हेलो दोस्तों आज हम Long Moral Stories in Hindi के बारे में जानेंगे। यह कहानियाँ बहुत ही रोमांचक है और साथ ही प्रेरणादायक भी है। इनको पढ़कर आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। तो आए जानते है Long Story in Hindi के बारे में।
1. हाथी और चतुर खरगोश (Long Story in Hindi)
एक हरे-भरे वन में नदी किनारे हाथियों का एक समूह रहता था, जिसका मुखिया चतुर्दंत नामक हाथी था। वर्षों से वह समूह उस वन में सुखमय जीवन व्यतीत कर रहा था। लेकिन एक समय वन अकाल की चपेट में आ गया। नदी का जल सूख गया, वन की हरियाली चली गई और हाथी भूख-प्यास से मरने लगे।
इस विपत्ति से निकलने की प्रार्थना लिए सभी हाथी अपने मुखिया चतुर्दंत के पास गए और बोले, “गजराज! इस अकाल की स्थिति में यदि हम और अधिक इस वन में रहे, तो काल का ग्रास बन जायेंगे। यहाँ भूखे-प्यासे रहना दुष्कर है। कृपा कर किसी अन्य स्थान की खोज करें, जहाँ जल स्रोत और हरियाली हो।”
चतुर्दंत विचार मग्न हो गया। कुछ देर विचार करने के बाद वह बोला, “यहाँ से कुछ दूरी पर एक तालाब है, जो पूरे वर्ष जल से परिपूर्ण रहता है। हमें वहीं चलना चाहिए। कल सुबह ही हम सब उस तालाब की ओर चलेंगे। अगले ही दिन सभी हाथी उस तालाब की ओर चल पड़े। पाँच दिन और पाँच रात की यात्रा पूर्ण कर वे वहाँ पहुँचे।
जल से पूर्ण तालाब को देख वे बहुत प्रसन्न हुए और दिन भर वहाँ क्रीड़ा करते रहे। संध्या होने पर वे बाहर निकले और वन में चले गए। तालाब के किनारे खरगोशों की बस्ती थी, जिसमें उनके बहुत सारे बिल थे। लेकिन हाथी इससे अनभिज्ञ थे। अतः वे खरगोशों के बिलों को रौंदते हुए निकल गए। खरगोशों के बिल तहस-नहस हो गए, कई खरगोश घायल हुए और कई मारे गए।
हाथियों के जाने के बाद सभी खरगोश एकत्रित हुए और स्वयं पर आये इस संकट के विषय में चर्चा करने लगे। एक खरगोश बोला, “हाथियों का समूह प्रतिदिन जल के लिए तालाब में आया करेगा। ऐसे में हमारा यहाँ रहना कठिन हो जायेगा। वे हमारे बिलों के साथ हमें भी रौंद देंगे। हममें से कोई भी नहीं बचेगा। हमारा वंश समाप्त हो जायेगा।”
फिर एक अन्य खरगोश बोला “जीवन है, तो सर्वस्व है। जीवन रक्षा के लिए जो संभव हो, हमें करना चाहिए। परिस्थिति कहती है कि हमें जीवन रक्षा के लिए तत्काल इस स्थान को छोड़कर अन्यत्र प्रस्थान करना चाहिए।”
खरगोश अपनी भूमि छोड़कर अन्यत्र जाने के विचार से दु:खी थे। उनका दुःख देख लम्बकर्ण नामक खरगोश आगे आया और बोला, “हम वर्षों से इस भूमि पर निवास कर रहे हैं। हम अपनी भूमि क्यों छोड़े? इस भूमि पर हमारा अधिकार है। हमें हाथियों से बात कर उन्हें यहाँ आने से रोकना चाहिए।”
“लेकिन , उनसे कौन बात करेगा? कौन उन्हें समझाएगा?” सभी खरगोशों ने एक स्वर में पूछा।
“मैं उनसे बात करूँगा और यहाँ आने से मना करूँगा।” लम्बकर्ण बोला।
“लेकिन क्या वे तुम्हारी बात मानेंगे?”
“अवश्य मानेंगे, मेरे पास एक युक्ति है। मैं उनसे कहूँगा कि ये तालाब चंद्रमा में बैठे खरगोश का है और उसने आप लोगों का यहाँ आने से मना किया है। संभवतः, वे मेरी बात मान जाये।” लम्बकर्ण बोला।
अगले दिन लम्बकर्ण हाथियों के मुखिया से मिलने तालाब के मार्ग में स्थित एक ऊँचे टीले पर बैठ गया। जब हाथियों का समूह वहाँ से गुज़रा, तो वह हाथियों के मुखिया चतुर्दंत से बोला, “गजराज! क्या आपको ज्ञात नहीं यह तालाब चाँद में रहने वाले खरगोश का है? आपको बिना उसकी अनुमति के इस तालाब के जल का उपयोग नहीं करना चाहिए।”
चतुर्दंत ने पूछा, “तुम कौन हो?”
“मैं चाँद में रहने वाले खरगोश का संदेशवाहक हूँ। उसने मुझे अपने संदेश के साथ आपसे मिलने भेजा है।” लम्बकर्ण बोला।
“संदेश क्या वह है?” चतुर्दंत ने फिर से पूछा।
“संदेश है कि इस पवित्र तालाब में चंद्रदेव का वास है। इसलिए तुम लोग इसके जल का उपयोग नहीं कर सकते।”
“मैं कैसे मान लूं कि यह तालाब चंद्रदेव का है? जब तुम मुझे तालाब में चंद्रदेव के दर्शन कराओगे, तभी मैं यह बात मानूँगा और अपने दल को यहाँ आने से रोकूँगा।”
“चलो मेरे साथ और स्वयं देख लो।” कहकर लम्बकर्ण चतुर्दंत को तालाब के किनारे ले गया।
उस समय तालाब में चाँद की छाया पड़ रही थी। लम्बकर्ण चतुर्दंत को वह छाया दिखाते हुए बोला, “गजराज! देखो तालाब में चाँद का वास है। अब तो मेरी बात मान लो।”
चाँद की छाया को चंद्रदेव समझकर चतुर्दंत ने उसे प्रणाम किया और वहाँ से लौट गया। उसके बाद उस तालाब में हाथियों का समूह कभी नहीं आया।
Moral – बुद्धिमानी से किसी भी समस्या का समाधान किया जा सकता है।
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2. शेर का तीसरा पुत्र (Big Story in Hindi)
एक जंगल में एक शेर अपनी शेरनी के साथ रहता था। दोनों में बहुत ही बड़ा प्रेम था। दोनों शिकार के लिए साथ-साथ जाते और शिकार मारकर साथ ही खाया करते थे। कुछ दिनों बाद शेरनी ने दो बच्चों को जन्म दे दिया। शेर ने कहा, “अब तुम शिकार के लिए मत चला करो। घर पर ही रहकर बच्चों की देखभाल करो।
मैं अकेला शिकार के लिए जाऊंगा और तुम्हारे लिए भी शिकार में आऊंगा।” उस दिन से शेर अकेला ही शिकार के लिए जाने लगा। शेरनी घर पर रहकर दोनों बच्चों का पालन पोषण करने लगी। एक दिन जब शेर शिकार के लिए गया, तो पुरे दिन घूमने के बाद भी उसे कुछ नहीं मिला। वापस लौटते समय उसने लोमड़ी के बच्चे को अकेले घूमते हुए देखा।
आज शेरनी के लिए कुछ भोजन नहीं मिला है, क्यों न इस लोमड़ी को ले चलु। ऐसा सोचके शेर ने उस बच्चे को पकड़ लिया। शेर लोमड़ी के बच्चे को लेकर घर पहुँच गया। “आज जंगल में इसके आलावा कुछ नहीं मिला। बच्चा समझकर मैं इसे मारकर खा नहीं सका। तुम इसे मारकर खा जाओ।” शेर ने कहा।
शेरनी बोली “जब तुम इसे बच्चा समझकर मार नहीं सके, फिर मुझसे क्यों कह रहे हो की मैं इसे मारकर खाऊं? मैं इसे मारकर नहीं खाऊँगी । जिस प्रकार मैं अपने दो बच्चों का पालन-पोषण करती हूँ, उसी प्रकार इसका भी पालन-पोषण करुँगी। आज से मेरे तीन बच्चे हो गए है।”
शेरनी उसी दिन से अपने पुत्रों के सामान ही लोमड़ी के बच्चे का भी पालन-पोषण करने लगी। लोमड़ी का बच्चा भी शेर के दोनों बेटों के साथ पलने-बढ़ने लगा, जब तीनों कुछ बड़े हुए तो साथ-साथ खेलने-कूदने लगे। शेर के बच्चे यह नहीं समझते थे की वो दोनों शेर के बच्चे है और यह तीसरा लोमड़ी का बच्चा है। इसी प्रकार लोमड़ी का बच्चा भी अपने को शेर से बच्चों से अलग नहीं समझता था।
कुछ और बड़े होने पर तीनों बच्चे एक दिन खेलने के लिए जंगल में गए। वह उन्होंने एक हाथी को देखा। शेर के दो बच्चे तो हाथी के पीछे लग गए। पर लोमड़ी का बच्चा उसे देखकर भयभीत हो गया। उसने शेर के बच्चों को रोकते हुए कहा, “अरे, उसके पीछे मत जाओ। वह हाथी है, तुम दोनों को पैरों से कुचल देगा।”
लेकिन शेर के बच्चों ने लोमड़ी के बच्चे की बात नहीं मानी। वे हाथी को मारने के लिए उसके पीछे लग गए। लेकिन लोमड़ी का बच्चा डरकर अपने माँ के पास आ गया। कुछ देर बाद शेर के दोनों बच्चे लौटकर अपनी माँ के पास आ गए। उन्होंने अपनी माँ को कहा की “हमें जंगल में हाथी मिला। हम दोनों तो उसके पीछे भाग गए लेकिन हमारा तीसरा भाई डरकर घर आ गया।”
लोमड़ी के बच्चे को गुस्सा आ गया। तुम दोनों अपने आप को वीर और कायर बता रहे हो, हिम्मत है तो आ जाओ। दोनों को जमीन पर गिरा दूँगा। शेरनी ने लोमड़ी के बच्चे को समझाते हुए कहा “तुम्हें अपने भाइयों के लिए ऐसी बात नहीं करनी चाहिए। वे मुझसे तुम्हारी शिकायत नहीं बल्कि सच बता रहे है। क्या तुम हाथी को देखकर डर नहीं गए थे?”
शेरनी की बात लोमड़ी के बच्चे को बिलकुल अच्छी नहीं लगी, वह और गुस्से से बोला “मैं हाथी को देखकर डर गया? आपका कहना है की मैं डरपोक और वे दोनों बहादुर है? मैं अकेला उन दोनों को जमीन पर गिरा सकता हूँ। तब शेरनी बोली “देखो बेटा, अधिक बढ़-बढ़कर बाते करना अच्छी नहीं होता। यह तो सच ही है की तुम्हारे वंश के लोग हाथी को देखकर डर जाया करते है।”
शेरनी की बात सुनकर लोमड़ी के बच्चे ने बड़े आश्चर्य-भरे स्वर में कहा “क्या कह रही हो? आपकी बात से लगता है की मेरा वंश और उन दोनों का वंश अलग है। सच बताओ क्या बात है?” शेरनी लोमड़ी के बच्चे को अलग ले गई और उसे समझाती हुए बोली “देखो, तुम्हारा जन्म लोमड़ी के वंश में हुआ था और उन दोनों का जन्म शेर के वंश में हुआ है। मैंने तुम पर दया करके अपने बच्चों के सामान ही तुम्हे पाला है।
अब तुम बड़े हो गए हो। मैंने तुम्हारा पालन पोषण तो किया है, लेकिन तुम्हारे सभी गुण लोमड़ी जैसे ही है। इसलिए तुम उस हाथी से डर गए।” “मैंने इस भेद को अभी तक अपने बच्चों से छिपा रखा है। जब उन्हें यह बात मालुम हो जाएगी की तुम लोमड़ी के बच्चे हो, तो वे तुम्हे मारकर खा जायेंगे। इसलिए अच्छा है की भेद प्रकट होने से पहले ही तुम यहाँ से भाग जाओ।” शेरनी की बात सुनकर लोमड़ी का बच्चा डर गया, और वहा से चुपके से भाग गया।
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3. हीरे की खान (Hindi Long Kahaniyan)
अफ्रीका महाद्वीप में हीरों की कई खानों की खोज हो चुकी थी, जहाँ से बहुतायत में हीरे प्राप्त हुए थे। वहाँ के एक गाँव में रहने वाला किसान अक्सर उन लोगों की कहानियाँ सुना करता था, जिन्होंने हीरों की खान खोजकर अच्छे पैसे कमाये और अमीर बन गए। वह भी हीरे की खान खोजकर अमीर बनना चाहता था।
एक दिन अमीर बनने के सपने को साकार करने के लिए उसने अपना खेत बेच दिया और हीरों की खान की खोज में निकल पड़ा। अफ्रीका के लगभग सभी स्थान छान मारने के बाद भी उसे हीरों का कुछ पता नहीं चला। समय गुजरने के साथ उसका मनोबल गिरने लगा। उसे अपना अमीर बनने का सपना टूटता दिखाई देने लगा।
वह इतना हताश हो गया कि उसके जीने की तमन्ना ही समाप्त हो गई और एक दिन उसने नदी में कूदकर अपनी जान दे दी। इस दौरान दूसरा किसान, जिसने पहले किसान से उसका खेत खरीदा था, एक दिन उसी खेत के मध्य बहती छोटी नदी पर गया। सहसा उसे नदी के पानी में से इंद्रधनुषी प्रकाश फूटता दिखाई पड़ा। उसने ध्यान से देखा, तो पाया कि नदी के किनारे एक पत्थर पर सूर्य की किरणें पड़ने से वह चमक रहा था।
किसान ने झुककर वह पत्थर उठा लिया और घर ले आया। वह एक ख़ूबसूरत पत्थर था। उसने सोचा कि यह सजावट के काम आएगा और उसने उसे घर पर ही सजा लिया। कई दिनों तक वह पत्थर उसके घर पर सजा रहा।एक दिन उसके घर उसका एक मित्र आया। उसने जब वह पत्थर देखा, तो हैरान रह गया। उसने किसान से पूछा, “मित्र! तुम इस पत्थर ही कीमत की जानते हो?”
किसान ने जवाब दिया, “नहीं।” फिर मित्र बोला “मेरे ख्याल से ये हीरा है। शायद अब तक खोजे गए हीरों में सबसे बड़ा हीरा।” किसान के लिए इस बात पर यकीन करना मुश्किल था। उसने अपने मित्र को बताया कि उसे यह पत्थर अपने खेत की नदी के किनारे मिला है। वहाँ ऐसे और भी पत्थर हो सकते हैं।” दोनों खेत पहुँचे और वहाँ से कुछ पत्थर नमूने के तौर पर चुन लिए। फिर उन्हें जाँच के लिए भेज दिया।
जब जाँच रिपोर्ट आयी, तो किसान के मित्र की बात सच निकली। वे पत्थर हीरे ही थे। उस खेत में हीरों का भंडार था। वह उस समय तक खोजी गई सबसे कीमती हीरे की खदान थी। उसका खदान का नाम ‘किम्बर्ले डायमंड माइन्स’ है। दूसरा किसान उस खदान की वजह से मालामाल हो गया। पहला किसान अफ्रीका में दर-दर भटका और अंत में जान दे दी। जबकि हीरे की खान उसके अपने खेत में उसके क़दमों तले थी।
Moral – इस कहानी में हीरे पहले किसान के कदमों तले ही थे, लेकिन वह उन्हें पहचान नहीं पाया और उनकी खोज में भटकता रहा। ठीक वैसे ही हम भी सफलता प्राप्ति के लिए अच्छे अवसरों की तलाश में भटकते रहते है। हम उन अवसरों को पहचान नहीं पाते या पहचानकर भी महत्व नहीं देते, जो हमारे आस-पास ही छुपे रहते है।
4. वानरराज का बदला (Long Moral Stories in Hindi)
एक नगर में चन्द्र नामक राजा का शासन था। उसके राजमहल के बगीचे में बंदरों का एक समूह रहता था। बगीचे के फलों के अतिरिक्त राजा के सेवकों द्वारा प्रतिदन प्रदान किये जा रहे भोजन का सेवन कर वे बहुत हृष्ट-पुष्ट हो गये थे। बंदरों का सरदार “वानरराज” एक बूढ़ा बंदर था, जो अति-बुद्धिमान था। समय-समय पर वह अपना परामर्श बंदरों के समूह को दिया करता था।
राजमहल में दो भेड़ें भी रहती थीं। राजा के पुत्र उनके साथ खेला करते थे। दो भेड़ों में से एक भेड़ बहुत चटोरी थी। जब मन करता, वह रसोईघर में घुस जाती और वहाँ खाने की जो भी चीज़ें पाती, खा जाती। रसोईया भेड़ की इस हरक़त पर बहुत क्रोधित होता और जो हाथ में आता, वह वस्तु फ़ेंक कर उसे मारता।
एक दिन वानरराज ने रसोईये को भेड़ को एक बर्तन फेंककर मारते हुए देखा। वह सोचने लगा – कहीं रसोईये और भेड़ की यह तना-तनी बंदरों के विनाश का कारण न बन जाए। ये चटोरी भेड़ तो खाने के लोभ में यदा-कदा रसोई घर में जाती रहेगी। यदि किसी दिन क्रोधवश रसोईये ने चूल्हे की जलती हुई लकड़ी उस पर फेंक दी, तो अनर्थ हो जायेगा। भेड़ का ऊन से ढका शरीर आग पकड़ लेगा।
भागते हुए भेड़ अस्तबल पहुँच गई, तो सूखी घास से भरा अस्तबल धधक उठेगा। घोड़े जल जायेंगे और फिर वही बंदरों का काल बनेंगे। यह विचार मस्तिष्क में आते ही वानरराज ने अपने समूह की सभा बुलाई और अपना संदेह ज़ाहिर किया। उसने परामर्श दिया कि इससे पूर्व कि रसोइये और भेड़ों के बीच की लड़ाई हमारे लिए प्राणघातक सिद्ध हो, हमें राजमहल छोड़ देना चाहिए। अन्यतः हमारा विनाश निश्चित है।”
लेकिन बंदरों ने उसकी की बात नहीं मानी। उन्हें लगा कि उनका सरदार अब बूढ़ा हो चुका है और व्यर्थ का भ्रम पाल रहा है। वे राजमहल के भोजन के आदी हो चुके थे। इसलिए राजमहल छोड़ने को तैयार नहीं हुए। लेकिन वानरराज ने तत्काल राजमहल छोड़ दिया। इधर एक दिन फ़िर चटोरी भेड़ रसोईघर में घुस गई और वही हुआ, जिसका बंदरों के सरदार को भय था।
रसोइये को और कुछ नहीं मिला, तो उसने जलती हुई लकड़ी का टुकड़ा उठाकर भेड़ पर फ़ेंक दिया। भेड़ का शरीर, जो ऊन से ढका हुआ था, धधकने लगा। वह इधर-उधर भागने लगी और अस्तबल में घुस गई। आग की लपट अस्तबल में रखी सूखी घास तक पहुँची और पूरा अस्तबल धूं-धूं कर जल उठा। कई घोड़े जलकर मर गए।
कई घायल हो गये। राजा को यह समाचार मिला, तो उसने वैद्य को बुलाया और उसे घोड़ों का उपचार करने का आदेश दिया। वैद्य ने घोड़ों के घाव का परीक्षण किया और बोला, “इनके घावों को शीघ्र ठीक करने का एक ही उपाय है। इन पर बंदरों की चर्बी लगानी पड़ेगी।” राजा ने सैनिकों को आदेश दिया कि जो भी बंदर दिखे, तो मारकर उसकी चर्बी घोड़ों के उपचार के लिए लाई जाए। राजमहल के सारे बंदर मार दिए गए।
जब वानरराज तक यह बात पहुँची, तो वह बहुत दु:खी हुआ। उसके मन में प्रतिशोध की ज्वाला धधक उठी। लेकिन वह अकेला था। वह युक्ति सोचने लगा, जिससे वह राजा के कुल का भी वैसे ही सर्वनाश कर दे, जैसे उसने उसके कुल का किया है। एक दिन वह पानी पीने एक झील के पास गया। उस झील में सुंदर कमल खिले हुए थे।
वानरराज ने देखा कि मनुष्यों और जानवरों के पदचिन्ह झील की ओर जाते हुए तो हैं। लेकिन वापस आते हुए नहीं हैं। वह समझ गया कि झील में अवश्य कोई राक्षस रहता है जो झील में गए मनुष्यों और जानवरों को खा जाता है। उसने चतुराई दिखाते हुए कमल के तने से पानी पी लिया। जब झील में रहने वाले राक्षस ने यह देखा, तो झील से बाहर आ गया। उसने कई आभूषण पहने हुए थे।
वह वानरराज से बोला, “जो भी झील में आता है, मैं उसे खा जाता हों। लेकिन तुम तो चतुर निकले। मैं तुम्हारी चतुराई देख प्रसन्न हूँ। मांगों क्या मांगते हो?”
वानरराज बोला, “एक राजा ने मेरे संपूर्ण वंश का नाश कर दिया है। मैं उससे प्रतिशोध लेना चाहता हूँ। आप मेरी सहायता करें, मुझे अपना कंठहार दे दे। मैं आपको वचन देता हूँ कि मैं आपके आहार के लिए राजा और उसके अनुचरों को इस झील में लाऊँगा।”
राक्षस ने वानरराज को कंठहार दे दिया। वह हार पहनकर बंदरों के सरदार राजा के नगर पहुँचा। वह वहाँ एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर झूलने लगा। जिसकी भी दृष्टि उस पर पड़ती, वह कंठहार देखकर दंग रह जाता। राजा के सैनिकों की दृष्टि भी उस पर पड़ी और वे उसे पकड़कर राजा के समक्ष ले गए। राजा ने उससे पूछा, “तुम्हें ये कीमती कंठहार कहाँ से प्राप्त हुआ?”
वानरराज ने उत्तर दिया, “महाराज, यह हार मुझे समृद्धि के देवता द्वारा प्रदान किया गया है। वह जंगल के बीचों-बीच स्थित एक झील में निवास करते हैं। जब सूर्य आधा उदय हुआ होता है, उस समय जो व्यक्ति उस झील में डुबकी लगा ले, तो उसे समृद्धि के देवता का आशीर्वाद और कंठहार प्राप्त होता है।” राजा उसकी बातों में आ गया। वह अपनी पत्नि और पूरे परिवार सहित उस झील में डुबकी लगाने तैयार हो गया।
वानरराज ने कहा, “कल सुबह की मंगल बेला में पधारिये।”
लोभ में अंधा हो चुका राजा अगली सुबह अपनी पत्नि, पुत्र, परिवारजन, मंत्रियों और सेवकों सहित झील पहुँचा। वानरराज भी उनके साथ था। वह बोला, “महाराज, सबको अलग-अलग स्थानों से झील में उतरना होगा। सबके जाने के बाद आप अंत में झील में उतरिए।” राजा की पत्नि, पुत्र, परिवारजन, मंत्री, सेवक सभी अलग-अलग स्थानों से झील में उतर गए और राक्षस द्वारा खा लिए गए।
बहुत देर तक जब कोई बाहर नहीं आया, तो राजा ने चिंतित होकर पूछा, “हे वानरराज, मेरे पत्नि, पुत्र, परिवारजन, मंत्री और सेवक बाहर क्यों नहीं आ रहे हैं?” तब वानरराज एक पेड़ के ऊपर चढ़ गया और राजा से बोला, “अरे दुष्ट, तुम्हारा समस्त परिवार, मंत्री और सेवक राक्षस द्वारा खा लिए गए हैं। तुमने मेरे परिवार को मौत के घाट उतारा था। आज मैंने उसका प्रतिशोध ले लिया है।”
Moral – बुरा करोगे, तो बुरा फ़ल पाओगे।
5. जीवन का मूल्य (Long Motivational Story in Hindi)
एक दिन की बात है। पिता ने देखा कि उसका बेटा घर के लॉन में गुमसुम बैठा हुआ है। वह बेटे के पास गया और उससे पूछा, “बेटा, क्या बात है? गुमसुम से क्यों बैठे हो?” बेटे ने जवाब दिया “मैं कुछ सोच रहा हूँ पापा।”
पिता बोला “मुझे भी तो पता चले कि तुम क्या सोच रहे हो?” “मैं ये सोच रहा हूँ पापा कि मेरी ज़िंदगी की कीमत क्या है?” पिता मुस्कुरा उठा और बोला, “अच्छा ये बात है. यदि तुम सच में अपनी ज़िंदगी की कीमत समझना चाहते हो, तो जैसा मैं कहता हूँ वैसा करो।” बेटा तैयार हो गया।
पिता ने उसे एक पत्थर दिया, जो दिखने में साधारण सा ही था और कहा, “बेटा, इस पत्थर को लेकर बाज़ार जाओ। वहाँ किसी स्थान पर ये पत्थर हाथ में लेकर बैठ जाना। कोई इसकी कीमत पूछे, तो कहना कुछ नहीं। बस अपनी दो उंगलियाँ खड़ी कर देना।” बेटा बाज़ार चला गया और एक जगह पर हाथ में पिता का दिया हुआ पत्थर लेकर बैठ गया।
उसे वहाँ बैठे हुए कुछ समय ही गुज़रा था कि एक बूढ़ी औरत उसके पास आई और पूछने लगी, “बेटा, इस पत्थर की क्या कीमत है?” लड़का कुछ बोला नहीं, बस अपने पिता के कहे अनुसार अपनी दो उंगलियाँ खड़ी कर दी। बूढ़ी औरत बोली “अच्छा 200 रुपये। ठीक मैं इस पत्थर को 200 रुपये में खरीदने को तैयार हूँ। मुझे ये पत्थर दे दो।”
बूढ़ी औरत की बात सुनकर लड़का हैरान रह गया। उसे अंदाज़ा ही नहीं था कि एक साधारण से दिखने वाले पत्थर के लिए कोई 200 रुपये भी दे सकता है। खैर, उसने वह पत्थर बेचा नहीं और घर आ गया। घर आकर उसने सारी बात अपने पिता को बताई। तब पिता ने उससे कहा, “इस बार तुम एक म्यूज़ियम में जाना। वहाँ भी कोई तुमसे इस पत्थर की कीमत पूछे, तो पहले की तरह दो उंगलियाँ खड़ी कर देना।”
लड़का पत्थर लेकर म्यूज़ियम चला गया। वहाँ एक आदमी ने उसके हाथ में वह पत्थर देखकर पूछा, “इसकी कीमत क्या है?” लड़का कुछ नहीं बोला। बस, अपनी दो उंगलियाँ खड़ी कर दी। आदमी बोलै “अच्छा 20,000 रूपये। ठीक है, मैं ये तुमसे 20,000 रूपये में ख़रीद लूँगा।” लड़का यह सुनकर हैरान रह रहा। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि कोई उस पत्थर के 20,000 रूपये भी दे सकता है।
पत्थर बेचने से मना कर वह घर आ गया। वहाँ अपने पिता को उसके सारी बात बताई। तब पिता ने कहा, “अब मैं तुम्हें आखिरी जगह भेजता हूँ। इस पत्थर को लेकर अब तुम किसी कीमती पत्थरों की दुकान पर जाओ और वहाँ भी कोई तुमसे इसकी कीमत पूछे, तो कुछ कहना मत। पहले की तरह बस दो उंगलियाँ खड़ी कर देना।”
लड़का तुरंत कीमती पत्थरों की एक दुकान में पहुँचा। उसके हाथ में वह पत्थर देख, दुकानदार तुरंत उसके पास आया और बोला, “अरे ये पत्थर तुम्हारे पास कैसे? इसे तो मैं सालों से तलाश रहा हूँ। ये पत्थर तुम मुझे दे दो। बताओ क्या कीमत लोगे इसकी?” लड़के ने बिना कुछ कहे अपनी दो उंगलियाँ खड़ी कर दी।
वह आदमी बोला “अच्छा! 2,00,000 रूपये। ठीक है, मैं अभी तुम्हें 2,00,200 रुपये देकर ये पत्थर तुमसे ख़रीद लेता हूँ।” 2,00,000 रूपये सुनकर लड़के की आँखें आश्चर्य से फ़ैल गई। यह कीमत तो उसकी सोच से भी बाहर थी। खैर, उसने वह पत्थर नहीं बेचा और घर चला आया। घर पहुँचकर उसने अपने पिता को बताया, “पापा, यकीन ही नहीं हो रहा कि कोई इस पत्थर के 2,00,000 रूपये देने को भी तैयार है। ये कैसा पत्थर है पापा?
कोई इसे 200 में खरीदना चाहता है, तो कोई 20,000 में और तो और इसे 2,00,000 रूपये में भी लोग ख़रीदने को तैयार है। आखिर, इसकी कीमत क्या है?” पिता बेटे को समझाते हुए बोला, “बेटा, तुमने अपनी ज़िंदगी की कीमत मुझसे पूछी थी ना। इस पत्थर की जगह अपनी ज़िंदगी को रखो और अंदाज़ा लगाओ अपनी ज़िंदगी की कीमत का।
इस पत्थर की कीमत अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग थी। वैसा ही ज़िंदगी के साथ भी है। तुम्हारी ज़िंदगी की कीमत इस बात पर निर्भर करती है कि तुम ख़ुद को कहाँ पर रखते हो। यदि तुम ख़ुद को 200 रुपये वाली जगह पर रखोगे, तो तुम्हारी ज़िंदगी की कीमत 200 रूपये की है। यदि तुम ख़ुद को 2,00,000 रूपये वाली जगह पर रखोगे, तो तुम्हारी ज़िंदगी की कीमत 2,00,000 रूपये की है। अब ये तुम्हें तय करना है कि तुम ख़ुद को कहाँ रखते हो।”
Moral – लोग हमारा और ज़िंदगी का अलग-अलग मूल्यांकन करते हैं। जो हमसे प्यार करते हैं, हमें अपना समझते हैं, उनके लिए हम सब कुछ होते हैं। लेकिन जो हमें बस इस्तेमाल करना चाहते हैं, हमारा फायदा उठाना चाहते हैं, उनके लिए हम कुछ भी नहीं होते। वास्तव में जीवन अमूल्य है, इसका महत्व समझें।
6. कुएं में मेंढक की प्रेरणादायक कहानी (Big Moral Stories in Hindi)
एक विशाल समुद्र में एक मेंढक रहा करता था। एक दिन वह समुद्र से बाहर निकला और फुदक-फुदक कर इधर-उधर घूमने लगा। घूमते-घूमते वह बहुत दूर निकल आया। उसने जंगल पार किया। जंगल पार करते ही उसे एक कुआं नज़र आया। वह कुएं की मुंडेर पर चढ़ गया और अंदर झांककर देखा। उसे कुछ मेंढक कुएं में नज़र आये। उसने मिलने के लिए वह फौरन कुएं में कूद गया।
कुएं के पानी में जाकर वह मेंढकों से मिला। वे उसे अपने सरदार के पास ले गये। मेंढकों के सरदार ने उससे पूछा, “तुम कहाँ से आए हो?” समुद्री मेंढक ने उत्तर दिया, “मैं समुद्र से आया हूँ।”
कुएं में रहने वाले मेंढकों ने कभी समुद्र नहीं देखा था। वे सब आपस में खुसर-फुसुर करने लगे। मेंढकों के सरदार को भी कुछ समझ नहीं आया। उसने पूछा, “यह समुद्र क्या होता है?”
समुद्री मेंढक ने बताया, “वह स्थान जहाँ पानी ही पानी है। मैं वहीं रहता था। घूमता हुआ यहाँ आ गया।”
मेंढकों के सरदार ने उत्सुकता से पूछा, “कितना बड़ा होता है समुद्र?”
समुद्री मेंढक ने उत्तर दिया, “बहुत बड़ा। बहुत ही बड़ा। जिसका अंदाज़ा लगा पाना बहुत मुश्किल है।”
मेंढकों का सरदार कुएं के एक-तिहाई भाग तक उछल कर बोला, “इतना बड़ा?”
“नहीं! इससे भी बड़ा!” समुद्री मेंढक ने जवाब दिया।
मेंढकों का सरदार और उछला और उसने आधा कुआं तय कर लिया। फिर पूछा, “इतना बड़ा?”
“नहीं इससे भी बड़ा!” समुद्री मेंढक बोला।
फिर मेंढकों के सरदार ने उछलकर पूरे कुएं की ऊँचाई नाप दी और पूछा, “इतना बड़ा?”
समुद्री मेंढक ने हँसते हुए जवाब दिया, “इससे कहीं बड़ा। जिसका अंदाज़ा ही नहीं लगाया जा सकता।”
ना मेंढक का सरदार और ना उसके समूह के मेंढक कभी कुएं से बाहर निकले थे। कुआं ही उनकी दुनिया थी। उन्हें समुद्री मेंढक की बात पर यकीन ही नहीं हुआ। मेंढक का सरदार कुछ देर तक चुप रहा, तो समूह में से एक मेंढक बोला, “सरदार यह झूठ बोल रहा है। हमारे कुएं से विशाल जगह कोई हो ही नहीं सकती। ऐसे झूठे मक्कार मेंढक को हम अपने साथ नहीं रख सकते। इसे यहाँ से भगाइये।”
उसकी देखा-देखी समूह के अन्य मेंढक भी चिल्लाने लगे, “इस मेंढक को यहाँ से निकालिये। इस मेंढक को यहाँ से भगाइये।” मेंढकों के सरदार को भी आखिर उन लोगों की बात सही लगी। उसने आदेश दिया कि इस झूठे दगाबाज मेंढक को यहाँ से भगा दिया जाए। सबने मिलकर समुद्री मेंढक को कुएं से बाहर निकाल दिया।
Moral – जीवन में अक्सर ऐसा ही होता है। जिस चीज को हमने कभी ना देखा हो, उस पर विश्वास करना मुश्किल है। जो काम जीवन में कभी ना किया हो, उसमें सफ़ल होने पाने का विश्वास होना मुश्किल है। यदि हमने संकुचित बुद्धि से सोचा, तो कुएं में ही रह जायेंगे। जीवन में प्रगति करना है, तो सबसे पहले अपनी सोच को विस्तारित करना होगा। सारी बातों के बारे में विस्तारपूर्वक जानकर निर्णय लेना होगा और जीवन की असीमित संभावनाओं के बारे में विचार करना होगा।
7. मकड़ी की प्रेरणादायक कहानी (Hindi Big Story)
शहर के एक बड़े म्यूजियम के बेसमेंट में कई पेंटिंग्स रखी हुई थी। ये वे पेंटिंग्स थीं, जिन्हें प्रदर्शनी कक्ष में स्थान नहीं मिला था। लंबे समय से बेसमेंट में पड़ी पेंटिंग्स पर मकड़ियों ने जाला बना रखा था। बेसमेंट के कोने में पड़ी एक पेंटिंग पर एक मकड़ी ने बड़ी ही मेहनत से बड़ा सा जाला बुना हुआ था।
वह उसका घर था और वह उसके लिए दुनिया की सबसे प्यारी चीज़ थी। वह उसका विशेष रूप से ख्याल रखा करती थी। एक दिन म्यूजियम की साफ़-सफाई और रख-रखाव कार्य शुरू हुआ। इस प्रक्रिया में बेसमेंट में रखी कुछ चुनिंदा पेंटिंग्स को म्यूजियम के प्रदर्शनी कक्ष में रखा जाने लगा।
यह देख म्यूजियम के बेसमेंट में रहने वाली कई मकड़ियाँ अपना जाला छोड़ अन्यत्र चली गई। लेकिन कोने की पेंटिंग की मकड़ी ने अपना जाला नहीं छोड़ा। उसने सोचा कि सभी पेंटिंग्स को तो प्रदर्शनी कक्ष में नहीं ले जाया जायेगा। हो सकता है इस पेंटिंग को भी न ले जाया जाये।
कुछ समय बीतने के बाद बेसमेंट से और अधिक पेंटिंग्स उठाई जाने लगी। लेकिन तब भी मकड़ी ने सोचा कि ये मेरे रहने की सबसे अच्छी जगह है। इससे बेहतर जगह मुझे कहाँ मिल पाएंगी? वह अपना घर छोड़ने को तैयार नहीं थी। इसलिए उसने अपना जाला नहीं छोड़ा। लेकिन एक सुबह म्यूजियम के कर्मचारी उस कोने में रखी पेंटिंग को उठाकर ले जाने लगे।
अब मकड़ी के पास अपना जाला छोड़कर जाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था। जाला न छोड़ने की स्थिति में वह मारी जाती। बुझे मन से उसने इतनी मेहनत से बनाया अपना जाला छोड़ दिया। म्यूजियम से बाहर निकलने के बाद वह कई दिनों तक इधर-उधर भटकती रही। वह बड़ी दु:खी रहा करती थी कि उसका ख़ूबसूरत घर भगवान ने उससे छीन लिया और उसे इस मुसीबत में ढकेल दिया।
वह म्यूजियम के अपने पुराने घर के बारे में सोचकर और दु:खी हो जाती कि उससे अच्छा स्थान अब उसे कभी हासिल नहीं होगा। लेकिन उसे अपने रहने के लिए स्थान तो खोजना ही था। इसलिए वह लगातार प्रयास करती रही। आखिर में एक दिन वह एक सुंदर बगीचे में पहुँची। बगीचे में एक शांत कोना था, जो मकड़ी को बहुत पसंद आया।
उसने फिर से मेहनत प्रारंभ की और कुछ ही दिनों में पहले से भी सुंदर जाला तैयार कर लिया। यह उसका अब तक का सबसे ख़ूबसूरत घर था। अब वह ख़ुश थी कि जो हुआ अच्छा ही हुआ, अन्यथा वह इतने सुंदर स्थान पर इतने सुंदर घर में कभी नहीं रह पाती। वह ख़ुशी-ख़ुशी वहाँ रहने लगी।
Moral – कभी-कभी जीवन में ऐसा कठिन समय आता है, जब हमारा बना-बनाया सब कुछ बिखर जाता है। ऐसी परिस्थिति में हम अपनी किस्मत को कोसने लगते हैं या भगवान से शिकायतें करने लग जाते है। लेकिन वास्तव में कठिन परिस्थितियों हमारे हौसले की परीक्षा है। यदि हम अपना हौसला मजबूत रखते हैं और कठिनाइयों से जूझते हुए जीवन में आगे बढ़ते जाते है। तो परिस्थितियाँ बदलने में समय नहीं लगता।
8. सौ ऊँट (Big Story in Hindi with Moral)
राजस्थान के एक गाँव में रहने वाला एक व्यक्ति हमेशा किसी ना किसी समस्या से परेशान रहता था और इस कारण अपने जीवन से बहुत दु:खी था। एक दिन उसे कहीं से जानकारी प्राप्त हुई कि एक पीर बाबा अपने काफ़िले के साथ उसके गाँव में पधारे है। उसने तय किया कि वह पीर बाबा से मिलेगा और अपने जीवन की समस्याओं के समाधान का उपाय पूछेगा।
शाम को वह उस स्थान पर पहुँचा, जहाँ पीर बाबा रुके हुए थे। कुछ समय प्रतीक्षा करने के उपरांत उसे पीर बाबा से मिलने का अवसर प्राप्त हो गया। वह उन्हें प्रणाम कर बोला, “बाबा! मैं अपने जीवन में एक के बाद एक आ रही समस्याओं से बहुत परेशान हूँ। एक से छुटकारा मिलता नहीं कि दूसरी सामने खड़ी हो जाती है।
घर की समस्या, काम की समस्या, स्वास्थ्य की समस्या और जाने कितनी ही समस्यायें। ऐसा लगता है कि मेरा पूरा जीवन समस्याओं से घिरा हुआ है। कृपा करके कुछ ऐसा उपाय बतायें कि मेरे जीवन की सारी समस्यायें खत्म हो जाये और मैं शांतिपूर्ण और ख़ुशहाल जीवन जी सकूँ।”
उसकी पूरी बात सुनने के बाद पीर बाबा मुस्कुराये और बोले, “बेटा! मैं तुम्हारी समस्या समझ गया हूँ। उन्हें हल करने के उपाय मैं तुम्हें कल बताउँगा। इस बीच तुम मेरा एक छोटा सा काम कर दो।” व्यक्ति तैयार हो गया। पीर बाबा बोले, “बेटा, मेरे काफ़िले में १०० ऊँट है। मैं चाहता हूँ कि आज रात तुम उनकी रखवाली करो। जब सभी १०० ऊँट बैठ जायें, तब तुम सो जाना।”
यह कहकर पीर बाबा अपने तंबू में सोने चले गए। व्यक्ति ऊँटों की देखभाल करने चला गया। अगली सुबह पीर बाबा ने उसे बुलाकर पूछा, “बेटा! तुम्हें रात को नींद तो अच्छी आई ना?”
व्यक्ति ने उत्तर दिया “कहाँ बाबा? पूरी रात मैं एक पल के लिए भी सो न सका। मैंने बहुत प्रयास किया कि सभी ऊँट एक साथ बैठ जायें, ताकि मैं चैन से सो सकूँ। लेकिन मेरा प्रयास सफल न हो सका। कुछ ऊँट तो स्वतः बैठ गए। कुछ मेरे बहुत प्रयास करने पर भी नहीं बैठे। कुछ बैठ भी गए, तो दूसरे उठ खड़े हुए। इस तरह पूरी रात बीत गई।”
पीर बाबा मुस्कुराये और बोले, “यदि मैं गलत नहीं हूँ, तो तुम्हारे साथ कल रात यह हुआ? कई ऊँट ख़ुद-ब-ख़ुद बैठ गए। कईयों को तुमने अपने प्रयासों से बैठाया। कई तुम्हारे बहुत प्रयासों के बाद भी नहीं बैठे। बाद में तुमने देखा कि वे उनमें से कुछ अपने आप ही बैठ गए।”
फिर व्यक्ति तत्परता से बोला “बिल्कुल ऐसा ही हुआ बाबा।” तब पीर बाबा ने उसे समझाते हुए कहा, “क्या तुम समझ पाए कि जीवन की समस्यायें इसी तरह है, कुछ समस्यायें अपने आप ही हल हो जाती हैं, कुछ प्रयास करने के बाद हल होती है, कुछ प्रयास करने के बाद भी हल नहीं होती। उन समस्याओं को समय पर छोड़ दो। सही समय आने पर वे अपने आप ही हल हो जायेंगी।
कल रात तुमें अनुभव किया होगा कि चाहे तुम कितना भी प्रयास क्यों न कर लो? तुम एक साथ सारे ऊँटों को नहीं बैठा सकते। तुम एक को बैठाते हो, तो दूसरा खड़ा हो जाता है। दूसरे को बैठाते हो, तो तीसरा खड़ा हो जाता है। जीवन की समस्यायें इन ऊँटों की तरह ही हैं। एक समस्या हल होती नहीं कि दूसरी खड़ी हो जाती है।
समस्यायें जीवन का हिस्सा है और हमेशा रहेंगी। कभी ये कम हैं, तो कभी ज्यादा। बदलाव तुम्हें स्वयं में लाना है और हर समय इनमें उलझे रहने के स्थान पर इन्हें एक तरफ़ रखकर जीवन में आगे बढ़ना है।” व्यक्ति को पीर बाबा की बात समझ में आ गई और उसने निश्चय किया कि आगे से वह कभी अपनी समस्याओं को खुद पर हावी होने नहीं देगा। चाहे सुख हो या दुःख जीवन में आगे बढ़ता चला जायेगा।
9. अपनी क्षमता पहचानो (Long Story for Kids in Hindi)
एक गाँव में एक आलसी आदमी रहता था। वह कुछ काम-धाम नहीं करता था। बस दिन भर निठल्ला बैठकर सोचता रहता था कि किसी तरह कुछ खाने को मिल जाये। एक दिन वह यूं ही घूमते-घूमते आम के एक बाग़ में पहुँच गया। वहाँ रसीले आमों से लदे कई पेड़ थे। रसीले आम देख उसके मुँह में पानी आ गया और आम तोड़ने वह एक पेड़ पर चढ़ गया। लेकिन जैसे ही वह पेड़ पर चढ़ा, बाग़ का मालिक वहाँ आ पहुँचा।
बाग़ के मालिक को देख आलसी आदमी डर गया और जैसे-तैसे पेड़ से उतरकर वहाँ से भाग खड़ा हुआ। भागते-भागते वह गाँव के बाहर स्थित जंगल में जा पहुँचा। वह बुरी तरह से थक गया था। इसलिए एक पेड़ के नीचे बैठकर सुस्ताने लगा। तभी उसकी नज़र एक लोमड़ी पर पड़ी।
उस लोमड़ी की एक टांग टूटी हुई थी और वह लंगड़ाकर चल रही थी। लोमड़ी को देख आलसी आदमी सोचने लगा कि ऐसी हालत में भी इस जंगली जानवरों से भरे जंगल में ये लोमड़ी बच कैसे गई? इसका अब तक शिकार कैसे नहीं हुआ?
जिज्ञासा में वह एक पेड़ पर चढ़ गया और वहाँ बैठकर देखने लगा कि अब इस लोमड़ी के साथ आगे क्या होगा? कुछ ही पल बीते थे कि पूरा जंगल शेर की भयंकर दहाड़ से गूंज उठा। जिसे सुनकर सारे जानवर डरकर भागने लगे। लेकिन लोमड़ी अपनी टूटी टांग के साथ भाग नहीं सकती थी। वह वहीं खड़ी रही। शेर लोमड़ी के पास आने लगा। आलसी आदमी ने सोचा कि अब शेर लोमड़ी को मारकर खा जायेगा।
लेकिन आगे जो हुआ, वह कुछ अजीब था। शेर लोमड़ी के पास पहुँचकर खड़ा हो गया। उसके मुँह में मांस का एक टुकड़ा था, जिसे उसने लोमड़ी के सामने गिरा दिया। लोमड़ी इत्मिनान से मांस के उस टुकड़े को खाने लगी। थोड़ी देर बाद शेर वहाँ से चला गया। यह घटना देख आलसी आदमी सोचने लगा कि भगवान सच में सर्वेसर्वा है।
उसने धरती के समस्त प्राणियों के लिए, चाहे वह जानवर हो या इंसान, खाने-पीने का प्रबंध कर रखा है। वह अपने घर लौट आया। घर आकर वह 2-3 दिन तक बिस्तर पर लेटकर प्रतीक्षा करने लगा कि जैसे भगवान ने शेर के द्वारा लोमड़ी के लिए भोजन भिजवाया था। वैसे ही उसके लिए भी कोई न कोई खाने-पीने का सामान ले आएगा।
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। भूख से उसकी हालात ख़राब होने लगी। आख़िरकार उसे घर से बाहर निकलना ही पड़ा। घर के बाहर उसे एक पेड़ के नीचे बैठे हुए बाबा दिखाए पड़े। वह उनके पास गया और जंगल का सारा वृतांत सुनाते हुए बोला, “बाबा जी! भगवान मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं? उनके पास जानवरों के लिए भोजन का प्रबंध है। लेकिन इंसानों के लिए नहीं।”
बाबा जी ने उत्तर दिया, “बेटा! ऐसी बात नहीं है। भगवान के पास सारे प्रबंध है। दूसरों की तरह तुम्हारे लिए भी।लेकिन बात यह है कि वे तुम्हें लोमड़ी नहीं, शेर बनाना चाहते हैं।”
Moral – हम सबके भीतर क्षमताओं का असीम भंडार है। बस अपनी अज्ञानतावश हम उन्हें पहचान नहीं पाते और स्वयं को कमतर समझकर दूसरों की सहायता की प्रतीक्षा करते रहते हैं। स्वयं की क्षमता पहचानिए। दूसरों की सहायता की प्रतीक्षा मत करिए। इतने सक्षम बनिए कि आप दूसरों की सहायता कर सकें।
10. कबूतर का जोड़ा और शिकारी (Long Moral Stories in Hindi)
एक निर्जन स्थान में एक व्याध रहता था। उसके परिजनों और सगे-संबंधियों ने उसका त्याग कर दिया था। वे उसके जीव-हत्या के कार्य से अप्रसन्न थे। उन्होंने उससे कई बार जीव हत्या का त्याग करने की प्रार्थना की। लेकिन व्याध नहीं माना। अंततः वे सब उससे दूर हो गए। व्याध को शिकार में बड़ा आनंद आता था। वह अपना अधिकांश समय पशु-पक्षियों के शिकार में व्यतीत किया करता था। दिन भर वह जाल और लाठी लेकर वन में भटकता रहता था।
वह दिन पर दिन निर्दयी और क्रूर होता जा रहा था। एक दिन उसने जाल बिछाकर एक कबूतरी को फांस लिया। उसे लेकर प्रसन्नतापूर्वक वह अपने घर की ओर प्रस्थान करने लगा कि बीच रास्ते में बादल घिर आये और वर्षा होने लगी। वर्षा के जल से व्याध पूर्णतः भीग गया। वह सर्दी से ठिठुरने लगा। वह वर्षा से बचने के लिए आश्रय ढूंढने लगा। कुछ ही दूर पर उसे पीपल का क वृक्ष दिखाई पड़ा।
उसमें एक बड़ा सा खोल था, जिसमें एक मनुष्य घुसकर बैठ सकता था। व्याध ने सोचा कि कुछ देर के लिए यहाँ शरण लेना उचित होगा। वह खोल में घुस गया और बोला, “इस खोल में रहने वाले जीव मैं यहाँ कुछ देर आश्रय ले रहा हूँ। आशा है तुम्हें कोई आपत्ति नहीं होगी। इस सहायता के लिए मैं आजीवन तुम्हारा ऋणी रहूँगा।” उस खोल उस कबूतरी का पति रहता था। जिसे व्याध ने पकड़ लिया था।
वह अपने पत्नी के बिछड़ जाने के कारण दु:खी था और विलाप कर रहा था। कबूतरी ने जब स्वयं के प्रति अपने पति का प्रेम देखा, तो भावुक हो गई। वह मन ही मन सोचने लगी कि मैं कितनी भाग्यशाली हूँ, जो मुझे इस जीवन में ऐसा प्रेम करने वाला पति मिला। इन्हें पाकर मेरा जीवन धन्य हो गया। वह अपने पति से बोली, “स्वामी! विलाप मत करो। मैं यहीं हूँ। इस व्याध ने मुझे जाल में पकड़ लिया है। कदाचित ये मेरे कर्मों का फ़ल है।
लेकिन आप मेरी चिंता में व्याकुल ना हो। अपना कर्तव्य निभाते हुए शरण में आये अतिथि की सेवा-सत्कार करो। अन्यथा, तुम पाप के भागी बनोगे। कबूतरी की बात मानकर कबूतर व्याध से बोला, “वधिक, आपका स्वागत है। आप यहाँ निःसंकोच विश्राम करें। यदि आपको किसी प्रकार का कष्ट हो, तो मुझे बताएं। मैं उसके निवारण का हर संभव प्रयास करूँगा।”
व्याध बोला, “मैं वर्षा के जल में भीग गया हुआ। मुझे ठंड लग रही है। कुछ ताप की व्यवस्था कर दो।” कबूतर ने लकड़ियाँ जमा की और उसे जला दिया। अतिथि आग सेंकने लगा और उसकी ठंड दूर हो गई। फिर कबूतर ने सोचा कि अतिथि अवश्य भूखा होगा। मुझे इसके लिए भोजन की व्यवस्था करनी चाहिए। लेकिन उस समय उसके पास अन्न का एक दाना नहीं था। वह विचार करने लगा कि क्या करूं कि अतिथि की भूख शांत कर सकू।
कुछ देर विचार करने के बाद उसने निर्णय लिया कि अब तो कबूतरी भी मेरे साथ नहीं है। मैं जीवित रहकर क्या करूँगा? मुझे अपने ही शरीर त्याग कर व्याध का भोजन बन जाना चाहिए। यह सोचकर वह आग में कूद गया। उसका ये बलिदान देख, व्याध की आत्मा व्याकुल हो गई। वह आत्म-ग्लानि में डूब गया और मन ही मन स्वयं को धिक्कारने लगा। उसी क्षण उसने कबूतरी को मुक्त कर दिया।
कबूतरी ने जब अपने पति को आग में जलता हुआ देखा, तो विलाप करने लगी और कहने लगी कि ये मेरे कर्मों का फल है, जिसकी सजा आपको मिली। अब मैं अकेली इस संसार में जीकर क्या करुँगी? कबूतरी ने भी आग में कूदकर अपने प्राणों का त्याग कर दिया। कबूरत और कबूतरी का ये बलिदान देख व्याध की आँखें खुल गई। उसने उसी समय जीव-हत्या त्याग देने का प्रण किया।
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