबका पेट भर जाएगा।” कबूतरों ने सूचना मिलते ही वे उतरकर खेत में बिखरे दाने के पास जाने लगे। सारा दल नीचे उतरा और दाना चुनने लगा। 

वास्तव में वह दाना पक्षी पकड़ने वाले एक बहलिए ने बिखेर रखा था। ऊपर पेड पर तना था उसका जाल। जैसे ही कबूतर दल दाना चुगने लगा, जाल उन पर आ गिरा और सारे कबूतर फंस गए। उन में से एक कबूतर बोला “ओह! यह तो हमें फंसाने के लिए फैलाया गया जाल था। भूख ने हमारी अक्ल पर पर्दा डाल दिया है। हमे सोचना चाहिए था कि इतना अन्न बिखरा होने का कोई मतलब हैं।” दूसरा कबूतर रोने लगा “हम सब मारे जाएंगे।”

बाकी कबूतर तो हिम्मत हार बैठे थे। पर एक बुद्धिमान कबूतर ने कहा “सुनो, जाल मजबूत हैं यह ठीक हैं, पर इसमें इतनी भी शक्ति नहीं कि एकता की शक्ति को हरा सके। हम अपनी सारी शक्ति को जोड़े तो यहाँ से बच सकते हैं।” युवा कबूतर फड़फड़ाया “साफ-साफ बताओ तुम क्या कहना चाहते हो। जाल ने हमें तोड रखा हैं, शक्ति कैसे जोडे?” 

बुद्धिमान कबूतर बोला “तुम सब चोंच से जाल को पकडो, फिर जब मैं फुर्र कहूं तो एक साथ जोर लगाकर उडना।” सबने ऐसा ही किया। तभी जाल बिछाने वाला शिकारी आता नजर आया। जाल में कबूतर को फंसा देख उसकी आँखें चमकी। हाथ में पकड़ा डंडा उसने मजबूती से पकड़ा व जाल की ओर दौड़ा।

शिकारी जाल से कुछ ही दूर था कि वह बुद्धिमान कबूतर बोला “फुर्रर्रर्र!” सारे कबूतर एक साथ जोर लगाकर उड़े तो पूरा जाल हवा में ऊपर उठा और सारे कबूतर जाल को लेकर ही उड़ने लगे। कबूतरों को जाल सहित उड़ते देखकर शिकारी हैरान रह गया।

Moral – इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि एकता में बल होता है और हमें मुसीबत में धैर्य से काम से लेना चाहिए। 

8. गधा और भेड़िया की कहानी (Bacchon Ki Acchi Acchi Kahani)

Bacchon ki acchi acchi kahani

जंगल के पास एक घास का मैदान था। एक मोटा ताज़ा गधा रोज वहाँ हरी घास चरने आया करता था। एक दिन वह बड़े मज़े से घास के मैदान में चर रहा था। तभी जंगल से एक भेड़िया वहाँ आ गया। वह शिकार की तलाश में था क्योंकि उसे बहुत भूख लगी थी। फिर उसने गधे को देखा और उसे देखकर वह बहुत खुश हुआ और सोचने लगा कि अगर इसका शिकार कर लिया जाए। तो कई दिन के भोजन का जुगाड़ हो जायेगा।

फिर वह मौके की तलाश में एक पेड़ के पीछे छुप गया और गधे पर नज़र रखने लगा। घास चरते गधे ने उसे देख लिया था और वह समझ गया था कि भेड़िया उसका शिकार करना चाहता है। वह यह सोच ही रहा था कि भेड़िया उसकी ओर आने लगा। जान बचाने के लिए गधे ने एक युक्ति लगाई और वह लंगड़ाकर चलने लगा। उसे यूं लंगड़ाकर चलते देख भेड़िये ने पूछा, “क्यों? क्या बात है? तुम यूं लंगड़ा कर क्यों चल रहे हो?”

फिर गधे ने कहा “क्या बताऊं भेड़िये भाई? मेरे पैर में कांटा चुभ गया है और बड़ा दर्द हो रहा है। इसलिए यूं लंगड़ाकर चल रहा हूँ। क्या तुम ये कांटा निकाल दोगे?” फिर भेड़िया बोलै “मैं?” “मैं जानता हूँ भेड़िये भाई! तुम मुझे खाने के बारे में सोच रहे हो। मगर जब तुम मुझे खाओगे, तब ये कांटा तुम्हारे गले में अटक सकता है। इसलिए इसे निकालना जरूरी है।”

भेड़िये ने सोचा – गधा सही कह रहा है। खाते समय यह कांटा मेरे लिए परेशानी बन सकता है? इसका कांटा निकाल ही देता हूँ। फिर इसे मारकर मज़े से खाऊंगा। भेड़िये बोला – जरा दिखाओ तो, तुम्हें कहाँ कांटा चुभा है?” गधे ने अपना पैर उठा दिया। भेड़िया उसके पैर के पास गया और कांटे को ढूंढने लगा। जब गधे ने देखा कि भेड़िये का ध्यान पूरी तरह से उसके पैर पर है, तो उसने एक जोरदार लात उसको मार दी। 

भेड़िया दूर जाकर गिरा। उसका सिर चकरा गया था। उसे दिन में तारे नजर आ गए। जब वह संभला और उठा, तो देखा कि गधा उसकी पहुँच से बहुत दूर भाग चुका है। इस तरह अपनी सूझबूझ से गधे ने अपनी जान बचाई।

Moral – मुसीबत के समय दिमाग से काम लेना चाहिए। 

9. कछुआ और दो हंस की कहानी (Kids Stories in Hindi)

एक तालाब में एक कछुआ रहता था। वह कछुआ बहुत बोलता था। दूसरों से बात करते समय बीच-बीच में टोका-टोकी करना उसकी आदत थी। एक दिन दो हंस उस तालाब में उतरे। उन्हें तालाब के आस-पास का वातावरण बहुत अच्छा लगा। उसके बाद से वे हर रोज वहाँ आने लगे। कछुआ उन्हें हर रोज देखता। एक दिन उसने उन दोनों हंसों से बात की। वे उसे दोनों भले और अच्छे लगे। फिर उनमें अच्छी दोस्ती हो गई। 

हंस रोज़ तालाब में आते और कछुए से मिलते। फिर तीनों मिलकर नई प्रकार की बातें करते। बातों के बीच कछुए की टोका-टाका ज़ारी रहती। लेकिन हंस इसका बुरा नहीं मानते। एक बार उस क्ष्रेत्र में भयंकर अकाल पड़ा। नदी-तालाब सूखने लगे। वह तालाब भी सूखने लगा, जहाँ कछुआ रहता था। एक शाम जब हंस उससे मिलने आये, तो उसे बताया कि वे दोनों वह स्थान छोड़कर थोड़ी सी दूर स्थित एक अन्य झील पर जा रहे हैं, जिसमें बहुत पानी है। 

यह सुनकर कछुवा दु:खी हो गया और आँखों में आंसू भरकर बोला, “मित्रों! कुछ ही दिनों में ये तालाब सूख जायेगा और मेरा मरना तो निश्चित है। लेकन इस बात से ज्यादा दु:ख मुझे इस बात का है कि अपनी आखरी घड़ी में मैं अपने मित्रों को देख नहीं पाउँगा।” कछुए की इस बात पर दोनों हंस उदास हो गए। उन्हें कछुए से हमदर्दी थी। फिर वे बोले हम तुम्हें यहाँ अकेले छोड़कर नहीं जायेंगे। हम तुम्हें भी अपने साथ ले जायेंगे। हमारी मित्रता और साथ सदा बना रहेगा।”

“लेकिन ये कैसे संभव है मित्रों? तुम दोनों तो उड़कर चले जाओगे। मुझे तो धीरे-धीरे चलकर उस स्थान तक पहुँचने में महीनों लग जायेंगे। हो सकता है कि बीच रास्ते में ही मेरे प्राण चले जाये। तुम दोनों चले जाओ। मैं तुम्हें याद करके अपने दिन व्यतीत कर लूँगा।” हंसों ने कछुए की बात नहीं मानी और उसे अपने साथ ले जाने का उपाय सोचने लगे। सोचते-सोचते उन्हें एक उपाय सूझ ही गया और वे खुश हो गए। 

उन्होंने तय किया कि वे बांस की एक लकड़ी लेकर आयेंगे और कछुए उस लकड़ी के बीच भाग को अपने मुँह से पकड़ेगा और वे दोनों उस लकड़ी के एक-एक सिरे को अपनी चोंच में दबा लेंगे। इस तरह वे कछुए को लेकर उड़ते हुए उस झील तक पहुँच जायेंगे।” कछुआ भी यह उपाय सुनकर खुश हुआ। अगले दिन हंस लकड़ी लेकर कछुए के पास आये और उसे लकड़ी के बीच भाग को मुँह से पकड़ने को कहा। 

हंस कछुए की बातूनी आदत को भली-भांति जानते थे। इसलिए उन्होंने उसे समझाया कि जब तक वे झील तक नहीं पहुँच जाते, उसे बिल्कुल भी बोलना नहीं है। वरना वह नीचे गिर जायेगा। कछुए ने उन्हें कह दिया कि वह चुप रहेगा और कुछ भी नहीं बोलेगा। इसके बाद कछुए ने लकड़ी के बीच के भाग को मजबूती से पकड़ लिया और हंस लकड़ी के दोनों सिरों को चोंच में दबाकर आकाश में उड़ने लगे। उड़ते-उड़ते वे एक कस्बे के ऊपर से गुजरे। 

तभी किसी ने आसमान के उस विचित्र नजारे को देख लिया। वह दूसरे लोगों को बताने लगा, “देखो आसमान में कछुआ उड़ रहा है।” एक मुँह से दूसरे मुँह होते हुए ये बात पूरे कस्बे में फ़ैल गई। लोग घरों के बाहर निकल आये और शोर मचाने लगे। 

यह शोर सुन कछुए से रहा नहीं गया और वह हंसों से बोला, “ये लोग हमें देख इतना शोर क्यों मचा रहे हैं?” बोलते ही कछुए के मुँह से लकड़ी छूट गई और वह सीधे जमीन से आ टकराया। जमीन से टकराते ही उसके प्राणपखेरू उड़ गए।

Moral – वक़्त की नज़ाकत को देखकर ही मुँह खोलना चाहिए। 

10. शेर और गीदड़ की कहानी (Bacchon Ki Kahaniyan Acchi Acchi)

एक जंगल में एक शेर रहता था। एक दिन वह शिकार की तलाश में बहुत दूर निकल गया और शाम हो गई। लेकिन उसके हाथ कोई शिकार नहीं लगा और वह बहुत थक भी गया था। तभी उसे एक गुफ़ा दिखाई दी। वह गुफा के अंदर चला गया। गुफा खाली थी। शेर ने सोचा – जरूर यहाँ रहने वाला जानवर बाहर गया है। रात होते-होते वह गुफा में वापस ज़रूर आएगा। मैं ऐसा करता हूँ, तब तक यहीं छुपकर बैठ जाता हूँ। 

जब वह जानवर आयेगा, तो उसे मारकर खा जाऊँगा और अपनी भूख मिटाऊँगा। वह गुफा में एक कोने में छुपकर बैठ गया। वह गुफा एक गीदड़ की थी। जब वह लौटकर आया और गुफा के पास पहुँचा। तो देखा कि शेर के पंजों के निशान देखे। जो की गुफा के अंदर जा रहे थे। लेकिन बाहर आते हुए पंजों के निशान उसे दिखाई नहीं पड़े। वह समझ गया कि उसकी गुफा में कोई शेर गया है। उसे यह भी संदेह था कि वह अब भी अंदर ही बैठा हुआ है। 

यह पता लगाने की शेर गुफा में बैठा है या नहीं। उसने एक तरकीब निकाली। गुफा के बाहर खड़ा होकर वह तेज आवाज़ में बोला, “मित्र! मैं वापस आ गया हूँ। तुमने कहा था कि मेरे वापस आने पर तुम मेरा स्वागत करोगे। लेकिन तुम तो चुप हो। क्या बात है? तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो?” जब गीदड़ की आवाज़ शेर के कानों में पहुँची। तो उसने सोचा कि ये गुफा अवश्य गीदड़ के आने पर उसका स्वागत करते हुए कुछ कहती है। 

शायद मेरे यहाँ होने के कारण आज यह चुप है। अगर गुफा कुछ न बोली, तो कहीं गीदड़ को संदेह न हो जाए और वह वापस न चला जाए। इसलिए वह गरज कर बोला, “आओ मित्र! तुम्हारा स्वागत है। जल्दी अंदर आओ।” शेर की गरज सुनकर गीदड़ डर गया। वह उल्टे पैर वहाँ से भाग गया। 

इधर शेर बहुत देर तक गीदड़ ने अंदर आने का इंतजार करता रहा। लेकिन सब व्यर्थ रहा। अंत में उसे समझ आ गया कि गीदड़ उसे मूर्ख बनाकर भाग गया है। शेर को अपनी मूर्खता पर बहुत गुस्सा आया। लेकिन अब वह क्या करता? शिकार उसके हाथ से निकल चुका था। 

Moral – बुद्धिमान वही होता है जो भविष्य में आने वाले संकट को भांप ले और उससे बचने का रास्ता निकाल ले।

11. हाथी और चूहे की कहानी (Acchi Acchi Kahaniyan)

Kahaniyan acchi acchi kahaniyan

बहुत समय पहले एक राज्य में एक राजा का राज था। हर हफ्ते पूरी शानो-शौकत से नगर में उसका जुलूस निकला करता था। जहाँ लोग उसके दर्शन किया करते थे। एक दिन एक नन्हा चूहा उसी राजमार्ग के किनारे-किनारे कहीं जा रहा था। जहाँ से राजा का जुलूस निकलने वाला था। वह छोटा सा चूहा था, मगर उसमे घमंड बहुत था और वह ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ और महान समझता था।

कुछ देर बाद राजमार्ग से राजा का जुलूस निकला, जिसे देखने लोगों की भीड़ लगने लगी। राजा अपने पूरे दल के साथ था। उसके सैनिक उसे घेरे हुए थे। कई मंत्री और अनुचर उसके पीछे थे। वह एक विशाल शाही हाथी पर सवार था। हाथी शाही था। इसलिए उसे भव्यता से सजाया गया था और उसकी शान भी देखने लायक थी। जुलूस में हाथी के साथ एक शाही बिल्ली और एक कुत्ता भी थे।

राजा का जुलूस देखने को उमड़ी भीड़ राजा के साथ-साथ उसके शाही हाथी की भी तारीफ कर रहे थी। यह सुनकर घमंडी चूहे को बहुत बुरा लगा। वह हाथी को गौर से देखने लगा, फिर सोचने लगा – “इसमें ऐसी क्या ख़ास बात है, जो मुझमें नहीं। मैं भी उस जैसा ही हूँ। मेरे पास भी दो आँखें, दो कान, एक नाक और चार पैर हैं। 

फिर उसकी इतनी तारीफ क्यों? उसके विशाल शरीर के कारण, लंबी सूंड के कारण, छोटी-छोटी आँखों के कारण या झुर्रीदार चमड़ी के कारण। किस कारण? एक बार तुम लोग मुझे देख लो, उस हाथी को भूल जाओगे। मैं हाथी से ज्यादा महान हूँ।” 

चूहा ये सब सोच ही रहा था कि शाही बिल्ली की नज़र उस पर पड़ गई और उसकी लार टपक गई। जुलुस छोड़ वह उसकी ओर लपकी। फिर क्या था? चूहा अपनी सारी महानता भूलकर दुम दबाकर भागा। भागते-भागते वह हाथी के सामने आ गया। आगे बढ़ते हाथी ने उस छोटे से चूहे को देखा तक नहीं और अपना विशाल पैर उठा लिया। चूहा उसके पैर के नीचे कुचलने ही वाला था, मगर किसी तरह उसने ख़ुद को बचाया।

वहाँ से बचा, तो खतरनाक कुत्ता सामने था, जो उसे देखकर गुर्राया। चूहा पूरी जान लगाकर वहाँ से भागा और राजमार्ग के किनारे स्थित एक छेद में घुस गया। उसका सारा घमंड उतर चुका था। उसे समझ आ चुका था कि वह इतना भी श्रेष्ठ और महान नहीं।

Moral – हमें कभी भी स्वयं पर घमंड नहीं करना चाहिए। 

12. भालू और रानी मधुमक्खी की कहानी (Hindi Kids Stories)

Bacchon ki acchi acchi kahaniyan

एक बार एक भालू पेड़ की छाँव में बैठा था। तभी उसकी नजर पेड़ पर मधुमक्खियों के बड़े से छत्ते पर पड़ी। छत्ते में ढेर सारा शहद था। भाल के मुँह में पानी आ गया और वो सोचने लगा की काश मुझे शहद मुझे खाने को मिल जाए। उसने कुछ सोचकर रानी मधुमक्खी से बात शुरू की। भालू ने कहा “रानी कैसी हो? मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।” 

फिर रानी मधुमक्खी ने कहा “हाँ कहो क्या कहना चाहते हो!” फिर भालू ने कहा “आपका छत्ता तो बहुत अच्छा है,आप ने इसे बड़ी मेहनत से बनाया होगा। आपकी मेहनत देखकर मुझे बड़ी खुशी होती है। फिर रानी मधुमक्खी ने कहा “हाँ वो तो है, पर तुम क्या चाहते हो, साफ-साफ कहो।” फिर भालू ने कहा “मैंने जब आपके छत्ते को देखा, तो मुझे लगा उसमें बहुत सा शहद इकट्ठा हो गया है। कहीं ऐसा ना हो कि कोई आपका शहद चुरा ले। 

इससे तो अच्छा है कि आप किसी दिन जंगल के सभी जानवरों को दावत ही दे दें। रानी मधुमक्खी भालू के मन की बात समझ गई और उसने कहा हाँ भालू भाई मैं आपकी बात समझ गई हूँ। आपका मन शहद खाने को कर रहा है इसलिए आप बातें बना रहे हो। यह सुनकर भालू शर्मिंदा हो गया। पर फिर रानी मधुमक्खी ने कहा “भालू भाई मैं आपको शहद खाने दे सकती हूँ। पर आपको मुझसे एक वादा करना होगा। 

फिर भालू खुश होकर बोला हाँ हाँ बताओ! मुझे क्या करना होगा? रानी मधुमक्खी बोली मैं आपको रोज थोड़ा-थोड़ा शहद दूँगी। लेकिन बदले में आपको मेरे छत्ते की रखवाली करनी होगी। भालू ने कहा अरे वाह! यह तो अच्छी बात है। आप मुझे रोज शहद खिलाना और मैं आपके छत्ते की रक्षा करूँगा। उसके बाद भालू मधुमक्खी के छत्ते की रखवाली करने लगा और रानी मधुमक्खी उसे रोज शहद देने लगी। 

Moral – धैर्य और मीठी वाणी से बात बन जाती है। 

13. दो मित्र और भालू की कहानी (Bacchon Ki Acchi Acchi Kahaniyan)

दो दोस्त एक जंगल से गुजर रहे थे। तब उन्होंने देखा कि एक भालू उनकी तरफ आ रहा है। तो उनमें से एक जल्दी से एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गया और छुप गया। लेकिन दूसरा दोस्त को समझ नहीं आया की वह क्या करे। 

तब उसे अपनी कक्षा में पढ़ी एक बात याद आई कि भालू मरे हुए आदमी का शिकार नहीं करते। तब वह बिल्कुल एक मृत व्यक्ति की तरह धरती पर साँस रोककर सीधा लेट गया। 

भालू उसके पास आया और उसे सूंघकर चला गया। थोड़ी देर बाद उसका मित्र पेड़ से उतरकर आया और उससे पूछने लगा। “मित्र, भालू ने तुम्हारे कान में क्या कहा?” उसने उत्तर दिया, “भालू ने कहा कि संकट की घड़ी में जो भाग जाए वह सच्चा मित्र नहीं होता।”

Moral – सच्चा मित्र वही होता है जो मुसीबत में साथ देता है। 

14. हथौड़ा और चाभी (Acchi Acchi Kahani)

बहुत पुराने समय की बात है एक ताले की दुकान थी। उस दुकान में ढेर सारे ताले-चाभी थे। लोग वहाँ ताले खरीदने आते थे और कभी-कभी मुख्य चाभी गुम हो जाने पर डुप्लीकेट चाभी बनवाने भी आते थे। उसी दुकान के कोने में एक मजबूत हथौड़ा भी पड़ा हुआ था। जो ताला तोड़ने के काम आता था। लेकिन उसका इस्तेमाल कभी-कभी ही होता था। 

कोने में पड़े-पड़े हथौड़ा अक्सर सोचा करता कि मैं इतना मजबूत हूँ, इतना बलशाली हूँ। इसके बाद भी इतने प्रहार झेलता हूँ, तब ही ताले को खोल पाता हूँ। लेकिन चाभी इतनी छोटी होने के बावजूद किसी भी ताले को बड़ी ही आसानी से खोल लेती है। ऐसा क्या है इस छोटी सी चाभी में? 

एक दिन जब दुकान बंद हुई, तो उससे रहा ना गया और उसने चाभी से पूछ ही लिया, “चाभी बहन, मैं बहुत दिनों से एक बात सोच रहा था, लेकिन बहुत सोचने के बाद भी मुझे सवाल का जवाब नहीं मिला। क्या तुम मेरे एक सवाल का जवाब देकर मुझे उत्तर तक पहुँचने में मदद कर सकती हो?” फिर चाभी ने कहा “पूछो भाई, बन पड़ा तो तुम्हारे सवाल का जवाब मैं अवश्य दूँगी।”

“बहन, तुममे में ऐसी क्या ख़ास बात है कि तुम इतनी छोटी होने पर भी हर प्रकार के ताले, चाहे वह कितना मजबूत और जिद्दी क्यों न हो, बड़ी आसानी से खोल लेती हो। जबकि मैं तुमसे बहुत बड़ा शक्तिशाली होने के बावजूद ऐसा नहीं कर पाता। मुझसे ताला खोलने में बहुत मेहनत लगती हैं और कई बार प्रयास करने के बाद ही ताला टूटता है।”

चाभी मुस्कुराई और बोली, “बहुत ही साधारण सी बात हैं हथौड़े भाई। तुम ताले पर प्रहार करते हो। इस तरह तुम उस पर बल का प्रयोग करते हो और खोलने के प्रयास में उसे चोट पहुँचाते हो। ऐसे में ताला खुलता नहीं, बल्कि टूट जाता है। जबकि मैं बिना बल का प्रयोग किये और ताले को चोट पहुँचाये, बगैर उसके अंतर्मन में उतर जाती हूँ। इसलिए मेरे निवेदन पर ताला तुरंत खुल जाता है।”

Moral – अगर आपको किसी का दिल जीतना है, तो उसे जोर-जबरदस्ती से नहीं जीता जा सकता। बल्कि उसके दिल में उतरकर जीता जाता है।

15. मोर और नीलकंठ की कहानी (Kids Story in Hindi)

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बरसात का मौसम था और मोर सुंदर पंख फैलाए नाच रहे थे। वही पेड़ पर बैठे एक नीलकंठ ने उन्हें नाचते हुए देखा, तो सोचने लगा कि काश, मेरे भी ऐसे सुंदर पंख होते, तब मैं इनसे भी ज्यादा सुंदर दिखाई पड़ता। कुछ देर बाद वह मोरों के रहने के ठिकाने पर पहुँचा। वहाँ उसने देखा कि मोरों के ढेर सारे पंख जमीन पर बिखरे हुए हैं। उसने सोचा कि यदि मैं इस पंखों को अपनी पूंछ में बांध लूं, तो मैं भी मोर जैसा सुंदर दिखने लगूँगा। 

बिना देर किये उसके उन पंखों को उठाया और अपनी पूंछ में बांध लिया। वह बहुत खुश हो गया क्योंकि उसे लगने लगा कि वह भी मोर बन गया है। वह ठुमकता हुआ मोरों के बीच गया और घूम-घूमकर उन्हें दिखाने लगा कि अब उसके पास भी मोर जैसे सुंदर पंख है और वह उनमें से ही एक है। मोरों ने जब उसे देखा, तो पहचान लिया कि वो तो एक नीलकंठ है।

फिर क्या सब उस पर टूट पड़े और उस पर चोंच मारकर मोर-पंखों को नोच-नोचकर निकालने लगे। कुछ ही देर में उन्होंने नीलकंठ की पूंछ में से सारे मोर-पंख नोंच दिए। नीलकंठ के साथी दूर से यह सारा नज़ारा देख रहे थे। 

सारे पंख मोरों द्वारा नोंचकर निकाल दिए जाने के बाद दुखी मन से नीलकंठ अपने साथियों के पास गया। लेकिन वे सब उससे नाराज़ थे। वे बोले, “सुंदर पक्षी बनने के लिए मात्र सुंदर पंख ही आवश्यक नहीं है। हर पक्षी की अपनी सुंदरता होती है।”

Moral – हमें कभी भी दूसरों की नक़ल नहीं करनी चाहिए। 

16. रेगिस्तान में भटकता आदमी (Kahaniyan Acchi Acchi)

एक बार की बात है एक आदमी रेगिस्तान में भटक रहा था। उसके चलते-चलते आधा दिन बीत गया और उसे रास्ते का कुछ पता नहीं था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस रेगिस्तान से बाहर कैसे निकले। उसका खाने-पीने का सारा सामान खत्म हो गया था। उसे बहुत जोर की प्यास भी लगी थी। लेकिन पानी का दूर-दूर तक कोई नामो-निशान नहीं था। 

थोड़ी दूर और चलने पर उसे एक झोपड़ी दिखाई दी। वह इस आशा में झोपड़ी की ओर चल पड़ा कि वहाँ उसे पानी जरूर मिलेगा और वह वहाँ रहने वालों से रेगिस्तान से बाहर निकलने का रास्ता भी पूछ लेगा। लेकिन झोपड़ी के पास पहुँचकर वह निराश हो गया क्योंकि झोपड़ी खाली पड़ी थी और वहाँ कोई नहीं था। लेकिन उसके बाद भी उसने भगवान पर भरोसा रखा और झोपड़ी के अंदर गया। 

झोपड़ी के अंदर एक हैण्डपंप लगा हुआ था। वह खुश हो गया कि अब वह अपनी प्यास बुझा सकता है। उसने भगवान को धन्यवाद दिया और हैण्डपंप चलाने लगा। लेकिन काफी प्रयास करने के बाद भी हैण्डपंप नहीं चला। वह थक कर चूर हो चुका था। वह जमीन पर लेट गया। पानी के बिना उसे अपनी ज़िंदगी खत्म होती नज़र आने लगी थी। तभी उसे झोपड़ी की छत पर पानी की एक बोतल लटकी हुई दिखाई पड़ी और उसकी जान में जान आ गई। 

उसने सोचा कि ये भगवान की कृपा है कि पानी की ये बोतल उसे दिख गई। अब वह अपनी प्यास बुझा सकता है। उसने पानी की बोतल नीचे उतारी। लेकिन जैसे ही वह पानी पीने को हुआ, उसकी नज़र बोतल के नीचे चिपके कागज पर पड़ी। उस कागज पर लिखा था – इस पानी का इस्तेमाल हैण्डपंप चलाने के लिए लिए करे। 

जब हैण्डपंप चल जाए, तो पानी पी ले और फिर से इस बोतल में पानी भरकर वापस वही लटका दें, जहाँ से आपने इसे उतारा था। कागज पर लिखे संदेश को पढ़कर आदमी सोच में पड़ गया कि क्या करें? यदि पानी हैण्डपंप में डाला और वह नहीं चला तो? सही तो यह होगा कि बोतल का पानी पीकर वहाँ से आगे बढ़ा जाए। वह सोच में पड़ चुका था। 

लेकिन अंत में उसने ऊपर वाले को याद किया और कागज पर लिखे संदेश पर भरोसा करने का निर्णय लिया। उसने बोतल का पानी हैण्डपंप में डाल दिया और हैण्डपंप चलाने की कोशिश करने लगा। 2 से 3 बार प्रयास करने के बाद हैण्डपंप चल गया और उसमें से ठंडा पानी आने लगा। आदमी ने पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई और बोतल में पानी भरकर उसे वापस उसी जगह लटका दिया, जहाँ से उसने उसे उतारा था।

वह वहाँ से निकल ही रहा था कि झोपड़ी से एक कोने में उसे एक नक्शा और पेंसिल का टुकड़ा मिला। उस नक़्शे में रेगिस्तान से बाहर निकलने का रास्ता बना हुआ था। आदमी खुश हो गया और भगवान को धन्यवाद किया। फिर उसने पानी की बोतल के नीचे लगे कागज पर पेंसिल से लिखा – यकीन मानिये ये काम करता है और फिर वह वह नक्शा लेकर बाहर निकल गया।

Moral – जीवन में बुरा समय आने पर हमें कभी भी घबराना नहीं चाहिए और हमें खुदपर और भगवान पर भरोसा रखना चाहिए। 

17. राजा का चित्र (Bacchon Ke Liye Acchi Acchi Kahaniyan)

एक राज्य में राजा राज करता था। उसकी केवल एक आँख थी और एक पैर था। इन कमजोरियों के बाद भी वह एक कुशल, दयालु और बुद्धिमान शासक था। उसके शासन में प्रजा बहुत ही खुशी से जीवन व्यतीत कर रही थी। एक दिन राजा अपने महल के गलियारे से टहल रहा था। तभी उसकी नजर गलियारे की दीवार पर लगे चित्रों पर पड़ी। वे चित्र उसके पूर्वज के थे। 

उन चित्रों को देख राजा के मन में विचार आया कि भविष्य में जब उसके उत्तराधिकारी महल के उस गलियारे से टहलेंगे, तो उन चित्रों को देख अपने पूर्वजों को याद करेंगे। राजा का चित्र अब तक उस दीवार पर नहीं था। अपनी शारीरिक अक्षमताओं के कारण वह नहीं जानता था कि उसका चित्र कैसा दिखेगा? लेकिन उस दिन उसने सोचा कि उसे भी अपना चित्र उस दीवार पर लगवाना चाहिए। 

अगले दिन उसने अपने राज्य के श्रेष्ठ चित्रकारों को दरबार में आमंत्रित किया। दरबार में उसने घोषणा की कि वह महल में लगवाने के लिए अपना सुंदर चित्र बनवाना चाहता है। जो उसका सुंदर चित्र बना सकता है, वह चित्रकार आगे आये। चित्र जैसा बनेगा, वैसा ही उस चित्रकार को ईनाम दिया जायेगा। दरबार में उपस्थित चित्रकार अपनी कला में निपुण थे. लेकिन राजा की घोषणा सुनने के बाद वे सोचने लगे कि राजा तो काना और लंगड़ा है। 

ऐसे में उसका सुंदर चित्र कैसे बन पायेगा? चित्र सुंदर नहीं दिखा, तो हो सकता है राजा क्रोधित होकर उन्हें सजा दे दे। यह विचार किसी को आगे आने का साहस न दे सका। सब कोई न कोई बहाना बनाकर वहाँ से चले गए। वहाँ मात्र एक युवा चित्रकार खड़ा रहा। राजा ने उससे पूछा, “क्या तुम मेरा चित्र बनाने को तैयार हो?” युवा चित्रकार ने हामी भर दी। राजा ने उसे अपना चित्र बनाने की आज्ञा दे दी। 

अगले ही दिन से वह चित्रकार राजा का चित्र बनाने में जुट गया। कुछ दिनों बाद चित्र बनकर तैयार था। जब चित्र के अनावरण का दिन आया, तो दरबार में दरबारी सहित वे सभी चित्रकार भी उपस्थित हुए, जिन्होंने राजा का चित्र बनाने से इंकार कर दिया था। सभी उत्सुकता से चित्र के अनावरण की प्रतीक्षा कर रहे थे। जब चित्र का अनावरण हुआ, तो राजा सहित सबके मुँह खुले के खुले रह गए। 

चित्र बहुत ही सुंदर बना था। उस चित्र में राजा दोनों तरफ पैर कर घोड़े पर बैठा हुआ था, जिसे एक ओर से चित्रित किया था और उसमें राजा का एक ही पैर नजर आ रहा था। साथ ही राजा धनुष चढ़ाकर एक आँख बंद कर निशाना साध रहा था। जिससे उसके काने होने की कमजोरी छुप गई थी। 

यह चित्र देख राजा बहुत खुश हुआ। चित्रकार ने अपनी बुद्धिमत्ता से उसकी अक्षमताओं को छुपाकर एक बहुत सुंदर चित्र बनाया था। राजा ने उसे इनाम के साथ अपने दरबार का मुख्य चित्रकार बना दिया। 

Moral – जीवन की किसी भी परिस्थिति में हमें सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए। 

18. राजा और पंडितजी का बेटा (Kahani Acchi Acchi)

एक नगर में एक पंडितजी रहा करते थे। वे अपनी बुद्धिमत्ता के लिए जाने जाते थे। उनकी बुद्धिमत्ता के चर्चे दूर-दूर तक हुआ करते थे। एक दिन उस राज्य के राजा ने पंडितजी को अपने दरबार में आमंत्रित किया। पंडित जी दरबार में पहुँचे। राजा ने उनसे कई विषयों पर चर्चा की और चर्चा समाप्त होने के बाद जब पंडितजी जाने लगे। तो राजा ने उनसे कहा, “पंडितजी! आप आज्ञा दे, तो मैं एक बात आपसे पूछना चाहता हूँ।”

पंडित ने कहा, “पूछिए राजन!” फिर राजा ने पूछा “आप इतने बुद्धिमान है पंडितजी, लेकिन आपका पुत्र इतना मूर्ख क्यों हैं?”राजा का प्रश्न सुनकर पंडितजी को बुरा लगा। उन्होंने पूछा, “आप ऐसा क्यों कह रहे हैं राजन?” फिर राजा ने बोला “पंडितजी, आपके पुत्र को ये नहीं पता कि सोने और चाँदी में अधिक मूल्यवान क्या है।” ये सुनकर दरबार में सभी लोग हँसने लगे। 

सबको ऐसे हँसता देख पंडितजी ने खुद को बहुत शर्मशार महसूस किया और फिर वहाँ से बिना कुछ कहे अपने घर आ गए। घर पहुँचने पर उनका पुत्र उनके लिए पानी लेकर आया और बोला, “पिताश्री, पानी ग्रहण करे।” उस समय भी सारे दरबारियों की हँसी पंडितजी के दिमाग में गूंज रही थी। वे बहुत गुस्से में थे। उन्होंने पानी लेने से मना कर दिया और बोले, “पुत्र, जल तो मैं तब ग्रहण करूँगा, जब तुम मेरे इस सवाल का उत्तर दोगे।”

फिर पुत्र बोला “पूछिये पिताश्री।” पंडितजी ने पूछा “ये बताओ कि सोने और चाँदी में अधिक मूल्यवान क्या है?” फिर पुत्र के जवाब दिया, “सोना अधिक मूल्यवान है।” पुत्र का उत्तर सुनने के बाद पंडितजी ने पूछा, “तुमने इस सवाल का सही उत्तर दिया है। फिर राजा तुम्हें मूर्ख क्यों कहते हैं? वे कहते हैं कि तुम्हें सोने और चाँदी के मूल्य का ज्ञान नहीं है।” पंडितजी की बात सुनकर पुत्र सारा माज़रा समझ गया। 

वह उन्हें बताने लगा, “पिताश्री! मैं हर सुबह जिस रास्ते से विद्यालय जाता हूँ। उस रास्ते के किनारे राजा अपना दरबार लगाते है। वहाँ ज्ञानी और बुद्धिमान लोग बैठकर अलग-अलग विषयों पर चर्चा करते है। मुझे वहाँ से जाता हुआ देख राजा अक्सर मुझे बुलाते है और अपने एक हाथ में सोने और एक हाथ में चाँदी का सिक्का रखकर कहते है कि इन दोनों में से तुम्हें जो मूल्यवान लगे, वो उठा लो। मैं रोज चाँदी का सिक्का उठाता हूँ। 

यह देख वे लोग मेरा मजाक उड़ाते है और मुझ पर हँसते है।मैं चुपचाप वहाँ से चला जाता हूँ।” पूरी बात सुनकर पंडितजी ने कहा, “पुत्र, जब तुम्हें पता है कि सोने और चाँदी में से अधिक मूल्यवान सोना है, तो सोने का सिक्का उठाकर ले आया करो क्यों खुदको उनकी दृष्टि में मूर्ख साबित करते हो? तुम्हारे कारण मुझे भी अपमानित होना पड़ता है।”

पुत्र हँसते हुए बोला, “पिताश्री मेरे साथ अंदर आइये। मैं आपको कारण बताता हूँ।” वह पंडितजी को अंदर के कमरे में ले गया और वहाँ एक कोने पर एक संदूक रखा हुआ था। उसने वह संदूक खोलकर दिखाया। पंडितजी देखते रह गए। उस संदूक में चाँदी के सिक्के भरे हुए थे। पंडितजी ने पूछा, “पुत्र! ये सब कहाँ से आया?” 

पुत्र ने उत्तर दिया, “पिताश्री! राजा के लिए मुझे रोकना और हाथ में सोने और चाँदी का सिक्का लेकर वह सवाल पूछना एक खेल बन गया है। अक्सर वे यह खेल मेरे साथ खेला करते है और मैं चाँदी का सिक्का लेकर आ जाता हूँ। उन्हीं चाँदी के सिक्कों से यह संदूक भर गया है। जिस दिन मैंने सोने का सिक्का उठा लिया। उस दिन ये खेल बंद हो जायेगा। इसलिए मैं कभी सोने का सिक्का नहीं उठाता।”

पंडितजी को पुत्र की बात समझ तो आ गई। लेकिन वे पूरी दुनिया को ये बताना चाहते थे कि उनका पुत्र मूर्ख नहीं है। इसलिए वे उसे लेकर राजा के दरबार चले गए। वहाँ पुत्र ने राजा को सारी बात बता दी है कि वो जानते हुए भी चाँदी का सिक्का ही क्यों उठाता है। पूरी बात जानकर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने सोने के सिक्कों से भरा संदूक मँगवाया और उसे पंडितजी के पुत्र को देते हुए बोला “असली विद्वान तो तुम निकले।”

Moral – कभी भी अपनी का योग्यता का दिखावा और घमंड मत करो। 

19. मूर्तिकार और यमदूत (Acchi Acchi Kahaniyan)

एक गाँव में एक मूर्तिकार रहता था। मूर्तिकला के प्रति उसका बहुत प्रेम होने के कारण उसने अपना पूरा जीवन मूर्तिकला को समर्पित कर दिया था। वह इतना पारंगत हो गया था कि उसकी बनाई हर मूर्ति जीवंत प्रतीत होती थी। उसकी बनाई मूर्तियों को देखने वाला उसकी कला की बहुत प्रशंसा करता था। उसकी कला के चर्चे दूर-दूर के नगर और गाँव में होने लगे थे। 

ऐसी स्थिति में जैसा सबके साथ होता है, वैसा ही मूर्तिकार के साथ भी हुआ। उसके भीतर अहंकार की भावना जाग गई। वह स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकार मानने लगा। उम्र बढ़ने के साथ जब उसका अंत समय निकट आने लगा, तो वह मृत्यु से बचने के बारे में सोचने लगा। वह किसी भी तरह स्वयं को यमदूत की दृष्टि से बचाना चाहता था, ताकि वह उसके प्राण न हर सके। 

अंततः उससे एक युक्ति सूझ ही गई। उसने अपनी बेमिसाल मूर्तिकला का प्रदर्शन करते हुए 10 मूर्तियों का निर्माण किया। वे सभी मूर्तियाँ दिखने में हूबहू उसके समान थी। निर्मित होने के पश्चात् सभी मूर्तियाँ इतनी जीवंत प्रतीत होने लगी कि मूर्तियों और मूर्तिकार में कोई अंतर ही ना रहा। मूर्तिकार उन मूर्तियों के मध्य जाकर बैठ गया। युक्तिनुसार यमदूत का उसे इन मूर्तियों के मध्य पहचान पाना असंभव था.

उसकी युक्ति कारगर भी सिद्ध हुई। जब यमदूत उसके प्राण हरने आया। तो 11 एक जैसी मूर्तियों को देख चकित रह गया। वह उन मूर्तियों में अंतर कर पाने में असमर्थ था। किंतु उसे ज्ञात था कि इन्हीं मूर्तियों के मध्य मूर्तिकार छुपा बैठा है। मूर्तिकार के प्राण हरने के लिए उसकी पहचान आवश्यक थी। उसके प्राण न हर पाने का अर्थ था – प्रकृति के नियम के विरूद्ध जाना। प्रकृति के नियम के अनुसार मूर्तिकार का अंत समय आ चुका था। 

मूर्तिकार की पहचान करने यमदूत हर मूर्ति को तोड़ कर देख सकता था। किंतु वह कला का अपमान नहीं करना चाहता था। इसलिए इस समस्या का उसने एक अलग ही तोड़ निकाला। उसे मूर्तिकार के अहंकार का बोध था। अतः उसके अहंकार पर चोट करते हुए वह बोला, “वास्तव में सब मूर्तियाँ कलात्मकतता और सौंदर्य का अद्भुत संगम है। 

किंतु मूर्तिकार एक भूल कर बैठा। यदि वो मेरे सम्मुख होता, तो मैं उसे उस भूल से अवगत करा पाता।” अपनी मूर्ति में भूल की बात सुन अहंकारी मूर्तिकार का अहंकार जाग गया। उससे रहा नहीं गया और झट से अपने स्थान से उठ बैठा और यमदूत से बोला, “भूल?? असंभव!! मेरी बनाई मूर्तियाँ सर्वदा भूलहीन होती हैं।” 

यमदूत की युक्ति काम कर चुकी थी। उसने मूर्तिकार को पकड़ लिया और बोला, “बेजान मूर्तियाँ बोला नहीं करती और तुम बोल पड़े। यही तुम्हारी भूल है कि अपने अहंकार पर तुम्हारा कोई बस नहीं।” यमदूत मूर्तिकार के प्राण हर यमलोक वापस चला गया.

Moral – इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अहंकार को कभी भी ख़ुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए। 

20. बेरोजगार युवक और साधु की कहानी (Acchi Acchi Kahani)

एक साधु घाट किनारे बैठा हुए था। वहाँ वह दिन भर बैठा रहता और बीच-बीच में ऊँची आवाज़ में चिल्लाता, “जो चाहोगे सो पाओगे!” उस रास्ते से गुजरने वाले लोग उसे पागल समझते थे। वे उसकी बात सुनकर अनुसना कर देते और जो सुनते, वे उस पर हँसते थे। एक दिन एक बेरोजगार युवक उस रास्ते से गुजर रहा था। साधु की चिल्लाने की आवाज़ उसके कानों में भी पड़ी – “जो चाहोगे सो पाओगे!” “जो चाहोगे सो पाओगे!”

यह सुनकर वह युवक साधु के पास आ गया और उससे पूछने लगा, “बाबा! आप बहुत देर से जो चाहोगे सो पाओगे चिल्ला रहे हो। क्या आप सच में मुझे वो दे सकते हो, जो मैं पाना चाहता हूँ?” साधु बोला, “हाँ बेटा, लेकिन पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम पाना क्या चाहते हो?”

युवक बोला “बाबा! मैं चाहता हूँ कि एक दिन मैं हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनूँ। क्या आप मेरी ये इच्छा पूरी कर सकते हैं?” साधु बोला “बिल्कुल बेटा! मैं तुम्हें एक हीरा और एक मोती देता हूँ। उससे तुम जितने चाहे हीरे-मोती बना लेना।” साधु की बात सुनकर युवक की आँखों में आशा की ज्योति चमक उठी। 

फिर साधु ने उसे अपनी दोनों हथेलियाँ आगे बढ़ाने को कहा। युवक ने अपनी हथेलियाँ साधु के सामने कर दी। साधु ने पहले उसकी एक हथेली पर अपना हाथ रखा और बोला, “बेटा, ये इस दुनिया का सबसे अनमोल हीरा है। इसे ‘समय’ कहते हैं। इसे जोर से अपनी मुठ्ठी में जकड़ लो। इसके द्वारा तुम जितने चाहे उतने हीरे बना सकते हो। इसे कभी अपने हाथ से निकलने मत देना।”

फिर साधु ने अपना दूसरा हाथ युवक की दूसरी हथेली पर रखकर कहा, “बेटा, ये दुनिया का सबसे कीमती मोती है। इसे ‘धैर्य’ कहते हैं। जब किसी कार्य में समय लगाने के बाद भी परिणाम प्राप्त ना हो। तो इस धैर्य नामक मोती को धारण कर लेना। यदि यह मोती तुम्हारे पास है, तो तुम दुनिया में जो चाहो, वो हासिल कर सकते हो।” युवक ने ध्यान से साधु की बात सुनी और उन्हें धन्यवाद कर वहाँ से चल पड़ा। 

उसे सफ़लता प्राप्ति के दो गुरुमंत्र मिल गए थे। उसने निश्चय किया कि वह कभी अपना समय व्यर्थ नहीं गंवायेगा और सदा धैर्य से काम लेगा। कुछ समय बाद उसने हीरे के एक बड़े व्यापारी के यहाँ काम करना प्रारंभ किया। कुछ वर्षों तक वह दिल लगाकर व्यवसाय का हर गुर सीखता रहा और एक दिन अपनी मेहनत और लगन से अपना सपना साकार करते हुए हीरे का बहुत बड़ा व्यापारी बना। 

Moral – जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति के लिए समय और धैर्य बहुत जरूरी है। अपना समय कभी बेकार ना जाने दें और मुश्किल समय में धैर्य ना छोड़े। 

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