हेलो दोस्तों आज हम Top 10 Moral Stories in Hindi के बारे में जानेंगे। इन स्टोरीज को पढ़कर आपको बहुत अच्छी शिक्षा मिलेगी। इनसे आपको जीवन की कई महत्वपूर्ण चीजों के बारे में जानने को मिलेगा। आप इन हिंदी कहानियों को अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर कीजियेगा। तो आए जानते है Best Moral Stories in Hindi के बारे में।
1. शेर और बंदर की कहानी (Best Moral Stories in Hindi)
एक जंगल में एक शेर रहता था। वह जंगल का राजा था और बड़ा बलशाली था। सारे जानवर डर के कारण उसका गुणगान किया करते थे। उसी जंगल में एक बुद्धिमान बंदर रहता था। वो शेर से डरता नहीं था और व्यर्थ में उसका गुणगान नहीं करता था। शेर की यह बात बुरी लगती थी। एक बार उसने बंदर को बुलाया और कहा, “जंगल के सारे जानवर मेरी प्रशंसा करते हैं, तुम नहीं? ऐसा क्यों? फिर बंदर ने कहा “मैं किस बात पर आपकी प्रशंसा करूं?”
फिर शेर ने उत्तर दिया “मैं बलशाली हूँ, जंगल के सारे जानवर मुझसे डरते हैं।” फिर बंदर बोला “वनराज! मैं बल को नहीं बुद्धि को श्रेष्ठ मानता हूँ। इसलिए मात्र बल के कारण मैं आपका गुणगान नहीं करूंगा।” यह बात शेर को बुरी लगी और दोनों में विवाद हो गया। विवाद का विषय था – ‘बुद्धि श्रेष्ठ है या बल।’ शेर की दृष्टि में बल श्रेष्ठ था, लेकिन बंदर की दृष्टि में बुद्धि। दोनों के अपने-अपने तर्क थे।
अपने तर्क देकर वे एक-दूसरे के सामने स्वयं को सही सिद्ध करने में लग गये। बंदर बोला, “शेर महाराज, बुद्धि ही श्रेष्ठ है। बुद्धि से संसार का हर कार्य संभव है, चाहे वह कितना ही कठिन क्यों न हो? बुद्धि से हर समस्या का निदान संभव है, चाहे वह कितनी ही विकट क्यों न हो? मैं बुद्धिमान हूँ और अपनी बुद्धि का प्रयोग कर किसी भी मुसीबत से आसानी से निकल सकता हूँ, कृपया यह बात मान लीजिये।”
बंदर का तर्क सुन शेर भड़क गया और बोला, “चुपकर बंदर, तू बल और बुद्धि की तुलना कर बुद्धि को श्रेष्ठ बता रहा है। बल के आगे किसी का ज़ोर नहीं चलता । मैं बलवान हूँ और तेरी बुद्धि मेरे बल के सामने कुछ भी नहीं। मैं चाहूं, तो अभी इसका प्रयोग कर तेरे प्राण ले सकता हूँ।” बंदर कुछ क्षण शांत रहा और बोला, “महाराज, मैं अभी तो जा रहा हूँ। लेकिन मेरा यही मानना है कि बुद्धि बल से श्रेष्ठ है। एक दिन मैं आपको ये प्रमाणित करके दिखाऊंगा। मैं अपनी बुद्धि से बल को हरा दूँगा।”
फिर शेर ने उत्तर दिया “मैं उस दिन की प्रतीक्षा करूँगा, जब तुम ऐसा कर दिखाओगे। उस दिन मैं अवश्य तुम्हारी इस बात को स्वीकार करूँगा कि बुद्धि बल से श्रेष्ठ है। लेकिन तब तक कतई नहीं।” इस बात को कई दिन बीत गए। बंदर और शेर का आमना-सामना भी नहीं हुआ। एक दिन शेर जंगल में शिकार कर अपनी गुफ़ा की ओर लौट रहा था। अचानक वह पत्तों से ढके एक गड्ढे में जा गिरा। उसके पैर में चोट लग गई।
किसी तरह वह गड्ढे से बाहर निकला, तो पाया कि एक शिकारी उसके सामने बंदूक ताने खड़ा है। शेर घायल था। ऐसी अवस्था में वह शिकारी का सामना करने में असमर्थ था। तभी अचानक कहीं से शिकारी पर पत्थर बरसने लगे। शिकारी हड़बड़ा गया। इसके पहले कि वो कुछ समझ पाता, एक पत्थर उसके सिर पर आकर पड़ा। वह दर्द से तिलमिला उठा और अपने प्राण बचाने वहाँ से भाग गया।
शेर भी चकित था कि शिकारी पर पत्थरों से हमला किसने किया और किसने उसके प्राणों की रक्षा की। वह इधर-उधर देखते हुए ये सोच ही रहा था कि सामने एक पेड़ पर बैठे बंदर की आवाज़ उसे सुनाई दी, “महाराज, आज आपके बल को क्या हुआ? इतने बलवान होते हुए भी आज आपकी जान पर बन आई।” बंदर को देख शेर ने पूछा, “तुम यहाँ कैसे?” “महाराज, कई दिनों से मेरी उस शिकारी पर नज़र थी।
एक दिन मैंने उसे गड्ढा खोदते हुए देखा, तो समझ गया था कि वह आपका शिकार करने की फ़िराक में है। इसलिए मैंने थोड़ी बुद्धि लड़ाई और ढेर सारे पत्थर इस पेड़ पर एकत्रित कर लिए, ताकि आवश्यकता पड़ने पर इनका प्रयोग शिकारी के विरुद्ध कर सकूं।” बंदर ने शेर के प्राणों की रक्षा की थी। वह उसके प्रति कृतज्ञ था। उसने उसे धन्यवाद दिया। उसे अपने और बंदर में मध्य हुआ विवाद भी स्मरण हो आया।
वह बोला, “बंदर भाई, आज तुमने सिद्ध कर दिया कि बुद्धि बल से श्रेष्ठ होती है। मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है। मैं समझ गया हूँ कि बल हर समय और हर परिस्थिति में एक सा नहीं रहता, लेकिन बुद्धि हर समय और हर परिस्थिति में साथ रहती है।” बंदर ने उत्तर दिया, “महाराज, मुझे प्रसन्नता है कि आप इस बात को समझ गए। आज की घटना पर ध्यान दीजिये।
शिकारी आपसे बल में कम था, किंतु बावजूद इसके उसने अपनी बुद्धि से आप पर नियंत्रण पा लिया। उसी प्रकार मैं शिकारी से बल में कम था, किंतु बुद्धि का प्रयोग कर मैंने उसे डराकर भगा दिया। इसलिए हर कहते हैं कि बुद्धि बल से कहीं श्रेष्ठ है।”
Moral of The Story – बुद्धि का प्रयोग कर हर समस्या का निराकरण किया जा सकता है। इसलिए बुद्धि को कभी कमतर न समझें।
2. हार में जीत (Short Moral Stories in Hindi)
बहुत समय पहले की बात है। भारत के सुदूर दक्षिण में एक छोटा सा राज्य स्थित था। राजा द्वारा राज्य का संचालन शांतिपूर्ण रीति से किया जा रहा था। एक दिन अचानक उसे ख़बर मिली कि एक बड़े राज्य की सेना की एक बड़ी टुकड़ी उसके राज्य पर आक्रमण के लिए आगे बढ़ रही है। वह घबरा गया, क्योंकि उसके पास उतना सैन्य बल नहीं था, जो उतनी बड़ी सेना का सामना कर सके। उसने मंत्रणा हेतु सेनापति को बुलाया।
सेनापति ने पहले ही हाथ खड़े कर दिए। वह बोला, “महाराज! इस युद्ध में हमारी हार निश्चित है। इतनी बड़ी सेना के सामने हमारी सेना टिक नहीं पायेगी। इसलिए इस युद्ध को लड़ने का कोई औचित्य नहीं है। हमें अपने सैनिकों के प्राण गंवाने के बजाय पहले ही हार स्वीकार कर लेनी चाहिए।” सेनापति की बात सुनकर राजा बहुत निराश हुआ।उसकी चिंता और बढ़ गई। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे और क्या न करे?
अपनी चिंता से छुटकारा पाने के लिए वह राज्य के संत के पास गया। संत को उसने पूरी स्थिति से अवगत कराया और बताया कि सेनापति ने तो युद्ध के पहले ही हाथ खींच लिए हैं। ये सुनकर संत बोले, “राजन! ऐसे सेनापति को तो तुरंत उसके पद से हटाकर कारागृह में डाल देना चाहिए। ऐसा सेनापति जो बना लड़े हार मान रहा है, उसे सेना का नेतृत्व करने का कोई अधिकार नहीं है।”
फिर राजा चिंतित होकर बोला, “किंतु गुरुवर, यदि मैंने उसे कारागृह में डाल दिया, तो सेना का नेतृत्व कौन करेगा।” फिर संत बोले “राजन! तुम्हारी सेना का नेतृत्व मैं करूँगा।” राजा सोच में पड़ गया कि संत युद्ध कैसे लड़ेंगे? उन्होंने तो कभी कोई युद्ध नहीं किया है। लेकिन, कोई विकल्प न देख उसने संत की बात मान ली और उन्हें अपनी सेना का सेनापति बना दिया।
सेनापति बनने के बाद संत ने सेना की कमान संभाल ली और सेना के साथ युद्ध के लिए कूच कर दिया। रास्ते में एक मंदिर पड़ा। मंदिर के सामने संत ने सेना को रोका और सैनिकों से बोले, “यहाँ कुछ देर रुको। मैं मंदिर में जाकर ईश्वर से पूछकर आता हूँ कि हमें युद्ध में विजय प्राप्त होगी या नहीं?” ये सुन सैनिकों ने चकित होकर पूछा, “मंदिर में तो भगवान की पत्थर की मूर्ति है। वह कैसे बोलेगी?”
इस पर सेना की कमान संभाल रहे संत ने कहा, “मैंने अपनी सारी उम्र दैवीय शक्तियों से वार्तालाप किया है। इसलिए मैं ईश्वर से बात कर लूँगा? तुम लो यहीं रूककर मेरी प्रतीक्षा करो।” यह कहकर संत मंदिर में चले गए। कुछ देर बार जब वे वापस लौटे, तो सैनिकों ने पूछा, “ईश्वर ने क्या कहा?” संत ने उत्तर दिया, “ईश्वर ने कहा कि यदि रात में इस मंदिर में प्रकाश दिखाई पड़े, तो हमारी विजय निश्चित है।”
पूरी सेना रात होने की प्रतीक्षा करने लगी। रात हुई, तो मंदिर में उन्हें प्रकाश दिखाई पड़ा। ये देख सेना ख़ुशी से झूम उठी। उन्हें विश्वास हो गया कि अब वे युद्ध जीत लेंगे। उनका मनोबल बढ़ गया और वे जीत के मंसूबे से युद्ध के मैदान में पहुँचे। युद्ध 10 दिन चला। सैनिक जी-जान से लड़े। फलस्वरूप उनकी विजय हुई। विजयी सेना के वापस आते समय फिर वही मंदिर पड़ा।
तब सैनिकों ने संत से कहा कि ईश्वर के कारण हमारी विजय हुई है। आप जाकर उन्हें धन्यवाद दे आयें। संत ने उतर दिया, “इसकी कोई आवश्यकता नहीं है।” यह सुन सैनिक कहने लगे, “आप कितने कृतघ्न हैं। जिस ईश्वर ने मंदिर में रौशनी कर हमें जीत दिलाई, आप उनका धन्यवाद भी नहीं कर रहे।” तब संत ने उन्हें बताया, “उस रात मंदिर से आने वाली रौशनी एक दिए की थी और वह दिया मैं वहाँ जलाकर आया था।
दिन में तो वो रौशनी दिखाई नहीं पड़ी। किंतु रात होते ही दिखाई देने लगी। दिए की रौशनी देखकर तुम सबने मेरी बात पर विश्वास कर लिया कि युद्ध में विजय हमारी होगी। इस तरह तुम सबका मनोबल बढ़ गया और तुम जीत के विश्वास के साथ युद्ध के मैदान में गए और असंभव लगने वाली विजय तुमने प्राप्त की।”
Moral of The Story – ख़ुद पर विश्वास रखें और परिश्रम करते रहें। विश्वास की विजय होगी।
3. मकड़ी, चींटी और जाला (Moral Stories in Hindi for Kids)
एक मकड़ी अपना जाला बनाने उपयुक्त स्थान की तलाश में थी। वह चाहती थी कि उसका जाला ऐसे स्थान पर हो, जहाँ ढेर सारे कीड़े-मकोड़े और मक्खियाँ आकर फंसे। इस तरह वह मज़े से खाते-पीते और आराम करते अपना जीवन बिताना चाहती थी। उसे एक घर के कमरे का कोना पसंद आ गया और वह वहाँ जाला बनाने की तैयारी करने लगी। उसने जाला बुनना शुरू ही किया था कि वहाँ से गुजर रही एक बिल्ली उसे देख जोर-जोर से हँसने लगी।
मकड़ी ने जब बिल्ली से उसके हंसने का कारण पूछा, तो बिल्ली बोली, “मैं तुम्हारी बेवकूफ़ी पर हँस रही हूँ। तुम्हें दिखाई नहीं पड़ता कि ये स्थान कितना साफ़-सुथरा है। यहाँ न कीड़े-मकोड़े हैं, न ही मक्खियाँ। तुम्हारे जाले में कौन फंसेगा?” बिल्ली की बात सुनकर मकड़ी ने कमरे के उस कोने में जाला बनाने का विचार त्याग दिया और दूसरे स्थान की तलाश करने लगी। उसने घर के बरामदे से लगी एक खिड़की देखी और वह वहाँ जाला बुनने लगी।
उसने आधा जाला बुनकर तैयार कर लिया था, तभी एक चिड़िया वहाँ आई और उसका मज़ाक उड़ाने लगी, “अरे, तुम्हारा दिमाग ख़राब हो गया है क्या, जो इस खिड़की पर जाला बुन रही हो। तेज हवा चलेगी और तुम्हारा जाला उड़ जायेगा।” मकड़ी को चिड़िया की बात सही लगी। उसने तुरंत खिड़की पर जाला बुनना बंद किया और दूसरा स्थान ढूंढने लगी। ढूंढते-ढूंढते उसकी नज़र एक पुरानी अलमारी पर पड़ी।
उस अलमारी का दरवाज़ा थोड़ा खुला हुआ था। वह वहाँ जाकर जाला बुनने लगी। तभी एक कॉकरोच वहाँ आया और उसे समझाइश देते हुए बोला, “इस स्थान पर जाला बनाना व्यर्थ है। यह अलमारी बहुत पुरानी हो चुकी है। कुछ ही दिनों में इसे बेच दिया जायेगा। तुम्हारी सारी मेहनत बेकार चली जायेगी।” मकड़ी ने कॉकरोच की समझाइश मान ली और अलमारी में जाला बनाना बंद कर दूसरे स्थान की ख़ोज करने लगी।
लेकिन इन सबके बीच पूरा दिन निकल चुका था। वह थक गई थी और भूख-प्यास से उसका हाल बेहाल हो चुका था। अब उसमें इतनी हिम्मत नहीं रह गई थी कि वह जाला बना सके। थक-हार कर वह एक स्थान पर बैठ गई। वहीं एक चींटी भी बैठी हुई थी। थकी-हारी मकड़ी को देख चींटी बोली, “मैं तुम्हें सुबह से देख रही हूँ। तुम जाला बुनना शुरू करती हो और दूसरों की बातों में आकर उसे अधूरा छोड़ देती हो। जो दूसरों की बातों में आता है, उसका तुम्हारे जैसा ही हाल होता है।”
चींटी बात सुनकर मकड़ी को अपनी गलती का अहसास हुआ और वह पछताने लगी।
Moral of The Story – जब भी हम कोई नया काम शुरू करें, तो पूर्ण सोच-विचार कर करें और उसके बाद आत्मविश्वास और दृढ़-निश्चय के साथ उस काम में जुट जायें और हमें दूसरे उस काम के बारे में चाहे कुछ भी कहे हमें उनपर ध्यान नहीं देना चाहिए।
4. चरवाहा बालक और भेड़िया (Top 10 Moral Stories in Hindi)
एक गाँव में एक चरवाहा बालक रहता था। वह रोज़ अपनी भेड़ों को लेकर जंगल के पास स्थित घास के मैदानों में जाता। वहाँ वह भेड़ों को चरने के छोड़ देता और ख़ुद एक पेड़ के नीचे बैठकर उन पर निगाह रखता। उसकी यही दिनचर्या थी। दिन भर पेड़ के नीचे बैठे-बैठे उसका समय बड़ी मुश्किल से कटता था। उसे बोरियत महसूस होती थी। वह सोचता कि काश मेरे जीवन में भी कुछ मज़ा और रोमांच आ जाये।
एक दिन भेड़ों को चराते हुए उसे मज़ाक सूझा और वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा, “भेड़िया आया भेड़िया आया।” वहाँ से कुछ दूरी पर स्थित खेतों में कुछ किसान काम कर रहे थे। चरवाहे बालक की आवाज़ सुनकर वे अपना काम छोड़ उसकी सहायता के लिए दौड़े चले आये। लेकिन जैसे ही वे उसके पास पहुँचे, वह ठहाके मारकर हंसने लगा। किसान बहुत गुस्सा हुए। उसे डांटा और चेतावनी दी कि आज के बाद ऐसा मज़ाक मत करना।
फिर वे अपने-अपने खेतों में लौट गए। चरवाहे बालक को गाँव के किसानों को भागते हुए अपने पास आता देखने में बड़ा मज़ा आया। उसके उनकी चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया। अगले दिन उसे फिर से मसखरी सूझी और वह फिर से चिल्लाने लगा, “भेड़िया आया भेड़िया आया।” खेत में काम कर रहे किसान अनहोनी की आशंका में फिर से दौड़े चले आये, जिन्हें देखकर चरवाहा बालक फिर से जोर-जोर से हंसने लगा।
किसानों ने उसे फिर से डांटा और चेतावनी दी। लेकिन उस पर इसका कोई असर नहीं हुआ। उसके बाद जब-तब वह किसानों को इसी तरह ‘भेड़िया आया भेड़िया आया’ कहकर बुलाता रहा। बालक के साथ कोई अनहोनी न हो जाये, ये सोचकर किसान भी आते रहे। लेकिन वे उसकी इस शरारत से बहुत परेशान होने लगे थे। एक दिन चरवाहा बालक पेड़ की छाया में बैठकर बांसुरी बजा रहा था कि सच में एक भेड़िया वहाँ आ गया।
वह सहायता के लिए चिल्लाने लगा, “भेड़िया आया भेड़िया आया।” लेकिन उसकी शरारतों से तंग आ चुके किसानों ने सोचा कि आज भी ये बालक उन्हें परेशान करने का प्रयास कर रहा है। इसलिए वे उसकी सहायता करने नहीं गए। भेड़िया उसकी कुछ भेड़ों को मारकर खा गया। चरवाहा बालक दौड़ते हुए खेत में काम कर रहे किसानों के पास पहुँचा और रोने लगा, “आज सचमुच भेड़िया आया था। वह मेरी कुछ भेड़ों को मारकर खा गया।”
किसान बोले, “तुम रोज़ हमारे साथ शरारत करते हो। हमें लगा कि आज भी तुम्हारा इरादा वही है। तुम हमारा भरोसा खो चुके थे। इसलिए हममें से कोई तुम्हारी मदद के लिए नहीं आया।” चरवाहे बालक को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने प्रण लिया कि वह फिर कभी झूठ नहीं बोलेगा और दूसरों को परेशान नहीं करेगा।
Moral of The Story – बार-बार झूठ बोलने से लोगों के विश्वास पर चोट पहुँचती है और उनका विश्वास टूट जाता है। किसी का विश्वासपात्र बनना है, तो हमेशा सच्चाई के साथ रहिये।
5. सोने का अंडा देने वाली मुर्गी (Short Story in Hindi with Moral)
एक गाँव में एक किसान अपनी पत्नि के साथ रहता था। उनका एक छोटा सा खेत था। जहाँ वे दिन भर परिश्रम किया करते थे। लेकिन कठोर परिश्रम करने के बाद भी कृषि से प्राप्त आमदनी उनके जीवन-यापन हेतु पर्याप्त नहीं थी और वे निर्धनता का जीवन व्यतीत करने हेतु विवश थे। एक दिन किसान बाज़ार से कुछ मुर्गियाँ ख़रीद लाया। उसकी योजना मुर्गियों के अंडे विक्रय कर अतिरिक्त धन उपार्जन था।
अपनी पत्नि के साथ मिलकर उसने घर के आंगन में एक छोटा सा दड़बा निर्मित किया और मुर्गियों को उसमें रख दिया। भोर होने पर जब उन्होंने दड़बे में झांककर देखा, तो आश्चर्यचकित रह गए। वहाँ अन्य अंडों के साथ एक सोने का अंडा भी पड़ा हुआ था। किसान उस सोने के अंडे को अच्छी कीमत पर जौहरी के पास बेच आया। अगले दिन फिर उन्होंने दड़बे में सोने का अंडा पाया।
किसान और उसकी पत्नि समझ गए कि उनके द्वारा पाली जा रही मुर्गियों में से एक मुर्गी अद्भुत है। वह सोने का अंडा देती है। एक रात पहरेदारी कर वे सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को पहचान गए। उसके बाद से वे उसका ख़ास ख्याल रखने लगे। उस मुर्गी से उन्हें रोज़ सोने का अंडा मिलने लगा। उन अंडों को बेचकर किसान कुछ ही महिनों में धनवान हो गया। किसान अपने जीवन से संतुष्ट था। लेकिन उसकी पत्नि लोभी प्रवृत्ति की थी।
एक दिन वह किसान से बोली, “आखिर कब तक हम रोज़ एक ही सोने का अंडा प्राप्त करते रहेंगे” क्यों न हम मुर्गी के पेट से एक साथ सारे अंडे निकाल लें? इस तरह हम उन्हें बेचकर एक बार में इतने धनवान हो जायेंगे कि हमारी सात पुश्तें आराम का जीवन व्यतीत करेंगी”। पत्नि की बात सुनकर किसान के मन में भी लोभ घर कर गया। उसने मुर्गी को मारकर उसके पेट से एक साथ सारे अंडे निकाल लेने का मन बना लिया।
वह बाज़ार गया और वहाँ से एक बड़ा चाकू ख़रीद लाया। फिर रात में अपनी पत्नि के साथ वह मुर्गियों के दड़बे में गया और सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को पकड़कर उसका पेट काट दिया। लेकिन मुर्गी भीतर से सामान्य मुर्गियों की तरह ही थी। उसके पेट में सोने के अंडे नहीं थे। किसान और उसकी पत्नि अपनी गलती पर पछताने लगे। अधिक सोने के अंडों के लोभ में पड़कर वे रोज़ मिलने वाले एक सोने के अंडे से भी हाथ धो बैठे थे।
Moral of The Story – लालच बुरी बला है।
6. मक्खियों और शहद की कहानी (Very Short Story in Hindi)
एक घर के किचन में शहद का जार रखा हुआ था, जिसमें मीठा शहद भरा हुआ था। एक दिन वह जार गिरकर टूट गया और उसमें भरा शहद फर्श पर फ़ैल गया। मक्खियों ने जब इतना सारा शहद देखा, तो लालच में शहद पर जा बैठी और शहद खाने लगी। उन्हें मज़ा सा रहा था और वे बड़ी खुश थी। बड़े दिनों बाद उन्हें ऐसे मीठा शहद का स्वाद चखने को मिला था।
उन्होंने जी भर शहद खाया। कुछ देर में जब उनका पेट भर गया, तो वे उड़ने को हुई। लेकिन वे पूरी तरह से शहद में लथपथ हो चुकी थीं। उनके पैर और पंख तरल और चिपचिपे शहद में चिपक गए थे और अब उड़ पाना उनके लिए नामुमकिन हो चुका था। मक्खियों ने उड़ने का बहुत प्रयास किया। लेकिन सारे प्रयास व्यर्थ रहे और वे सभी वहीं शहद में चिपककर मर गई।
Moral of The Story – कभी-कभी थोड़े समय का सुख मुसीबत का कारण बन जाता है।
7. लालची आदमी की कहानी (Top 10 Moral Stories in Hindi with Moral)
एक नगर में एक लालची आदमी रहता था। बहुत धन-संपदा होने के बाद भी उसे हर समय और अधिक धन प्राप्ति की लालसा रहती थी। एक बार नगर में एक चमत्कारी संत का आगमन हुआ। लोभी व्यक्ति को जब उनके चमत्कारों के बारे में ज्ञात हुआ, तो वह दौड़ा-दौड़ा उनके पास गया और उन्हें अपने घर आमंत्रित कर उनकी अच्छी सेवा-सुश्रुषा की। सेवा से प्रसन्न होकर नगर से प्रस्थान करने के पूर्व संत ने उसे चार दीपक दिए।
चारों दीपक देकर संत ने उसे बताया, “पुत्र! जब भी तुम्हें धन की आवश्यकता हो, तो पहला दीपक जला लेना और पूर्व दिशा में चलते जाना। जहाँ दीपक बुझ जाये, उस जगह की जमीन खोद लेना। वहाँ तुम्हें धन की प्राप्ति होगी। उसके उपरांत पुनः तुम्हें धन की आवश्यकता हुई, तो दूसरा दीपक जला लेना। जिसे लेकर पश्चिम दिशा में तब तक चलते जाना, जब तक वह बुझ ना जाये। उस स्थान से जमीन में गड़ी अपार धन-संपदा तुम्हें प्राप्त होगा।
धन की तुम्हारी आवश्यकता तब भी पूरी ना हो, तो तीसरा दीपक जलाकर दक्षिण दिशा में चलते जाना। जहाँ दीपक बुझे, वहाँ की जमीन खोदकर वहाँ का धन प्राप्त कर लेना। अंत में तुम्हारे पास एक दीपक और एक दिशा शेष रहेगी। किंतु तुम्हें न उस दीपक को जलाना है, न ही उस दिशा में जाना है।” इतना कहकर संत लोभी व्यक्ति के घर और उस नगर से प्रस्थान कर गए।
संत के जाते ही लोभी व्यक्ति ने पहला दीपक जला लिया और धन की तलाश में पूर्व दिशा की ओर चल पड़ा। एक जंगल में दीपक बुझ गया। वहाँ की खुदाई करने पर उसे एक कलश प्राप्त हुआ। वह कलश सोने के आभूषणों से भरा हुआ था। लोभी व्यक्ति ने सोचा कि पहले दूसरी दिशाओं का धन प्राप्त कर लेता हूँ, फिर यहाँ का धन ले जाऊँगा। वह कलश वहीं झाड़ियों में छुपाकर उसने दूसरा दीपक जलाया और पश्चिम दिशा की ओर चल पड़ा।
एक सुनसान स्थान में दूसरा दीपक बुझ गया। लोभी व्यक्ति ने वहाँ की जमीन खोदी। उसे वहाँ एक संदूक मिला, जो सोने के सिक्कों से भरा हुआ था। लोभी व्यक्ति ने वह संदूक उसी गड्ढे में बाद में ले जाने के लिए छोड़ दिया। अब उसने तीसरा दीपक जलाया और दक्षिण दिशा की ओर बढ़ गया। वह दीपक एक पेड़ के नीचे बुझा। वहाँ जमीन के नीचे लोभी व्यक्ति को एक घड़ा मिला, जिसमें हीरे-मोती भरे हुए थे।
इतना धन प्राप्त कर लोभी व्यक्ति प्रसन्न तो बहुत हुआ, किंतु उसका लोभ और बढ़ गया। वह अंतिम दीपक जलाकर उत्तर दिशा में जाने का विचार करने लगा, जिसके लिए उसे संत ने मना किया था। लेकिन लोभ में अंधे हो चुके व्यक्ति ने सोचा कि अवश्य उस स्थान पर इन स्थानों से भी अधिक धन छुपा होगा, जो संत स्वयं रखना चाहता होगा। मुझे तत्काल वहाँ जाकर उससे पहले उस धन को अपने कब्जे में ले लेना चाहिए।
उसके बाद सारा जीवन मैं ऐशो-आराम से बिताऊंगा। उसने अंतिम दीपक जला लिया और उत्तर दिशा में बढ़ने लगा। चलते-चलते वह एक महल के सामने पहुँचा। वहाँ पहुँचते ही दीपक बुझ गया। दीपक बुझने के बाद लोभी व्यक्ति ने महल का द्वार खोल लिया और महल के भीतर प्रवेश कर महल के कक्षों में धन की तलाश करने लगा। एक कक्ष में उसे हीरे-जवाहरातों का भंडार मिला, जिन्हें देख उसकी आँखें चौंधियां गई।
एक अन्य कक्ष में उसे सोने का भंडार मिला। अपार धन देख उसका लालच और बढ़ने लगा। कुछ आगे जाने पर उसे चक्की चलने की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह एक कक्ष से आ रही थी। आश्चर्यचकित होकर उसने उस कक्ष का द्वार खोल लिया। वहाँ उसे एक वृद्ध व्यक्ति चक्की पीसता हुआ दिखाई पड़ा। लोभी व्यक्ति ने उससे पूछा, “यहाँ कैसे पहुँचे बाबा?”
फिर वृद्ध व्यक्ति बोला “क्या थोड़ी देर तुम चक्की चलाओगे? मैं ज़रा सांस ले लूं। फिर तुम्हें पूरी बात बताता हूँ कि मैं यहाँ कैसे पहुँचा और मुझे यहाँ क्या मिला?” लोभी व्यक्ति ने सोचा कि वृद्ध व्यक्ति से यह जानकारी प्राप्त हो जायेगी कि इस महल में धन कहाँ-कहाँ छुपा है और उसकी बात मानकर वह चक्की चलाने लगा। इधर वृद्ध व्यक्ति उठ खड़ा हुआ और जोर-जोर से हँसने लगा।
उसे हँसता देख लोभी व्यक्ति ने पूछा, “ऐसे क्यों हंस रहे हो?” यह कहकर वह चक्की बंद करने लगा। “अरे अरे, चक्की बंद मत करना। अबसे ये महल तेरा है। इस पर अब तेरा अधिकार है और साथ ही इस चक्की पर भी। ये चक्की तुम्हें अब हर समय चलाते रहना है क्योंकि चक्की बंद होते ही ये महल ढह जायेगा और तू इसमें दब कर मर जायेगा।”
गहरी सांस लेकर वृद्ध व्यक्ति आगे बोला, “संत की बात न मानकर मैं भी लोभवश आखिरी दीपक जलाकर इस महल में पहुँच गया था। तब से यहाँ चक्की चला रहा हूँ। मेरी पूरी जवानी चक्की चलाते-चलाते निकल गई।” इतना कहकर वृद्ध व्यक्ति वहाँ से जाने लगा। “जाते-जाते ये बताते जाओ कि इस चक्की से छुटकारा कैसे मिलेगा?” लोभी व्यक्ति पीछे से चिल्लाया।
“जब तक मेरे और तुम्हारे जैसा कोई व्यक्ति लोभ में अंधा होकर यहाँ नहीं आयेगा, तुम्हें इस चक्की से छुटकारा नहीं मिलेगा।” इतना कहकर वृद्ध व्यक्ति चला गया। लोभी व्यक्ति चक्की पीसता और खुद को कोसता रह गया।
Moral of The Story – लालच बुरी बला है। इसलिए लालच कभी न करें।
8. राजा का प्रश्न (Short Top 10 Moral Stories in Hindi)
बहुत समय पहले की बात है। एक राज्य में एक राजा का राज था। वह अक्सर सोचा करता था कि मैं राजा क्यों बना? एक दिन इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने उसने अपने राज्य के बड़े-बड़े ज्योतिषियों को आमंत्रित किया। ज्योतिषियों के दरबार में उपस्थित होने पर राजा ने यह प्रश्न उनके सामने रखा, “जिस समय मेरा जन्म हुआ, ठीक उसी समय कई अन्य लोगों का भी जन्म हुआ होगा। उन सबमें मैं ही राजा क्यों बना?”
इस प्रश्न का उत्तर दरबार में उपस्थित कोई भी ज्योतिषी नहीं दे सका। एक बूढ़े ज्योतिषी ने राजा को सुझाया कि राज्य के बाहर स्थित वन में रहने वाले एक महात्मा कदाचित उसके प्रश्न का उत्तर दे सकें। राजा तुरंत उस महात्मा से मिलने वन की ओर निकल पड़ा। जब वह महात्मा के पास पहुँचा, तो देखा कि वो अंगारे खा रहे है। राजा घोर आश्चर्य में पड़ गया। लेकिन उस समय राजा की प्राथमिकता अपने प्रश्न का उत्तर प्राप्त करना था।
इसलिए उसने इधर-उधर की कोई बात किये बिना अपना प्रश्न महात्मा के सामने रख दिया। प्रश्न सुन महात्मा ने कहा, “राजन! इस समय मैं भूख से बेहाल हूँ। मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकता। कुछ दूरी पर एक पहाड़ी है। उसके ऊपर एक और महात्मा तुम्हें मिलेंगे। वे तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे देंगे। तुम उनसे जाकर मिलो।” राजा बिना समय व्यर्थ किये पहाड़ी पर पहुँचा।
वहाँ भी उसके आश्चर्य की सीमा नहीं रही, जब उसने देखा कि वहाँ वह महात्मा चिमटे से नोंच-नोंचकर अपना ही मांस खा रहे हैं। राजा ने उनके समक्ष वह प्रश्न दोहराया। प्रश्न सुनकर महात्मा बोले, “राजन! मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकता। मैं भूख से तड़प रहा हूँ। इस पहाड़ी ने नीचे एक गाँव है। वहाँ 5 वर्ष का एक बालक रहता है। वह कुछ ही देर में मरने वाला है। तुम उसकी मृत्यु पूर्व उससे अपने प्रश्न का उत्तर प्राप्त कर लो।”
राजा गाँव में जाकर उस बालक से मिला। वह बालक मरने की कगार पर था। राजा का प्रश्न सुन वह हंसने लगा। एक मरते हुए बालक को हँसता देख राजा चकित रह गया। किंतु वह शांति से अपने पूछे गए प्रश्न के उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा। बालक बोला, “राजन! पिछले जन्म में मैं, तुम और वो दो महात्मा, जिनसे तुम पहले मिल चुके हो, भाई थे। एक दिन हम सभी भाई भोजन कर रहे थे कि एक साधु हमारे पास आकर भोजन माँगने लगा।
सबसे बड़े भाई ने उससे कहा कि तुम्हें भोजन दे दूँगा, तो क्या मैं अंगारे खाऊँगा? और आज वह अंगारे खा रहा है। दूसरे भाई ने कहा कि तुम्हें भोजन दे दूँगा, तो क्या मैं अपना मांस नोचकर खाऊँगा? और आज वह अपना ही मांस नोंचकर खा रहा है। साधु ने जब मुझसे भोजन माँगा, तो मैंने कहा कि तुम्हें भोजन देकर क्या मैं भूखा मरूँगा? और आज मैं मरने की कगार पर हूँ। लेकिन तुमने दया दिखाते हुए उस साधु को अपना भोजन दे दिया।
उस पुण्य का ही प्रताप है कि इस जन्म में तुम राजा बने।” इतना कहकर बालक मृत्यु को प्राप्त हो गया। राजा को अपने प्रश्न का उत्तर मिल चुका था। वह अपने राज्य की ओर चल पड़ा।
Moral of The Story – अच्छे कर्म का अच्छा फल मिलता है। इसलिए सदा सद्कर्म करो और जहाँ तक संभव हो, दूसरों की सहायता करो।
9. चार मोमबत्तियाँ (Top 10 Moral Stories in Hindi)
रात का समय था। चारों ओर अँधेरा छाया हुआ था। केवल एक ही कमरा प्रकाशित था। वहाँ चार मोमबत्तियाँ जल रही थी। चारों मोमबत्तियाँ एकांत देख आपस में बातें करने लगी। पहली मोमबत्ती बोली, “मैं शांति हूँ। जब मैं इस दुनिया को देखती हूँ, तो बहुत दु:खी होती हूँ, चारों ओर आपा-धापी, लूट-खसोट और हिंसा का बोलबाला है। ऐसे में यहाँ रहना बहुत मुश्किल है। मैं अब यहाँ और नहीं रह सकती।” इतना कहकर मोमबत्ती बुझ गई।
दूसरी मोमबत्ती भी अपने मन की बात कहने लगी, “मैं विश्वास हूँ। मुझे लगता है कि झूठ, धोखा, फरेब, बेईमानी मेरा वजूद ख़त्म करते जा रहे हैं। ये जगह अब मेरे लायक नहीं रही। मैं भी जा रही हूँ।” इतना कहकर दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गई। तीसरी मोमबत्ती भी दु:खी थी। वह बोली, “मैं प्रेम हूँ। मैं हर किसी के लिए हर पल जल सकती हूँ। लेकिन अब किसी के पास मेरे लिए वक़्त नहीं बचा। स्वार्थ और नफरत का भाव मेरा स्थान लेता जा रहा है।
लोगों के मन में अपनों के प्रति भी प्रेम-भावना नहीं बची। अब ये सहना मेरे बस की बात नहीं। मेरे लिए जाना ही ठीक होगा।” कहकर तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गई। तीसरी बत्ती बुझी ही थी कि कमरे में एक बालक ने प्रवेश किया। मोमबत्तियों को बुझा हुआ देख उसे बहुत दुःख हुआ। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। दु:खी मन से वो बोला, “इस तरह बीच में ही मेरे जीवन में अंधेरा कर कैसे जा सकती हो तुम। तुम्हें तो अंत तक पूरा जलना था।
लेकिन तुमने मेरा साथ छोड़ दिया। अब मैं क्या करूंगा?” बालक की बात सुन चौथी मोमबत्ती बोली, “घबराओ नहीं बालक, मैं आशा हूँ और मैं तुम्हारे साथ हूँ। जब तक मैं जल रही हूँ, तुम मेरी लौ से दूसरी मोमबत्तियों को जला सकते हो।” चौथी मोमबत्ती की बात सुनकर बालक का ढाढस बंध गया. उसने आशा के साथ शांति, विश्वास और प्रेम को पुनः प्रकाशित कर लिया।
Moral of The Story – जीवन में समय एक सा नहीं रहता। कभी उजाला रहता है, तो कभी अँधेरा। जब जीवन में अंधकार आये, मन अशांत हो जाये, विश्वास डगमगाने लगे और दुनिया पराई लगने लगे। तब आशा का दीपक जला लेना। जब तक आशा का दीपक जलता रहेगा, जीवन में कभी अँधेरा नहीं हो सकता। आशा के बल पर जीवन में सबकुछ पाया जा सकता है। इसलिए आशा का साथ कभी ना छोड़े।
10. परमात्मा और किसान (Small Moral Stories in Hindi)
एक गाँव में एक किसान रहता था। वह दिन भर खेत में मेहनत कर उसमें उपजी फ़सल से अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। लेकिन कुछ वर्षों से मौसम की मार के कारण उसके खेत में अच्छी फ़सल नहीं हो पा रही थी। कभी बाढ़, तो कभी ओले, तो कभी सूखे से उसकी फ़सल बर्बाद हो रही थी। इस कारण वह बड़ा दु:खी रहा करता था। एक दिन दु:खी होकर वह परमात्मा को कोस रहा था।
तभी परमात्मा ने उसे दर्शन दिए और उसके दुःख का कारण पूछा। किसान बोला, “भगवन्, आपको खेती की कोई जानकारी नहीं है। आपके कारण हर साल मेरी फ़सल बर्बाद हो जाती है और मेरे परिवार के सामने भूखे मरने की नौबत आ जाती हैं। एक साल मेरे हाथ में मौसम को नियंत्रित करने की शक्ति दे दीजिये। फिर देखिये कैसे मैं फ़सल लहलहाता हूँ और अन्न के भंडार भर देता हूँ।”
परमात्मा बोले, “ठीक है। आज से तुम ही मौसम को नियंत्रित करो। मैं इसमें कोई दखल नहीं दूँगा।” किसान बहुत ख़ुश हुआ। उसने उस साल गेहूँ की फसल बोई। मौसम का पूरा नियंत्रण उसके हाथों में था। उसने धूप, पानी सब अपने हिसाब से आने दी। तेज धूप, अंधड़, अति-वर्षा, ओले आदि से उसने अपनी फ़सल को बचाये रखा। समय के साथ फ़सल बढ़ने लगी। फसल देख किसान झूम उठा। क्योंकि इतनी अच्छी फ़सल उसके खेत में कभी हुई ही नहीं थी।
जब कटाई का समय आया, तो वह बहुत उत्साहित था। वह मन ही मन सोचने लगा कि अब भगवान को पता चलेगा कि फ़सल कैसे ली जाती है। इतने साल वे हम किसानों को यूं ही परेशान करते रहे। फ़सल कटाई का समय आने पर किसान ने फ़सल की कटाई की, तो गेहूँ की बालियाँ देख उसके होश उड़ गए। एक भी बाली के अंदर गेंहूँ नहीं था। वह विलाप करते हुए परमात्मा को याद करने लगा। परमात्मा प्रकट हुए, तो वह बोला, “हे भगवान, ये मेरी फ़सल को ये क्या हुआ?”
परमात्मा बोले, “इस बार सब कुछ तुम्हारे नियंत्रण में था। तुमने हवा, पानी, धूप सब कुछ तो फ़सल के अनुकूल रखी। फिर भी वह खोखली रह गई। जानते हो क्यों? इसका कारण है कि तुमने फ़सल को संघर्ष का अवसर ही नहीं दिया। न वह कड़ी धूप में तपी, न ही बारिश की तेज बौछारों को सहा, न ही वह तूफानी अंधड़ से जूझी। इस कारण वे खोखली रह गई।
कड़ी धूप, तेज वर्षा, आंधी-तूफ़ान जैसी चुनौतियों के आगे फ़सल खुद को बचाने संघर्ष करती हैं। इन चुनौतियों का सामना करने से जिस शक्ति और ऊर्जा का संचार उनमें होता है, वही अंततः अन्न के रूप में उनकी बालियों में संग्रहित होता है। इस बार बिना संघर्ष के वे खोखली रह गई।”
Moral of The Story – जीवन में चुनौतियाँ और संघर्ष अति-आवश्यक है। चुनौतियाँ से जूझने और संघर्ष करने से हममें कई आंतरिक गुणों का विकास होता है। हम साहसी, जुझारू और आत्मविश्वासी बनते हैं।
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