Famous 51+ Dr Rahat Indori Shayari 2 line | राहत इंदौरी शायरी हिंदी 2 लाइन

आज हम हिंदुस्तान के मशहूर शायर, गीतकार और उर्दू कवि राहत इंदौरी (Dr Rahat Indori Shayari 2 line) की फेमस शायरियों के बारे में पढ़ेंगे। राहत इंदौरी की शायरी बहुत ज्यादा फेमस है और उनकी सबसे ज्यादा फेमस शायरी जो की सबसे ज्यादा वायरल हुई थी वह है बुलाती है मगर जाने का नहीं (Bulati hai magar jane ka nahi) आए जानते है उनकी शायरियों के बारे में।

Dr Rahat Indori Shayari 2 line in Hindi | राहत इंदौरी शायरी

1

आँख में पानी रखो, होंटों पे चिंगारी रखो 

ज़िंदा रहना है तो, तरकीबें बहुत सारी रखो

Rahat indori shayari

2

रोज पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं 

रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है

3

अजनबी ख़्वाहिशें, सीने में दबा भी न सकूँ 

ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे, कि उड़ा भी न सकूँ

4

नए किरदार आते जा रहे हैं

मगर नाटक पुराना चल रहा है

5

न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा 

हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा

6

दोस्ती जब किसी से की जाए 

दुश्मनों की भी राय ली जाए

7

शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम 

आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे

8

मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग 

गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए

9

ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे 

जो हो परदेश में वो किससे रजाई मांगे

10

ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे 

नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो

11

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है 

चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है

Dr rahat indori shayari

12

वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा 

मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया

13

फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर 

गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए

14

हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे 

कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते

15

मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ 

यहाँ हमदर्द हैं दो-चार मेरे

16

बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर जो मेरी 

प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ

17

राज़ जो कुछ हो इशारों में बता भी देना 

हाथ जब उससे मिलाना तो दबा भी देना

18

उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो 

धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है

19

ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर 

जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे

20

अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है 

उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते

21

ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन 

दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो

22

मैंने अपनी खुश्क आँखों से लहू छलका दिया, 

इक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिए

23

मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता 

यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी

24

सूरज सितारे चाँद मिरे सात में रहे 

जब तक तुम्हारे हात मिरे हात में रहे

25

शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए 

ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए

26

बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए 

मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए

27

घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया 

घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है

28

बोतलें खोल कर तो पी बरसों 

आज दिल खोल कर भी पी जाए

29

मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी 

दुनिया को समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे

Rahat Indori Shayari Bulati Hai Magar

30

बुलाती है मगर जाने का नहीं 

ये दुनिया है इधर जाने का नहीं 

मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर 

मगर हद से गुज़र जाने का नहीं 

ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो 

चले हो तो ठहर जाने का नहीं 

सितारे नोच कर ले जाऊंगा 

मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं 

वबा फैली हुई है हर तरफ 

अभी माहौल मर जाने का नहीं 

वो गर्दन नापता है नाप ले 

मगर जालिम से डर जाने का नहीं

Rahat indori shayari bulati hai magar

Rahat Indori Shayari on Love

31

फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए 

जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए 

भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए 

पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए

Rahat indori shayari in hindi

32

इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए 

तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए

Rahat Indori Shayari on Life

33

एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे 

दोस्तो दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो

Dr Rahat Indori Shayari in Hindi

34

हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते 

जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते 

अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है 

उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते

Dr rahat indori shayari in hindi

35

रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं 

चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं 

उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो 

धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं

36

अब जो बाज़ार में रखे हो तो हैरत क्या है 

जो भी देखेगा वो पूछेगा की कीमत क्या है 

एक ही बर्थ पे दो साये सफर करते रहे 

मैंने कल रात यह जाना है कि जन्नत क्या है

37

अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ 

ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ 

फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया 

ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ

38

आग के पास कभी मोम को लाकर देखूं 

हो इज़ाज़त तो तुझे हाथ लगाकर देखूं 

दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है 

सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगाकर देखूं

39

इन्तेज़ामात नए सिरे से संभाले जाएँ 

जितने कमजर्फ हैं महफ़िल से निकाले जाएँ 

मेरा घर आग की लपटों में छुपा हैं 

लेकिन जब मज़ा हैं, तेरे आँगन में उजाला जाएँ

40

ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था 

मैं बच भी जाता तो मरने वाला था 

मेरा नसीब मेरे हाथ कट गए 

वरना में तेरी मांग में सिन्दूर भरने वाला था

41

जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,

जवाब तो दे में कितनी बार लुटा हु, 

मुझे हिसाब तो दे तेरे बदन की लिखावट में हैं 

उतार चढाव में तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे

42

इस दुनिया ने मेरी वफ़ा का कितना ऊँचा मोल दिया 

बातों के तेजाब में, मेरे मन का अमृत घोल दिया 

जब भी कोई इनाम मिला हैं, मेरा नाम तक भूल गए 

जब भी कोई इलज़ाम लगा हैं, मुझ पर लाकर ढोल दिया

43

तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा करके

दिल के बाज़ार में बैठे हैँ ख़सारा करके

आसमानो की तरफ फेक दिया है मैंने

चंद मिट्टी के चिरागों को सितारा करके

44

हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं

मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं

जो दुनिया में सुनाई दे उसे कहते है ख़ामोशी

जो आँखों में दिखाई दे उसे तूफान कहते है

Rahat indori shayari hindi

45

गुलाब ख़्वाब दवा ज़हर जाम क्या-क्या है

मैं आ गया हूँ बता इन्तज़ाम क्या-क्या है

फक़ीर शेख कलन्दर इमाम क्या-क्या है

तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या है

अमीर-ए-शहर के कुछ कारोबार याद आए

मैँ रात सोच रहा था हराम क्या-क्या है

46

एक चिन्गारी नज़र आई थी बस्ती मेँ उसे

वो अलग हट गया आँधी को इशारा करके

मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भंवर है जिसकी

तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके

47

जो ये दीवार का सुराख है साज़िश का हिस्सा है

मगर हम इसको अपने घर का रोशनदान कहते हैं

ये ख्वाहिश दो निवालों की हमें बर्तन की हाजत क्या

फ़क़ीर अपनी हथेली को ही दस्तरख्वान कहते हैं

मेरे अंदर से एक-एक करके सब कुछ हो गया रुखसत

मगर एक चीज़ बाकी है जिसे ईमान कहते हैं

48

सिर्फ खंजर ही नहीं आँखों में पानी चाहिए,

ऐ खुदा दुश्मन भी मुझको खानदानी चाहिए

मैंने अपनी खुश्क आँखों से लहू छलका दिआ,

एक समन्दर कह रहा था मुझको पानी चाहिए

सिर्फ खबरों की ज़मीने देके मत बहलाइये

राजधानी दी थी हमने, राजधानी चाहिए

49

आते जाते है कई रंग मेरे चेहरे पर

लोग लेते है मज़ा जिक्र तुम्हारा करके

मुन्तज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे

चाँद को छत पे बुला लूँगा इशारा करके

50

अगर खिलाफ है होने दो जान थोड़ी है,

ये सब धुँआ है कोई आसमान थोड़ी है

लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में,

यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है

51

हमारे मुह से जो निकले वही सदाकत है,

हमरे मुह में तुम्हारी जबान थोड़ी है

मै जानता हूँ कि दुश्मन भी कम नहीं है,

लेकिन हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है

52

आज शाहिबे मसनद है कल नहीं होंगे,

किरायेदार है जात्ती मकान थोड़ी है

सभी का खून है शामिल इस मिट्टी में,

किसे के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है

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