Best 25+ Panchatantra Short Stories in Hindi with Moral | पंचतंत्र की कहानियां

Panchatantra Short Stories in Hindi with Moral: नमस्कार दोस्तों आज हम पंचतंत्र की कहानियाँ के बारे में पढ़ेंगे। पंचतंत्र की कहानियां बहुत ही प्रसिद्ध है और लोगों को ये कहानियां पढ़ना अच्छा लगता है। बच्चे और बड़े सभी इनको पढ़ने में रूचि रखते है। तो आए जानते है पंचतंत्र की कहानियों के बारे में।

Table of Contents

1. ख़रगोश, तीतर और धूर्त बिल्ली (Panchatantra Stories in Hindi)

Panchatantra stories in hindi

दूरस्थ वन में एक ऊँचे पेड़ की खोह में कपिंजल नामक तीतर का निवास था। कई वर्षों से वह वहाँ आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा था। एक दिन भोजन की ख़ोज में वह अपना खोह छोड़ निकला और एक हरे-भरे खेत में पहुँच गया। वहाँ हरी-भरी कोपलें देख उसका मन ललचा गया और उसने कुछ दिन उसी खेत में रहने का निर्णय किया। कोपलों से रोज़ अपना पेट भरने के पश्चात् वह वहीं सोने लगा। 

कुछ ही दिनों में खेत की हरी-भरी कोपलें खाकर कपिंजल मोटा-ताज़ा हो गया। लेकिन पराया स्थान पराया ही होता है। उसे अपने खोह की याद सताने लगी। वापसी का मन बना वह अपने खोह की ओर चल पड़ा। खोह पहुँचकर उसने वहाँ एक ख़रगोश को वास करते हुए पाया। 

कपिंजल की अनुपस्थिति में एक दिन ‘शीघ्रको’ नामक ख़रगोश उस पेड़ पर आया और खाली खोह देख वहीं मज़े से रहने लगा। अपने खोह में शीघ्रको का कब्ज़ा देख कपिंजल क्रोधित हो गया। उसे भगाते हुए वह बोला, “चोर, तुम मेरे खोह में क्या कर रहे हो? मैं कुछ दिन बाहर क्या गया। तुमने इसे अपना निवास बना लिया। अब मैं वापस आ गया हूँ। चलो भागो यहाँ से।”

लेकिन शीघ्रको टस से मस नहीं हुआ और अकड़कर बोला, “तुम्हारा खोह? कौन सा? अब यहाँ मैं रहता हूँ। ये मेरा निवास है। इसे छोड़कर जाने के उपरांत तुम इस पर से अपना अधिकार खो चुके हो। इसलिये तुम यहाँ से भागो।”

कपिंजल ने कुछ देर विचार किया। उसे शीघ्रको से विवाद बढ़ाने में कोई औचित्य दिखाई नहीं पड़ा। वह बोला, “हमें इस विवाद के निराकरण के लिए किसी मध्यस्थ के पास चलना चाहिए। अन्यथा यह बिना परिणाम के बढ़ता ही चला जायेगा। मध्यस्थ हम दोनों का पक्ष सुनने के पश्चात जो भी निर्णय देगा, हम उसे स्वीकार कर लेंगे।”

शीघ्रको को भी कपिंजल की बात उचित प्रतीत हुई और दोनों मध्यस्थ की खोज में निकल पड़े। जब कपिंजल और शीघ्रको में मध्य ये वार्तालाप चल रहा था, ठीक उसी समय एक जंगली बिल्ली वहाँ से गुजर रही थी। उसने दोनों की बातें सुन ली और सोचा क्यों ना स्थिति का लाभ उठाते हुए मैं इन दोनों की मध्यस्थ बन जाऊं। 

जैसे ही अवसर मिलेगा, मैं इन्हें मारकर खा जाऊँगी। वह तुरंत पास बहती एक नदी के किनारे माला लेकर बैठ गई और सूर्य की ओर मुख कर ऑंखें बंद कर धर्मपाठ करने का दिखावा करने लगी। कपिंजल और शीघ्रको मध्यस्थ की खोज करते-करते नदी किनारे पहुँचे। धर्मपाठ करती बिल्ली को देख उन्होंने सोचा कि ये अवश्य कोई धर्मगुरु है। न्याय के लिए उन्हें उससे परामर्श लेना उचित प्रतीत हुआ। 

वे कुछ दूरी पर खड़े हो गए और बिल्ली को अपनी समस्या बताकर अनुनय करने लगे, “गुरूवर, कृपया हमारे विवाद का निपटारा कर दीजिये। हमें विश्वास है कि आप जैसे धर्मगुरू का निर्णय धर्म के पक्ष में ही होगा। इसलिए आपका निर्णय हर स्थिति में हमें स्वीकार्य है। हममें से जिसका भी पक्ष धर्म विरूद्ध हुआ, वो आपका आहार बनने के लिए तैयार रहेगा।”

अनुनय सुन धर्मगुरू बनी पाखंडी बिल्ली ने आँखें खोल ली और बोली, “राम राम ! कैसी बातें करते हो? हिंसा का मार्ग त्याग कर मैंने धर्म का मार्ग अपना लिया है। इसलिए मैं हिंसा नहीं करूंगी। लेकिन तुम्हारे विवाद का निराकरण कर तुम्हारी सहायता अवश्य करुँगी। मैं वृद्ध हो चुकी हूँ और मेरी श्रवण शक्ति क्षीण हो चुकी है। 

इसलिए मेरे निकट आकर मुझे अपना-अपना पक्ष बताओ।” पाखंडी बिल्ली की चिकनी-चुपड़ी बातों पर कपिंजल और शीघ्रको विश्वास कर बैठे और अपना पक्ष बताने उसके निकट पहुँच गये। निकट पहुँचते ही पाखंडी बिल्ली ने शीघ्रको को पंजे में दबोच लिया और कपिंजल को अपने मुँह में दबा लिया। कुछ ही देर में दोनों को सफाचट कर पाखंडी बिल्ली वहाँ से चलती बनी। 

Moral – अपने शत्रु पर कभी भी आँख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए। परिणाम घातक हो सकता है। 

2. साधु और चूहा (Panchatantra Story in Hindi)

Panchatantra story in hindi

दक्षिण भारत के महिलारोप्य नामक नगर में भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर था। मंदिर की देखभाल, पूजा-पाठ और अन्य समस्त कार्यों की ज़िम्मेदारी एक साधु के जिम्मे थी, जो उसी मंदिर के प्रांगण में स्थित एक कक्ष में रहा करता था। साधु की दिनचर्या भोर होते ही प्रारंभ हो जाती, जब वह स्नान कर मंदिर में आरती संपन्न करता और फ़िर गाँव में भिक्षा मांगने निकल जाता। 

गाँव के लोग साधु को बहुत मानते थे, इसलिए भिक्षा में अपने सामर्थ्य से अधिक ही दिया करते थे। साधु भिक्षा में प्राप्त अनाज से स्वयं के लिए भोजन बनाता, कुछ मंदिर में काम करने वाले निर्धन मजदूरों में बांट देता और शेष एक पात्र में सुरक्षित रख देता था। 

उसी मंदिर के प्रांगण में एक चूहा भी बिल बनाकर रहता था। वह रोज़ रात साधु के कक्ष में आता और पात्र में रखे अनाज में से कुछ अनाज चुरा लेता। जब साधु को चूहे की करतूत के बारे में ज्ञात हुआ, तो वह पात्र को एक ऊँचे स्थान पर लटकाकर रखने लगा। लेकिन इसके बाद भी चूहा किसी न किसी तरह पात्र तक पहुँच जाता। 

उसमें इतनी शक्ति थी कि वह छलांग लगाकर इतनी ऊँचाई पर रखे पात्र तक आसानी से पहुँच जाता था। इसलिए चूहे को भगाने के लिए साधु अपने साथ एक छड़ी रखने लगा। जब भी चूहा पात्र के पास पहुँचने का प्रयास करता, वह छड़ी से वार कर उसे भगाने का प्रयास करता। हालांकि, बहुत प्रयासों के बाजवूद अवसर पाकर चूहा कुछ न कुछ पात्र से चुरा ही लेता था। 

एक दिन एक सन्यासी मंदिर में दर्शन के लिए आये. वे साधु से मिलने उसके कक्ष में गए। साधु ने उनका स्वागत किया और दोनों बैठकर वार्तालाप करने लगे। लेकिन साधु का पूरा ध्यान सन्यासी की बातों में नहीं था। वह हाथ में छड़ी पकड़े हुए था और उससे बार-बार जमीन को ठोक रहा था। 

अपनी बातों के प्रति साधु का विरक्त भाव देख सन्यासी गुस्सा हो गए और बोले, “प्रतीत होता है कि मेरे आगमन से तुम्हें कोई प्रसन्नता नहीं हुई। मुझसे भूल हो गई, जो मैं तुमसे मिलने आ गया। अब मैं कभी यहाँ नहीं आऊँगा।”

सन्यासी का गुस्सा देख साधु क्षमा मांगने लगा, “क्षमा गुरुवर क्षमा, मैं कई दिनों से एक चूहे से परेशान हूँ। जो रोज़ मेरे द्वारा भिक्षा में लाये अनाज को चुरा लेता है। अनाज के पात्र को ऊँचे स्थान पर लटकाकर मैं छड़ी से जमीन को ठोकता रहता हूँ, ताकि चूहा डर से यहाँ न आये। लेकिन वह किसी न किसी तरह पात्र में से अन्न चुरा ही लेता है। 

उस चूहे के कारण मैं आपकी ओर पूर्णत: ध्यान नहीं दे पाया। क्षमा करें।” सन्यासी साधु की परेशानी समझ गया और बोला, “अवश्य ही वह चूहा शक्तिशाली है, तभी इतनी ऊँचाई पर रखे पात्र तक छलांग लगाकर अन्न चुरा लेता है। हमें उसकी शक्ति के पीछे का रहस्य पता करना होगा।” “शक्ति का रहस्य?” साधु बोला। 

“हाँ, उस चूहे ने अवश्य कहीं अनाज संचित कर रखा होगा। वही उसके आत्मविश्वास का कारण है। उससे ही उसका भयहीन है और शक्ति का अनुभव करता है और इतना ऊँचा कूद पाता है।” साधु और सन्यासी इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि किसी भी तरह चूहे के बिल को ढूँढना होगा और उसके अनाज के भंडार तक पहुँचना होगा। 

अगली सुबह दोनों ने चूहे का पीछा करने का निश्चय किया। प्रातः दोनों चूहे का पीछा करते हुए उसके बिल के प्रवेश द्वार तक पहुँच गए। सन्यासी ने साधु से कहा, “इस बिल की खुदाई करो।” साधु ने कुछ मजदूरों को बुलवाया। फिर उस समय जब चूहा बिल में नहीं था, मजदूरों द्वारा बिल की ख़ुदाई की गई। 

खुदाई में वहाँ अनाज का विशाल भंडार मिला, जो चूहे द्वारा चुराकर वहाँ एकत्रित किया गया था। सन्यासी के कहने पर साधु ने वह सारा अनाज वहाँ से हटवा दिया। इधर जब चूहा अपने बिल में लौटा, तो सारा अनाज नदारत देख दु:खी हो गया। उसका सारा आत्मविश्वास चला गया। कुछ दिनों तक वह साधु के पात्र में से अनाज चुराने नहीं गया। लेकिन वह कब तक भूखा रहता?

एक दिन अपना आत्मविश्वास बटोरकर वह साधु के कक्ष में गया और वहाँ छत पर लटके अनाज के पात्र तक पहुँचने के लिए छलांग लगाने लगा। लेकिन उसकी शक्ति क्षीण हो चुकी थी। कई बार छलांग लगाने पर भी वह पात्र तक पहुँच नहीं पाया। अवसर देख साधु ने उस पर छड़ी से ज़ोरदार वार किया। 

चूहा किसी तरह अपने प्राण बचाकर घायल अवस्था में वहाँ से भागा। उसके बाद वह कभी न मंदिर गया न ही साधु के कक्ष। 

3. भेड़िया और शेर की कहानी (Panchatantra Short Stories in Hindi with Moral)

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जंगल किनारे स्थित चारागाह में भेड़िये की कई दिनों से नज़र थी। वहाँ चरती भेड़ों को देखकर उसके मुँह से लार टपकने लगती और वह अवसर पाकर उन्हें चुराने की फ़िराक़ में था। एक दिन उसे यह अवसर मिल ही गया। वह चुपचाप चारागाह में चरते एक मेमने को उठा लाया। खुशी-खुशी वह जंगल की ओर भागा जा रहा था और मेमने के स्वादिष्ट मांस के स्वाद की कल्पना कर रहा था।

तभी एक शेर उसके रास्ते में आ गया। शेर भी भोजन की तलाश में निकला था। भेड़िये को मेमना लेकर आता देख उसने उसका रास्ता रोका और इसके मुँह में दबा मेमना छीनकर जाने लगा। भेड़िया पीछे से चिल्लाया, “ये तो गलत बात है। ये मेरा मेमना था। इसे तुम इस तरह छीन कर नहीं ले जा सकते।”

भेड़िये की बात सुनकर शेर पलटा और बोला, “तुम्हारा मेमना! क्यों क्या चरवाहे ने इसे तुम्हें उपहार में दिया था? तुम खुद इसे चरागाह से चुराकर लाये हो, तो इस पर अधिकार कैसे जता सकते हो? फिर भी यदि यह चारागाह से चुराने के बाद यह तुम्हारा मेमना बन गया था, तो तुमसे छीन लेने के बाद अब ये मेरा मेमना बन गया है। मुझसे छीन सकते हो, तो छीन लो।”

भेड़िया जानता था कि शेर से पंगा लेना जान से हाथ गंवाना हैं। इसलिए वह अपना सा मुँह लेकर वहाँ से चला गया।

Moral – गलत तरीके से प्राप्त की गई वस्तु उसी तरीके से हाथ से निकल जाती है।

4. कौवा और सांप की कहानी (Hindi Panchatantra Short Stories with Moral)

Hindi panchatantra short stories with moral

नगर के पास बरगद के पेड़ पर एक घोंसला था। जिसमें वर्षों से कौवा और कौवी का एक जोड़ा रहा करता था। दोनों वहाँ सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे थे। दिन भर भोजन की तलाश में वे बाहर रहते और शाम ढलने पर घोंसले में लौटकर आराम करते। एक दिन एक काला सांप भटकते हुए उस बरगद के पेड़ के पास आ गया। 

पेड़ के तने में एक बड़ा खोल देख वह वहीं निवास करने लगा। कौवा-कौवी इस बात से अनजान थे। उनकी दिनचर्या यूं ही चलती रही। मौसम आने पर कौवी ने अंडे दिए। कौवा और कौवी दोनों बड़े प्रसन्न थे और अपने नन्हे बच्चों के अंडों से निकलने की प्रतीक्षा कर रहे थे। 

लेकिन एक दिन जब वे दोनों भोजन की तलाश में निकले, तो अवसर पाकर पेड़ की खोल में रहने वाले सांप ने ऊपर जाकर उनके अंडों को खा लिया और चुपचाप अपनी खोल में आकर सो गया। कौवा-कौवी ने लौटने पर जब अंडों को घोंसलों में नहीं पाया, तो बहुत दु:खी हुए। 

उसके बाद से जब भी कौवी अंडे देती, सांप उन्हें खाकर अपनी भूख मिटा लेता। कौवा-कौवी रोते रह जाते। मौसम आने पर कौवी ने फिर से अंडे दिए। लेकिन इस बार वे सतर्क थे। वे जानना चाहते थे कि आखिर उनके अंडे कहाँ गायब हो जाते हैं। योजनानुसार एक दिन वे रोज़ की तरह घोंसले से बाहर निकले और दूर जाकर पेड़ के पास छुपकर अपने घोंसले की निगरानी करने लगे। 

कौवा-कौवी को बाहर गया देख काला सांप पेड़ की खोल से निकला और घोंसले में जाकर अंडों को खा गया। आँखों के सामने अपने बच्चों को मरते देख कौवा-कौवी तड़प कर रह गए। वे सांप का सामना नहीं कर सकते थे। वे उसकी तुलना में कमज़ोर थे। इसलिए उन्होंने अपने वर्षों पुराने निवास को छोड़कर अन्यत्र जाने का निर्णय किया। 

जाने के पूर्व वे अपने मित्र गीदड़ से अंतिम बार भेंट करने पहुँचे। गीदड़ को पूरा वृतांत सुनाकर जब वे विदा लेने लगे, तो गीदड़ बोला, “मित्रों, इन तरह भयभीत होकर अपना वर्षों पुराना निवास छोड़ना उचित नहीं है। समस्या सामने है, तो उसका कोई न कोई हल अवश्य होगा।” कौवा बोला, “मित्र, हम कर भी क्या सकते हैं। 

उस दुष्ट सांप की शक्ति के सामने हम निरीह हैं। हम उसका मुकाबला नहीं कर सकते। अब कहीं और जाने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं है। हम हर समय अपने बच्चों को मरते हुए नहीं देख सकते।” गीदड़ कुछ सोचते हुए बोला, “मित्रों, जहाँ शक्ति काम न आये, वहाँ बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए।” यह कहकर उसने सांप से छुटकारा पाने की एक योजना कौवा-कौवी को बताई। 

अगले दिन योजनानुसार कौवा-कौवी नगर ने सरोवर में पहुँचे, जहाँ राज्य की राजकुमारी अपने सखियों के साथ रोज़ स्नान करने आया करती थी। उन दिन भी राजकुमारी अपने वस्त्र और आभूषण किनारे रख सरोवर में स्नान कर रही थी। पास ही सैनिक निगरानी कर रहे थे। 

अवसर पाकर कौवे ने राजकुमारी का हीरों का हार अपनी चोंच में दबाया और काव-काव करता हुआ राजकुमारी और सैनिकों के दिखाते हुए ले उड़ा। कौवे को अपना हार ले जाते देख राजकुमारी चिल्लाने लगी। सैनिक कौवे के पीछे भागे। वे कौवे के पीछे-पीछे बरगद के पेड़ के पास पहुँच गए। कौवा यही तो चाहता था। 

राजकुमारी का हार पेड़ के खोल में गिराकर वह उड़ गया। सैनिकों ने यह देखा, तो हार निकालने पेड़ की खोल के पास पहुँचे। हार निकालने उन्होंने खोल में एक डंडा डाला। उस समय सांप खोल में ही आराम कर रहा था। डंडे के स्पर्श पर वह फन फैलाये बाहर निकला। 

सांप को देख सैनिक हरक़त में आ गए और उसे तलवार और भले से मार डाला। सांप के मरने के बाद कौवा-कौवी ख़ुशी-ख़ुशी अपने घोंसले में रहने लगे। उस वर्ष जब कौवी ने अंडे दिए, तो वे सुरक्षित रहे। 

Moral – जहाँ शारीरिक शक्ति काम न आये, वहाँ बुद्धि से काम लेना चाहिए। 

5. राजा की चिंता (Panchatantra Stories in Hindi with Moral)

Panchatantra stories in hindi with moral

प्राचीन समय की बात है। एक राज्य में एक राजा राज करता था। उसका राज्य ख़ुशहाल था। धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी। राजा और प्रजा ख़ुशी-ख़ुशी अपना जीवन-यापन कर रहे थे। एक वर्ष उस राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। पानी की कमी से फ़सलें सूख गई। ऐसी स्थिति में किसान राजा को लगान नहीं दे पाए। लगान प्राप्त न होने के कारण राजस्व में कमी आ गई और राजकोष खाली होने लगा। यह देख राजा चिंता में पड़ गया। 

हर समय वह सोचता रहता कि राज्य का खर्च कैसे चलेगा? अकाल का समय निकल गया। स्थिति सामान्य हो गई।किंतु राजा के मन में चिंता घर कर गई। हर समय उसके दिमाग में यही रहता कि राज्य में पुनः अकाल पड़ गया, तो क्या होगा? इसके अतिरिक्त भी अन्य चिंताएँ उसे घेरने लगी। 

पड़ोसी राज्य का भय, मंत्रियों का षड़यंत्र जैसी कई चिंताओं ने उसकी भूख-प्यास और रातों की नींद छीन ली। वह अपनी इस हालत से परेशान था। लेकिन जब भी वह राजमहल के माली को देखता, तो आश्चर्य में पड़ जाता। दिन भर मेहनत करने के बाद वह रूखी-सूखी रोटी भी छक्कर खाता और पेड़ के नीचे मज़े से सोता। कई बार राजा को उससे जलन होने लगती। 

एक दिन उसके राजदरबार में एक सिद्ध साधु पधारे। राजा ने अपनी समस्या साधु को बताई और उसे दूर करने सुझाव माँगा। साधु राजा की समस्या अच्छी तरह समझ गए थे। वे बोले, “राजन! तुम्हारी चिंता की जड़ राज-पाट है।अपना राज-पाट पुत्र को देकर चिंता मुक्त हो जाओ।” इस पर राजा बोला, “गुरुवर! मेरा पुत्र मात्र पांच वर्ष का है। वह अबोध बालक राज-पाट कैसे संभालेगा?”

फिर साधु बोले “तो फिर ऐसा करो कि अपनी चिंता का भार तुम मुझे सौंप दो।” राजा तैयार हो गया और उसने अपना राज-पाट साधु को सौंप दिया। इसके बाद साधु ने पूछा, “अब तुम क्या करोगे?” राजा बोला, “सोचता हूँ कि अब कोई व्यवसाय कर लूं।” “लेकिन उसके लिए धन की व्यवस्था कैसे करोगे? अब तो राज-पाट मेरा है। राजकोष के धन पर भी मेरा अधिकार है।”

राजा ने उत्तर दिया “तो मैं कोई नौकरी कर लूँगा।” “ये ठीक है। लेकिन यदि तुम्हें नौकरी ही करनी है, तो कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं। यहीं नौकरी कर लो। मैं तो साधु हूँ। मैं अपनी कुटिया में ही रहूँगा। राजमहल में ही रहकर मेरी ओर से तुम ये राज-पाट संभालना।” राजा ने साधु की बात मान ली और साधु की नौकरी करते हुए राजपाट संभालने लगा। साधु अपनी कुटिया में चले गए। 

कुछ दिन बाद साधु पुनः राजमहल आये और राजा से भेंट कर पूछा, “कहो राजन! अब तुम्हें भूख लगती है या नहीं और तुम्हारी नींद का क्या हाल है?” “गुरुवर! अब तो मैं खूब खाता हूँ और गहरी नींद सोता हूँ। पहले भी मैं राजपाट का कार्य करता था, अब भी करता हूँ। फिर ये परिवर्तन कैसे? ये मेरी समझ के बाहर है।” राजा ने अपनी स्थिति बताते हुए प्रश्न भी पूछ लिया। 

साधु मुस्कुराते हुए बोले, “राजन! पहले तुमने काम को बोझ बना लिया था और उस बोझ को हर समय अपने मानस-पटल पर ढोया करते थे। लेकिन राजपाट मुझे सौंपने के उपरांत तुम समस्त कार्य अपना कर्तव्य समझकर करते हो। इसलिए चिंतामुक्त हो।”

Moral – जीवन में जो भी काम करें, अपना कर्त्तव्य समझकर करें, न कि बोझ समझकर। यही चिंता से दूर रहने का तरीका है। 

6. ब्राह्मण और सर्प की कथा | पंचतंत्र की कहानी

Panchatantra ki kahani

बहुत समय पहले की बात है। एक गाँव में हरिदत्त नामक एक ब्राह्मण रहता था। गाँव के बाहर उसका एक छोटा सा खेत था। जहाँ खेती कर वह जीवन यापन हेतु थोड़ा-बहुत धन अर्जित कर लेता था। ग्रीष्म ऋतु थी। वह अपने खेत में एक वृक्ष की छाया में लेटा सुस्ता रहा था। अनायास ही उसकी दृष्टि वृक्ष के नीचे बने बिल से बाहर निकले सर्प पर पड़ी। 

सर्प को देखकर ब्राह्मण के मन में विचार आया कि संभवतः ये सर्प मेरे क्षेत्र देवता हैं। मुझे इनकी पूजा करनी चाहिए। हो सकता है ये मुझे उसका उत्तम प्रतिदान दे। वह तत्काल उठा और गाँव जाकर एक मिट्टी के कटोरे में दूध ले आया। उसने वह कटोरा सर्प के बिल के बाहर रखा और बोला, “हे सर्पदेव! अब तक मैंने आपकी पूजा अर्चना नहीं की, क्योंकि मुझे आपके विषय में ज्ञात नहीं था। आप मुझे इस धृष्टता के लिए क्षमा करें। 

अब से मैं प्रतिदिन आपको पूजा करूँगा। मुझ पर कृपा करें और मेरा जीवन समृद्ध करें।” फिर वह घर लौट आया। अगले दिन खेत पहुँचकर वह कटोरा उठाने सर्प के बिल के पास गया। उसने देखा कि उस कटोरे में एक स्वर्ण मुद्रा रखी हुई है। सर्पदेव का आशीर्वाद समझकर उसने वह स्वर्ण मुद्रा उठा ली। 

उस दिन भी वह सर्प के लिए मिट्टी के कटोरे में दूध रखकर चला गया। अगले दिन उसे पुनः एक स्वर्ण मुद्रा प्राप्त हुई। तब से वह नित्य-प्रतिदिन सर्पदेव के लिए दूध रखने लगा और उसे प्रतिदिन स्वर्ण मुद्रा मिलने लगी। एक बार उसे किसी कार्य से दूसरे गाँव जाना पड़ा। इसलिए उसने अपने पुत्र को खेत में वृक्ष के नीचे बने बिल के पास मिट्टी के कटोरे में दूध रखने का कार्य सौंपा और दूसरे गाँव की यात्रा के लिए निकल पड़ा। 

उसका पुत्र आज्ञानुसार दूध का कटोरा सर्प के बिल के सामने रखकर घर चला आया। अगले दिन जब वह पुनः दूध रखने गया, तो कटोरे में स्वर्ण मुद्रा देख चकित रह गया। स्वर्ण मुद्रा देख उसके मन में लोभ आ गया और वह सोचने लगा कि अवश्य इस बिल के भीतर स्वर्ण कलश है क्यों न मैं इसे खोदकर समस्त स्वर्ण मुद्राएं एक साथ प्राप्त कर धनवान हो जाऊं। 

लेकिन उसे सर्प का डर था। सर्प के जीवित रहते स्वर्ण कलश प्राप्त करना असंभव होगा, यह सोचकर वह उस दिन तो वापस चला गया। लेकिन अगले दिन जब वह वह सर्प के लिए दूध लेकर आया, तो साथ में लाठी भी ले गया। दूध का कटोरा बिल के सामने रखने के थोड़ी देर बाद जब सर्प दूध पीने बाहर निकला, तो उसने उस पर लाठी से प्रहार किया। सर्प लाठी के प्रहार से बच गया। 

लेकिन गुस्सा हो गया और फन फ़ैलाकर ब्राह्मण के पुत्र को डस लिया। कुछ ही देर में विष के प्रभाव से ब्राह्मण के पुत्र की मृत्यु हो गई। इस तरह लोभ के कारण ब्राह्मण पुत्र को अपने प्राणों से हाथ धोने पड़े। 

Moral – लोभ का दुष्परिणाम भोगना पड़ता है। इसलिए कभी लोभ न करे। 

7. धूर्त मेंढक (Panchatantra Short Stories in Hindi with Moral)

Panchatantra ki kahaniya

एक बार एक मेंढक ने बुरी नीयत से एक चूहे से दोस्ती कर ली। वह उसका विश्वास जीतकर उसे मारकर खा जाना चाहता था। एक दिन खेल खेल में मेंढक ने चूहे का एक पंजा अपने साथ बांध लिया।

पहले उन दोनों ने जौ खाए और फिर पानी पीने के लिए तालाब पर गए। जैसे ही चूहे ने पानी पीना शुरू किया वैसे ही मेंढक ने उसे पानी के अन्दर खींच लिया। वह उसे गहराई में ले गया।

वहाँ पर चूहे ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया। थोड़ी देर बाद उसका शव पानी की सतह पर तैरने लगा। तभी एक चील उस पर झपटी और उसने अपने तेज़ तथा पैने नखों वाले पंजों से उसे जकड़ लिया। मेंढक का पाव चूहे के साथ बंधे होने के कारण वह भी चील का भोजन बन गया।

Moral – किसी के साथ बुरा करोगे, तो तुम्हारे साथ भी बुरा होगा। 

8. पारस पत्थर | पंचतंत्र की कहानियां

वन में स्थित एक आश्रम में एक ज्ञानी साधु रहते थे। ज्ञान प्राप्ति की लालसा में दूर-दूर से छात्र उनके पास आया करते थे और उनके सानिध्य में आश्रम में ही रहकर शिक्षा प्राप्त किया करते थे। आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों में से एक छात्र बहुत आलसी था। उसे समय व्यर्थ गंवाने और आज का काम कल पर टालने की बुरी आदत थी। 

साधु को इस बात का ज्ञान था। इसलिए वे चाहते थे कि शिक्षा पूर्ण कर आश्रम से प्रस्थान करने के पूर्व वह छात्र आलस्य छोड़कर समय का महत्व समझ जाए। इसी उद्देश्य से एक दिन संध्याकाल में उन्होंने उस आलसी छात्र को अपने पास बुलाया और उसे एक पत्थर देते हुए कहा, “पुत्र! यह कोई सामान्य पत्थर नहीं, बल्कि पारस पत्थर है। 

लोहे की जिस भी वस्तु को यह छू ले, वह सोना बन जाती है। मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ। इसलिए दो दिनों के लिए ये पारस पत्थर तुम्हें दे रहा हूँ। इन दो दिनों में मैं आश्रम में नहीं रहूँगा। मैं पड़ोस के गाँव में रहने वाले अपने एक मित्र के घर जा रहा हूँ। जब वापस आऊँगा। तब तुमसे ये पारस पत्थर ले लूँगा। उसके पहले जितना चाहो, उतना सोना बना लो।”

छात्र को पारस पत्थर देकर साधु अपने मित्र के गाँव चले गए। इधर छात्र अपने हाथ में पारस पत्थर देख बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने सोचा कि इसके द्वारा मैं इतना सोना बना लूँगा कि मुझे जीवन भर काम करने की आवश्यकता नहीं रहेगी और मैं आनंदपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर पाऊँगा। 

उसके पास दो दिन थे। उसने सोचा कि अभी तो पूरे दो दिन शेष हैं। ऐसा करता हूँ कि एक दिन आराम करता हूँ।अगला पूरा दिन सोना बनाता रहूँगा। इस तरह एक दिन उसने आराम करने में बिता दिया। जब दूसरा दिन आया, तो उसने सोचा कि आज बाज़ार जाकर ढेर सारा लोहा ले आऊँगा और पारस पत्थर से छूकर उसे सोना बना दूँगा। 

लेकिन इस काम में अधिक समय लगेगा नहीं। इसलिए पहले भरपेट भोजन करता हूँ। फिर सोना बनाने में जुट जाऊँगा। भरपेट भोजन करते ही उसे नींद आने लगी। ऐसे में उसने सोचा कि अभी मेरे पास शाम तक का समय है।कुछ देर सो लेता हूँ। जागने के बाद सोना बनाने का काम कर लूँगा। फिर क्या? वह गहरी नींद में सो गया। 

जब उसकी नींद खुली, तो सूर्य अस्त हो चुका था और दो दिन का समय पूरा हो चुका था। साधु आश्रम लौट आये थे और उसके सामने खड़े थे। साधु ने कहा, “पुत्र! सूर्यास्त के साथ ही दो दिन पूरे हो चुके हैं। तुम मुझे वह पारस पत्थर वापस कर दो।” 

छात्र क्या करता? आलस के कारण उसने अमूल्य समय व्यर्थ गंवा दिया था और साथ ही धन कमाने का एक सुअवसर भी। उसे अपनी गलती का अहसास हो चुका था और समय का महत्व भी समझ आ गया। वह पछताने लगा। उसने उसी क्षण निश्चिय किया कि अब से वह कभी आलस नहीं करेगा। 

Moral – अगर जीवन में उन्नति करना चाहते हैं, तो आज का काम कल पर टालने की आदत छोड़ दें। समय अमूल्य है अगर एक बार हाथ से निकल जाने के बाद समय कभी दोबारा वापस नहीं आता। 

9. ख़ुशी की तलाश (Panchatantra Moral Stories in Hindi)

एक बार सृष्टि के रचियता ब्रह्माजी ने मानवजाति के साथ एक खेल खेलने का निर्णय लिया। उन्होंने ख़ुशी को कहीं छुपा देने का मन बनाया, ताकि मानव उसे आसानी से प्राप्त न कर सके। ब्रह्माजी की सोच थी कि जब बहुत तलाश करने के बाद मानव ख़ुशी को ढूंढ निकालेगा, तब शायद वास्तव में ख़ुश हो पायेगा। 

इस संबंध में मंत्रणा करने उन्होंने अपनी परामर्श-मंडली को बुलाया। जब परामर्श-मंडली उपस्थित हुई, तो ब्रह्माजी बोले, “मैं मानवजाति के साथ एक खेल खेलना चाहता हूँ। इस खेल में मैं ख़ुशी को ऐसे स्थान पर छुपाना चाहता हूँ, जहाँ से वह उसे आसानी से न मिल सके क्योंकि आसानी से प्राप्त ख़ुशी का महत्व मानव नहीं समझता और पूरी तरह से ख़ुश नहीं होता। अब आप लोग मुझे परामर्श दें कि मैं ख़ुशी को कहाँ छुपाऊं।”

पहला परामर्श आया “इसे धरती की गहराई में छुपा देना उचित होगा।”

ब्रह्माजी ने असहमति जताते हुए कहा “लेकिन मानव खुदाई कर आसानी से इसे प्राप्त कर लेगा।”

एक परामर्श और आया “तो फिर इसे सागर की गहराई में छुपा देना अच्छा रहेगा।”

ब्रह्माजी बोले “मानव सारे सागर छान मारेगा और ख़ुशी आसानी से ढूंढ निकालेगा। इसलिए ऐसा करना ठीक नहीं होगा।”

बहुत से परामर्श सलाहकार मंडली ने दिए, लेकिन कोई ब्रह्माजी को जंचे नहीं। 

काफ़ी सोच-विचार कर ब्रह्माजी एक निर्णय पर पहुँचे, जिससे परामर्श-मंडली भी सहमत थी। वह निर्णय था कि ख़ुशी को मानव के अंदर ही छुपा दिया जाये। वहाँ उसे ढूंढने के बारे में मानव कभी सोचता ही नहीं है। लेकिन यदि उसने वहाँ ख़ुशी ढूंढ ली, तो वह अपने जीवन में वास्तव में ख़ुश रहेगा। 

Moral – हम अक्सर ख़ुशी को बाहर तलाशते रहते हैं। लेकिन वास्तविक ख़ुशी हमारी भीतर ही है। आवश्यकता है उसे अपने भीतर तलाशने की। 

10. कुम्हार की कहानी (Panchatantra Short Stories in Hindi with Moral)

एक समय की बात है। एक गाँव में युधिष्ठिर नामक कुम्हार रहा करता था। एक दिन वह अपने घर पर एक टूटे हुए घड़े से टकराकर गिर पड़ा। घड़े के कुछ टुकड़े जमीन पर बिखरे हुए थे। एक नुकीला टुकड़ा कुम्हार के माथे में गहरे तक घुस गया। उस स्थान पर गहरा घाव हो गया। उस घाव को भरने में कई महिनों का समय लगा। जब घाव भरा, तो कुम्हार के माथे पर निशान छोड़ गया। 

कुछ दिनों बाद कुम्हार के गाँव में अकाल पड़ गया। खाने के लाले देख कुम्हार गाँव छोड़ दूसरे राज्य चला गया। वहाँ जाकर वह राजा की सेना में भर्ती हो गया। एक दिन राजा की दृष्टि कुम्हार पड़ी। उसके माथे पर चोट का बड़ा निशान देख राजा ने सोचा कि अवश्य की यह कोई शूर-वीर है। किसी युद्ध के दौरान शत्रु के प्रहार से माथे पर यह चोट लगी है।

राजा ने कुम्हार को अपनी सेना में एक उच्च पद प्रदान कर दिया। यह देख राजा के मंत्री और सिपाही कुम्हार से जलने लगे। लेकिन वे राजा के आदेश के समक्ष विवश थे। इसलिए इस विषय पर मौन धारण किये रहे। कुम्हार भी बड़े पद की लालसा में चुप रहा। कुछ माह बीते। अचानक एक दिन पड़ोसी राज्य ने उस राज्य पर आक्रमण कर दिया। राजा ने भी युद्ध का बिगुल बजा दिया। युद्ध की तैयारियाँ प्रारंभ हो गई। 

ऐसे में युद्धभूमि में प्रस्थान करने के पूर्व राजा में सहसा कुम्हार से पूछ लिया, “वीर! तुम्हारे माथे पर तुम्हारी वीरता का जो प्रतीक चिन्ह है, वह किस युद्ध में किस शत्रु ने तुम्हें दिया है?” तब तक राजा और कुम्हार में काफ़ी निकटता हो चुकी थी। कुम्हार ने सोचा कि अब राजा को सत्य का ज्ञान हो भी गया, तब भी वे उसे उसके पद से पृथक नहीं करेंगे। उसने अपनी सच्चाई राजा को बता दी, “महाराज! यह घाव युद्ध में किसी हथियार के प्रहार से नहीं लगा है। 

मैंने तो एक कुम्हार हूँ। एक दिन मदिरापान कर जब मैं घर आया, तो टूटे हुए घड़े से टकराकर गिर पड़ा। उसी घड़े के एक नुकीले टुकड़े से हुए घाव का निशान मेरे माथे पर है।” यह सुनना था कि राजा आग-बबूला हो गया। उसने कुम्हार को उसके पद से हटाते हुए राज्य से भी निकल जाने का आदेश दे दिया। कुम्हार याचना करता रहा कि वह पूरे पराक्रम से युद्ध लड़ेगा और अपने प्राण तक न्योछावर कर देगा। लेकिन राजा ने उसकी एक ना सुनी। 

राजा बोला, “भले ही तुम कितने की पराक्रमी हो। लेकिन जन्मे तो कुम्भकार कुल में हो, न कि क्षत्रियों के। जिस तरह शेर के मध्य रहकर गीदड़ शेर नहीं बन सकता और हाथी से युद्ध नहीं कर सकता। उसी तरह क्षत्रिय कुल के साथ रहने भर से तुम शूर-वीर नहीं बन जाते। इसलिए शांति से यह स्थान त्यागकर अपने कुल के लोगों के पास चले जाओ, अन्यथा मारे जाओगे।” कुम्हार अपना सा मुँह लेकर वहाँ से चला गया। 

Moral – अपने प्रयोजन से या केवल दंभ से सत्य बोलने वाला व्यक्ति नष्ट हो जाता है। 

11. आख़िरी प्रयास (Panchatantra Ki Kahaniya)

एक समय की बात है। एक राज्य में एक प्रतापी राजा राज करता था। एक दिन उसके दरबार में एक विदेशी आगंतुक आया और उसने राजा को एक सुंदर पत्थर उपहार स्वरूप प्रदान किया। राजा वह पत्थर देख बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा का निर्माण कर उसे राज्य के मंदिर में स्थापित करने का निर्णय लिया और प्रतिमा निर्माण का कार्य राज्य के महामंत्री को सौंप दिया। 

महामंत्री गाँव के सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकार के पास गया और उसे वह पत्थर देते हुए बोला, “महाराज मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं। सात दिवस के भीतर इस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा तैयार कर राजमहल पहुँचा देना। इसके लिए तुम्हें 50 स्वर्ण मुद्रायें दी जायेंगी।”

50 स्वर्ण मुद्राओं की बात सुनकर मूर्तिकार ख़ुश हो गया और महामंत्री के जाने के उपरांत प्रतिमा का निर्माण कार्य प्रारंभ करने के उद्देश्य से अपने औज़ार निकाल लिए। अपने औज़ारों में से उसने एक हथौड़ा लिया और पत्थर तोड़ने के लिए उस पर हथौड़े से वार करने लगा। लेकिन पत्थर जस का तस रहा। मूर्तिकार ने हथौड़े के कई वार पत्थर पर किये। लेकिन पत्थर नहीं टूटा। 

पचास बार प्रयास करने के उपरांत मूर्तिकार ने अंतिम बार प्रयास करने के उद्देश्य से हथौड़ा उठाया, लेकिन यह सोचकर हथौड़े पर प्रहार करने के पूर्व ही उसने हाथ खींच लिया कि जब पचास बार वार करने से पत्थर नहीं टूटा, तो अब क्या टूटेगा। वह पत्थर लेकर वापस महामंत्री के पास गया और उसे यह कह वापस कर आया कि इस पत्थर को तोड़ना नामुमकिन है। इसलिए इससे भगवान विष्णु की प्रतिमा नहीं बन सकती। 

महामंत्री को राजा का आदेश हर स्थिति में पूर्ण करना था। इसलिए उसने भगवान विष्णु की प्रतिमा निर्मित करने का कार्य गाँव के एक साधारण से मूर्तिकार को सौंप दिया। पत्थर लेकर मूर्तिकार ने महामंत्री के सामने ही उस पर हथौड़े से प्रहार किया और वह पत्थर एक बार में ही टूट गया। 

पत्थर टूटने के बाद मूर्तिकार प्रतिमा बनाने में जुट गया। इधर महामंत्री सोचने लगा कि काश, पहले मूर्तिकार ने एक अंतिम प्रयास और किया होता, तो सफ़ल हो गया होता और 50 स्वर्ण मुद्राओं का हक़दार बनता। 

Moral – यदि जीवन में सफलता प्राप्त करनी है, तो बार-बार असफ़ल होने पर भी तब तक प्रयास करना नहीं छोड़ना चाहिए। जब तक सफ़लता नहीं मिल जाती। क्या पता, जिस प्रयास को करने के पूर्व हम हाथ खींच ले, वही हमारा अंतिम प्रयास हो और उसमें हमें कामयाबी प्राप्त हो जाये।

12. सियार की रणनीति

13. प्यासा कौवा की कहानी

14. चालाक लोमड़ी की कहानी

15. खरगोश और कछुआ की कहानी

16. चींटी और कबूतर की कहानी

17. शेर और चूहे की कहानी

18. चूहे की कहानी

19. हाथी और उसके दोस्त

20. बिल्ली के गले में घंटी

21. बंदर का इंसाफ

22. बिल्ली और लोमड़ी

23. खरगोश और उसके मित्र

24. पुण्यात्मा बाघ

25. बंदर और उल्लू की कहानी

Panchatantra Stories in Hindi PDF

अगर आप पंचतंत्र की कहानियों की PDF Download करना चाहते है। तो निचे दिए गए लिंक से डाउनलोड कर सकते है – 

FAQs about Panchatantra Stories

Q1. पंचतंत्र की सबसे अच्छी कहानी कौन सी है?

ख़रगोश, तीतर और धूर्त बिल्ली
साधु और चूहा
भेड़िया और शेर की कहानी
कौवा और सांप की कहानी
ब्राह्मण और सर्प की कथा
धूर्त मेंढक
पारस पत्थर
ख़ुशी की तलाश
कुम्हार की कहानी
आख़िरी प्रयास

Q2. पंचतंत्र से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

पंचतंत्र से हमें मनुष्य के जीवन से जुड़ी शिक्षा मिलती है। जैसे की हमें कभी कभी ज्यादा लालच नहीं करना चाहिए, हमें हमेशा सक्रिय रहना चाहिए, हमें कभी भी किसी के साथ बुरा नहीं करना चाहिए आदि।

Q3. पंचतंत्र में क्या लिखा है?

पंचतंत्र में जानवरों के माध्यम से शिक्षाप्रद कहानियों का उल्लेख किया गया है।

Q4. पंचतंत्र की कहानियां बच्चों के लिए कैसे उपयोगी होती हैं?

पंचतंत्र की कहानियां बच्चों को बहुत सी बातें सिखाती है। इससे उन्हें अच्छे और बुरे के बारे में पता चलता है। उन्हें जीवन की कई अच्छी बातें पता चलती है।

पंचतंत्र की 101 कहानियां

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